हिंदू धर्म में पीपल पूजन का विशेष महत्व है. इसे सभी देवताओं का निवास स्थल माना गया है. शनिवार को सूर्योदय के बाद पीपल का पूजन नहीं करना चाहिए.
हिंदू धर्म में पीपल के पेड़ का विशेष महत्व है. इसे देवताओं का निवास स्थान माना जाता है. इसलिए इसकी सिंचाई व पूजन पुण्यदायी कहा गया है, पर बहुत कम लोग जानते हैं कि पीपल की जड़ को शनिवार के दिन सूर्योदय के बाद नहीं सींचना चाहिए. मान्यता के अनुसार ऐसा करने पर मनुष्य का सर्वनाश हो जाता है. इस संबंध में भगवान श्रीकष्ण से जुड़ी एक कथा धर्म ग्रंथों में प्रचलित है. आज हम आपको वही कथा बताने जा रहे हैं.
शनिवार को पीपल की जड़ नहीं सींचने की कथा
पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण की श्रेष्ठ पटरानी रुकमणी की एक छोटी बहन कुलक्ष्मी बहुत दरिद्र व कलहकारी थी. उसका विवाह करने के लिए रुक्मणी ने भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना की थी. इस पर श्रीकृष्ण ने कुलक्ष्मी का विवाह वनवासी मुनि से करने की बात कही. ताकि वन में रहने से वह किसी से कलह नहीं कर पाए और मुनि के संग से सुधरने की संभावना भी रहे.
रुक्मणी की सहमति पर श्रीकृष्ण ने उसका विवाह एक वनवासी मुनि से करवा दिया. पर वह मुनि की संगत से भी नहीं सुधरी. उल्टे उसने मुनि की पूजा-अर्चना, दान- पुण्य व हवन आदि कार्यों का भी विरोध किया. इस पर मुनि उसे जंगल में दूर एक ऊंचे पीपल के पेड़ के पास बिठाकर वापस आश्रम लौट आए. पीपल पर बैठी कुलक्ष्मी आधी रात को रोने लगी तो रुक्मणी के कहने पर श्रीकृष्ण उसके पास गए.
श्रीकृष्ण उसे मुनि का विरोध नहीं कर उनके अनुसार आचरण करने की सलाह दी. पर उसने खुद को स्वभाव से लाचार बताते हुए ऐसा नहीं कर पाने की बात कही. ऐसे में भगवान ने कहा कि फिर तो ऐसी कलहकारी का एकांत में रहना ही अच्छा है.
बोले, मेरी आज्ञा है कि तुम लक्ष्मी सहित सभी देवताओं के वास वाले इस पीपल के वृक्ष में ही वास करो. शनिवार के दिन सूर्योदय से पहले पीपल पूजने वाले को तो लक्ष्मी मिलेगी, लेकिन सूर्योदय के बाद किया जाने वाला पूजन तुम्हें अर्पित होगा. उसकी पूजा तुम्हें मिलेगी और उसके घर में तुम्हारा वास हो जाएगा.
तब से ही शनिवार को सूर्योदय से पहले ही पीपल को सींचने व पूजन का विधान बना. मान्यता बन गई कि सूर्योदय के बाद पीपल पूजन से घर में कुलक्ष्मी के वास से सर्वनाश हो जाता है.