Radhashtami 2021: राधा रानी परब्रह्म परमात्मा श्रीकृष्ण की अचिंत शक्ति हैं। उनकी कृपा से ही कृष्ण-तत्व की प्राप्ति होती है, इसीलिए इनमें से किसी एक की उपासना से दोनों की प्राप्ति सुनिश्चित है। कृष्ण की शक्ति हैं राधा, कृष्ण की आत्मा हैं राधा। कृष्ण शब्द हैं तो राधा अर्थ, कृष्ण गीत हैं तो राधा संगीत, कृष्ण वंशी हैं तो राधा स्वर, कृष्ण समुद्र हैं तो राधा तरंग, कृष्ण फूल हैं तो राधा उसकी सुगंध। राधा के आराधकों ने कृष्ण और राधा का एकाकार स्वरूप दर्शाने के अनेक प्रयास किए हैं। संत-महात्माओं ने कृष्ण तत्व व राधा तत्व को अभिन्न माना है। अनेक विद्वानों की यह मान्यता है कि श्रीकृष्ण और राधा अलग-अलग होते हुए भी एक हैं।
राधा और कृष्ण एक ही शक्ति के दो रूप
पहली समानता तो यही है कि इन दोनों का जन्म भाद्रपद मास की अष्टमी को हुआ। कृष्ण का जन्म कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ, राधा का जन्म शुक्ल पक्ष की अष्टमी को। ‘नारद पंचरात्र’ के ज्ञानामृत सार के अनुसार, राधा और कृष्ण एक ही शक्ति के दो रूप हैं।
वहीं चैतन्य संप्रदाय (गौड़ीय संप्रदाय) भी राधा और कृष्ण में भिन्नता को नहीं मानता है। भगवान श्रीकृष्ण की एक पराशक्ति है, जिसका नाम आह्लादिनी शक्ति राधा है। यह भी मान्यता है कि ‘श्रीकृष्ण’ में ‘श्री’ शब्द राधा रानी के लिए प्रयुक्त हुआ है। ‘पद्मपुराण’ में कहा गया है कि राधा, श्रीकृष्ण की आत्मा हैं। महर्षि वेदव्यास जी ने लिखा है कि श्रीकृष्ण आत्माराम हैं और उनकी आत्मा राधा हैं।
रावल में जन्मीं राधा
जगदसृष्टा ब्रह्मा जी द्वारा वरदान प्राप्त कर राजा सुचंद्र एवं उनकी पत्नी कलावती कालांतर में बृषभानु एवं कीर्तिदा हुए। इन्हीं की पुत्री के रूप में राधा रानी ने 5000 वर्ष से भी अधिक पूर्व मथुरा जिले के गोकुल-महावन कस्बे के निकट रावल ग्राम में जन्म लिया था। बताया जाता है कि वृषभानु एवं कीर्तिदा को राधा रानी की प्राप्ति यमुना महारानी की घोर तपस्या करने के बाद हुई थी।
राधा के जन्म के संबंध में यह भी कहा जाता है कि वृषभानु भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को जब एक सरोवर के पास से गुजर रहे थे, तब उन्हें मध्याह्न 12 बजे एक सघन कुंज की झुकी वृक्षावलि के पास एक बालिका कमल के फूल पर तैरती हुई मिली, जिसे उन्होंने अपनी पुत्री के रूप में अपना लिया। बाद में वृषभानु कंस के अत्याचारों से तंग होकर रावल से बरसाना चले गए।
ब्रज में श्रीकृष्ण की अलौकिक लीलाएं
रस-साम्राज्ञी राधा रानी ने नंदगांव में नंद बाबा के पुत्र के रूप रह रहे भगवान श्रीकृष्ण के साथ समूचे ब्रज में बड़ी ही अलौकिक लीलाएं कीं, जिन्हें पुराणों में माया के आवरण से रहित जीव का ब्रह्म के साथ विलास बताया गया है। इन लीलाओं का रसास्वादन करने के लिए लोक पितामह ब्रह्मा तक लालायित रहे।
अतएव उन्होंने एक दिन भगवान श्रीकृष्ण से यह प्रार्थना की कि वह उनकी कुंज लीलाओं का दर्शन करना चाहते हैं। इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे यह कहा कि तो चलो आप बरसाना में ब्रह्मेश्वर पर्वत के रूप में विराजमान हो जाओ। मैं आपकी ही गोद में अपनी समस्त लीलाएं करूंगा। इस पर ब्रह्मा जी प्रसन्न होकर बरसाना में आ विराजे।
श्रीजी का मंदिर या लाडिली महल
कालांतर में एक बार जब देवर्षि नारद के अवतार माने जाने वाले ब्रजाचार्य नारायणभट्ट बरसाना स्थित ब्रहमेश्वर गिरि नामक पर्वत पर गोपी भाव से अकेले विचरण कर रहे थे तो उन्होंने देखा कि राधा रानी भी भगवान श्रीकृष्ण के साथ विचरण कर रही हैं। भट्ट जी इन दोनों के सम्मुख हाथ जोड़कर खड़े हो गये। इस पर राधा रानी ने उनसे यह कहा कि इस पर्वत में मेरी एक प्रतिमा विराजित है। उसे तुम अर्ध रात्रि में निकाल कर उसकी सेवा करो। इतना कहकर वह अंतर्धान हो गईं।
श्रीजी का मंदिर या लाडिली महल
कालांतर में एक बार जब देवर्षि नारद के अवतार माने जाने वाले ब्रजाचार्य नारायणभट्ट बरसाना स्थित ब्रहमेश्वर गिरि नामक पर्वत पर गोपी भाव से अकेले विचरण कर रहे थे तो उन्होंने देखा कि राधा रानी भी भगवान श्रीकृष्ण के साथ विचरण कर रही हैं। भट्ट जी इन दोनों के सम्मुख हाथ जोड़कर खड़े हो गये। इस पर राधा रानी ने उनसे यह कहा कि इस पर्वत में मेरी एक प्रतिमा विराजित है। उसे तुम अर्ध रात्रि में निकाल कर उसकी सेवा करो। इतना कहकर वह अंतर्धान हो गईं।
राधा तू बड़भागिनी, कौन तपस्या कीन्ह।
तीन लोक तारन तरन, सो तेरे आधीन।।
बरसाना के ब्रह्मेश्वर गिरि स्थित श्रीजी मंदिर में वर्ष 1545 से प्रति वर्ष ‘राधाष्टमी’ महोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। राधा रानी की प्राकट्य स्थली रावल में भी राधाष्टमी तीन दिनों तक मनाई जाती है।