भगवान शिव अपने शरीर पर चिता की राख लगाते हैं. भगवान शिव भस्म को वस्त्र के रूप में धारण करते हैं. ज्योतिष शास्त्र में भस्म के महत्व के बारे में बताया गया है.
हिंदू धर्म में भगवान शिव को अविनाशी बताया गया है. शिवजी का न आदि है, न अंत है. शिवजी सबसे कोमल और सरल हृदय वाले देव हैं. शिव की महिमा अपरंपार है क्योंकि महादेव का रहन-सहन और आवास और गण अन्य देवताओं से अलग हैं. शास्त्रों में भगवान शिव के स्वरूप का उल्लेख मिलता है, जिसमें भगवान शिव को हिरण की खाल लपेटे हुए और भस्म लगाते हुए वर्णन है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भस्म क्या होता है और क्यों भगवान शिव अपने शरीर पर चिता की राख लगाते हैं. चलिए जानते हैं इस बारे में विस्तार से.
भगवान शिव क्यों लगाते हैं भस्म
पंडित इंद्रमणि घनस्याल के अनुसार, भगवान शिव भस्म को वस्त्र के रूप में धारण करते हैं. भस्म राख को कहते हैं. इसके पीछे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण भी है. भोलेनाथ के शरीर पर भस्म यह दर्शाता है कि जिस शरीर पर हम गर्व कर रहे हैं, वह अंत में राख हो जाना है.
एक मान्यता के अनुसार, एक बार लोग राम नाम कहते हुए एक शव लेकर जा रहे थे, तब शिवजी ने उनको देखा और कहा कि ये मेरे प्रभु का नाम लेकर शव लेकर जा रहे हैं. तब शिवजी श्मशान पहुंचे और जब सब लोग चले गए तो महादेव ने श्रीराम का स्मरण किया और उस चिता की भस्म को अपने शरीर पर धारण कर लिया.
इसी तरह एक अन्य कथा के अनुसार, जब सती की मृत्यु के बाद शिव तांडव कर रहे थे. तब श्रीहरि ने अपने सुदर्शन चक्र से सती की मृत देह को भस्म कर दिया था. तब शिवजी सती के वियोग का दर्द बर्दाश्त नहीं कर सके और उन्होंने उसी समय सती की भस्म को अपने तन पर लगा लिया.
वैज्ञानिक कारण
न केवल शिव, बल्कि संत, अघोरी और साधु भी अपने शरीर पर भस्म रमाते हैं. वैज्ञानिक दृष्टि से भस्म लगाने से शरीर के रोम छिद्र बंद हो जाते हैं. इससे शरीर को ना गर्मी, ना ही सर्दी लगती है. भस्म त्वचा रोगों के उपचार में भी लाभदायक होती है.