आजकल निवेश करना सभी के लिए काफ़ी आसान हो गया है. ऐसे में निवेश शुरू करने से पहले आपको कुछ मूलभूत बातें जान लेना जरूरी है. मसलन, भारत में पिछले 40 वर्षों की अवधि में कीमतें औसतन 7 फीसदी की दर से बढ़ी हैं. इसका मतलब यह है कि आप जहां कहीं भी इन्वेस्ट करें आपका रिटर्न 7 फीसदी से कम नहीं होना चाहिए.
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नई दिल्ली. पिछले कुछ समय में निवेश को लेकर लोगों का दृष्टिकोण काफी बदला है. पहले जहां ये सिर्फ शहरों में रहने वाले कामकाजी पेशेवरों और इसकी समझ रखने वाले लोगों तक ही सीमित था. वहीं, वर्तमान में ज्यादातर लोगों के लिए यह आसान हो गया है. इसकी एक वजह एक बड़े तबके के पास स्मार्टफोन और सस्ते इंटरनेट का उपलब्ध होना है.
अब आपके पास निवेश के हजारों ऑप्शंस मौजूद हैं जो खुद को एक-दूसरे से बढ़ाकर पेश करते हैं. ऐसे में निवेश करने के इच्छुक लोगों के लिए किसी एक को चुनना भी समस्या बन गई है. हालांकि, इसमें लगभग सभी जगह मूल बातें एक जैसी रहती है लेकिन फिर भी कुछ ऐसे पॉइंट्स ऐसे हैं जिन्हें हमें ध्यान में रखने की जरूरत है. यहां हम ऐसे 5 बिंदुओं पर बात करेंगे.
निवेश पर कितना मिलेगा रिटर्न?
भारत में पिछले 40 वर्षों की अवधि में कीमतें औसतन 7 फीसदी की दर से बढ़ी हैं. इसका मतलब यह है कि आप जहां कहीं भी इन्वेस्ट करें आपका रिटर्न 7 फीसदी से कम नहीं होना चाहिए. इन्वेस्ट करने के लिए किसी भी ऑप्शन को चुनने से पहले उससे मिलने वाले रिटर्न को देखा जाता है. हमारे देश में ज्यादातर लोगों के लिए सरकारी बॉन्ड और एफडी यानी फिक्स्ड डिपॉजिट हमेशा से पसंदीदा विकल्प रहे हैं. इसका कारण यह है कि इन्हें काफ़ी सुरक्षित माना जाता है और रिटर्न भी निश्चित होता है. वहीं जिन लोगों को थोड़ा जोखिम उठाने में झिझक नहीं होती उनके लिए शेयर मार्केट भी अच्छा ऑप्शन है क्योंकि यही आपको ज्यादा रिटर्न दिला सकता है.
निवेश की अवधि
आप जब भी कहीं निवेश करते हैं तो उससे पहले ही लक्ष्य तय कर लेना चाहिए. लक्ष्य-आधारित योजना को व्यक्तिगत निवेश की आधारशिला माना जाता है. लंबी अवधि के लक्ष्य, विशेष रूप से यदि आप जल्दी शुरू कर रहे हैं, तो आप ऊपर की ओर बढ़ने के उद्देश्य से अधिक जोखिम लेने की अनुमति देते हैं. इसका मतलब है कि आपके पोर्टफोलियो में ऋण की तुलना में अधिक इक्विटी होगी. जब जोखिम भरे दांव की बात आती है तो मध्यम अवधि के लक्ष्य अधिक संतुलित हो सकते हैं. जबकि कम अवधि के लक्ष्यों के लिए जरूरी है कि आप सुरक्षित तरीके से निवेश करें.
निवेश पर लगने वाला टैक्स
एक निवेशक के रूप में टैक्स मैनेजमेंट एक बेहद जटिल मुद्दा है और यही कारण है कि जो लोग शौक से निवेश करते हैं उन्हें एक अनुभवी चार्टर्ड एकाउंटेंट के साथ काम करने की सलाह दी जाती है. वहीं कुछ लोग निवेश के लिए ऐसे विकल्पों की तलाश करते हैं जो टैक्स फ्री होते हैं. हालांकि ये आम तौर पर पेंशन योजनाओं, बीमा और सरकार द्वारा प्रायोजित बचत योजनाओं तक ही सीमित होते हैं. यदि आप म्युचुअल फंड और स्टॉक आदि में निवेश करते हैं तो आपके लिए यह समझना आसान होता है कि टैक्स के लिए कानून कैसे पहचान करता है और इससे टैक्स में फायदा उठा सकते हैं.
इंडिविजुअल निवेशकों के लिए 50:30:20 के नियम से निवेश करना बेहतर माना जाता है. इसका मतलब यह है कि आप अपनी आय का 50 फीसदी जरूरतों पर, 30 फीसदी इच्छाओं पर और 20 फीसदी निवेश पर खर्च करते हैं. यदि आप निवेश करने के लिए नए हैं तो आपके लिए उस अधिकतम राशि को कैप करना सबसे अच्छा होता है जिसे आप अपनी कुल आय के 20 फीसदी तक निवेश करना चाहते हैं. इससे बाजार में मंदी की स्थिति में आपकी पूरी बचत खत्म हो सकती है.
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निवेश की लिक्विडिटी
हमेशा इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि हमें पैसों की जरूरत कभी भी पड़ सकती है. ऐसे में आप निवेश के लिए जिस विकल्प को चुनते हैं उसकी लिक्विडिटी बहुत मायने रखती है क्योंकि जरूरत पड़ने पर अगर काम नहीं आए तो उस पैसे का कोई मतलब नहीं रह जाता है. छोटी अवधि के निवेश आम तौर पर ज्यादा लचीले होते हैं और निवेश के लिए बेहतर विकल्प होते हैं. आवर्ती जमा यानी आरडी और लार्ज-कैप म्यूचुअल फंड ऐसे कुछ उदाहरण हैं जहाँ पैसा लगभग तुरंत निकाला जा सकता है.