कोलंबो. आर्थिक तंगी से जूझ रहे श्रीलंका में मंकीपॉक्स का पहला मामला सामने आने से हड़कंप मच गया है. पहले केस की पुष्टि स्वास्थ्य मंत्रालय ने की है. मरीज की पहचान 20 वर्षीय युवक के रूप में हुई है. युवक 1 नवंबर को दुबई से वापस लौटा था. लौटने के बाद उसे थकान महसूस हो रही थी, इसके बाद उसने डॉक्टर से संपर्क किया. जहां उसका सैंपल लिया गया और 2 नवंबर की दोपहर को एमआरआई के लिए भेजा गया था.
श्रीलंका मिरर की एक रिपोर्ट के अनुसार बढ़े हुए लिम्फ नोड्स और थकान के कारण मरीज इलाज के लिए राष्ट्रीय एसटीडी क्लिनिक गया था. वहां डॉक्टरों को मंकीपॉक्स होने का संदेह हुआ. इसके बाद उसे मेडिकल रिसर्च डिवीजन के वायरोलॉजी विभाग में भेज दिया गया. जहां देर रात वायरोलॉजी विभाग ने MRI कर मंकीपॉक्स विशिष्ट रीयल-टाइम पीसीआर परीक्षण किया. युवक के लिए गए सैंपल में विशिष्ट लक्षित जीन पाए गए. सावधानीपूर्वक विश्लेषण के बाद यह पुष्टि हुई कि रोगी मंकीपॉक्स वायरस से संक्रमित है.
मालूम हो कि मंकीपॉक्स एक वायरल जूनोसिस (जानवरों से मनुष्यों में प्रसारित होने वाला वायरस) है.
इसमें चेचक के रोगियों में अतीत में देखे गए लक्षणों के समान लक्षण होते हैं, हालांकि यह चिकित्सकीय रूप से कम गंभीर है. मंकीपॉक्स के लक्षण 6 से 13 दिनों में दिखने लगते हैं. इसमें रोगी को बुखार, तेज सिरदर्द, पीठ और मांसपेशियों में दर्द के साथ गंभीर कमजोरी महसूस हो सकती है.
आमतौर पर मंकीपॉक्स वायरस के एक इंसान से दूसरे इंसान में संक्रमण की आशंका कम है, लेकिन कभी-कभी पीड़ित व्यक्ति के खांसने पर अगर उसके मुंह से निकले ड्रॉपलेट में वायरस की मौजूदगी रहती है तो इससे दूसरा व्यक्ति संक्रमित हो सकता है. उस स्थिति में कोविड की तरह ही यह दूसरे को संक्रमित कर सकता है. यह संक्रमित जानवरों के खून, शारीरिक तरल पदार्थ या स्किन के संपर्क में आने के कारण इंसानों में फैलता है.