All for Joomla All for Webmasters
लाइफस्टाइल

भावना युक्त कर्म: जैसी हमारी भावना होगी, वैसी ही हमारी गति होगी

act

हमारे शास्त्रों का सार है-जैसी हमारी भावना होगी, वैसी ही हमारी गति होगी। हमारी भावना यदि शुद्ध है तो हमारी गति भी कल्याणकारी होगी। यदि हमारी भावना अशुद्ध है तो गति भी विनाशकारी होगी। भावना जीवन का एक बहुत बड़ा रहस्य है। जो इस रहस्य को जान लेता है, इसे समझकर अपना लेता है, वह अपने जीवन को सार्थक कर लेता है।

क्रिया को कर्म में परिवर्तित करने में भावना का ही अहम योगदान होता है। यदि भावना नहीं है तो कर्म मात्र क्रिया के समान रहता है, जिसका प्रभाव तात्कालिक होता है। क्रिया भावनायुक्त होकर कर्म बनकर हमेशा हमारे साथ रहती है और अपना प्रभाव दिखाती है। हमारे राग-द्वेष हमसे ऐसे कर्म करवाते हैं, जो हमारे साथ गहराई से जुड़ जाते हैं। जन्म-जन्मांतर तक वे हमारे साथ रहते हैं।

इस बात को समझना जरूरी है कि हमारी भावनाएं ही कर्मों के विविध रूपों में हमारे समक्ष आती हैं। इसलिए यदि अपने कर्मों को सुधारना है तो भावनाओं का परिष्कार करना होगा, इन्हें शुभ बनाना होगा। वही प्रार्थना भगवान के सम्मुख स्वीकृत होती है, जिसमें पवित्र भाव का सम्मिश्रण होता है। जो भावना जितनी शुद्ध, सरल, पवित्र होती है, वह उतनी प्रभावी होती है।

फिर चाहे भगवान कहीं पर भी हों, वह दूरी इन भावनाओं के सम्मुख नगण्य हो जाती है, लेकिन यदि केवल विचार हैं, उनमें भाव नहीं हैं तो वे किसी को भी प्रभावित नहीं कर सकते। जिस भाव के साथ व्यक्ति जो कर्म करता है, उसी के अनुरूप उसे फल मिलता है।

भावनाओं से युक्त व्यक्ति संवेदनशील होता है और भावना से रहित व्यक्ति पाषाणतुल्य होता है। भावना अतिसूक्ष्म होती है और इसके प्रवाह को अनुभव करके यह जाना जा सकता है कि इसकी प्रकृति क्या है? जिस तरह फूल से खुशबू फैलती है, भोजन से स्वाद की सुगंध फैलती है और सड़न से बदबू फैलती है, उसी तरह जिस व्यक्ति की जैसी प्रकृति होती है, उसी के समान भावनाएं भी उसके चारों ओर फैलती हैं।

Source :
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

लोकप्रिय

To Top