नारद ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों में से एक हैं. देवर्षि नारद के बंदर बनने की कथा भगवान शिव ने माता पार्वती को सुनाई थी. देवर्षि नारद ने क्रोध में श्री विष्णु को श्राप दे दिया था
देवर्षि नारद बड़े तपस्वी और ज्ञानी ऋषि थे. पुराणों के अनुसार, नारद जी का जन्म ब्रह्माजी के कंठ से हुआ था. नारद ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों में से एक हैं. नारद जी को पहले पत्रकार के रूप में भी जाना जाता है. एक बार देवर्षि नारद को बंदर बनना पड़ा था, जिसकी रोचक कथा काफी प्रसिद्ध है. पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं देवर्षि नारद के बंदर बनने की कथा भगवान शिव ने माता पार्वती को सुनाई थी. जानते हैं आखिर क्यों देवर्षि नारद को बंदर का रूप धारण करना पड़ा था.
लक्ष्मी जी के लिए रचाया स्वयंवर
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार लक्ष्मी जी के लिए स्वयंवर का आयोजन हुआ था, जिसमें सभी देवता पहुंचे थे. माता लक्ष्मी मन ही मन में भगवान श्रीहरि को पति के रूप में स्वीकार कर चुकी थीं. स्वयंवर में ब्रह्माजी के मानस पुत्र नारद भी पहुंचे थे. नारद जी ने लक्ष्मी जी से विवाह करने की इच्छा जताई. नारद जी को इस बात का आभास था कि राजकुमारी लक्ष्मी जी हरि रूप में ही उनका वरण करेंगी, इसलिए नारदजी भगवान नारायण के पास पहुंच गए और उनके समान सुंदर रूप मांगने लगे.
जलाशय में दिखा बंदर जैसा मुंह
भगवान विष्णु ने नारद जी को हरि रूप दे दिया. इसके बाद नारद जी स्वयंवर में फिर से पहुंचे. उनको विश्वास था कि लक्ष्मी जी उनके गले में ही हार डालेंगी परंतु ऐसा नहीं हुआ. लक्ष्मी जी ने श्रीहरि के गले में ही हार डाला. इससे उदास होकर नारद जी वापस लौटने लगे, तब उन्होंने जलाशय में देखा कि उनका चेहरा बंदर जैसा नजर आ रहा है. जैसा कि हरि का एक अर्थ होता है वानर. इसलिए जब नारद जी ने विष्णु से हरि रूप देने को कहा, तब उन्होंने नारद जी को वानर का रूप दे दिया था.
श्रीविष्णु को दिया श्राप
इसके बाद नारद जी को आभास हुआ कि भगवान विष्णु ने उनके साथ छल किया है, इसके बाद नारद जी सीधा बैकुंठ पहुंचे और भगवान विष्णु को श्राप दिया कि पृथ्वी पर आप मनुष्य रूप में जाएंगे और आपको स्त्री का वियोग सहना पड़ेगा, इसलिए कहते हैं कि राम के रूप में विष्णु भगवान को सीता का वियोग सहना पड़ा.