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गुजरात

2 परिवारों में 300 रुपये के लिए 4 पीढ़ियों से बज रहे लट्ठ, किस बात का है कर्ज, किसी को पता नहीं, ‘युद्धविराम’ की उम्‍मीद भी नहीं

साबरकांठा जिले का डूंगरी भील समुदाय के लोग अपने झगड़े निपटाने के लिए पुलिस के पास नहीं जाते हैं. समुदाय के पंच ही विवादों का निपटारा करते हैं. आमतौर पर आर्थिक दंड लगाकर समझौता कराया जाता है.

नई दिल्‍ली. पैसे के लेनदेन को लेकर झगड़ा होना आम बात है. पर लड़ाई करने वाले दोनों ही पक्षों को यह पता होता है कि पैसे एक पक्ष को दूसरे पक्ष से क्‍यों लेने या देने हैं. लेकिन, गुजरात के सारकांठा जिले के दो आदिवासी परिवार पिछले 60 साल से उनके पूर्वजों पर लगाए गए 300 रुपये के जुर्माने की वसूली को लेकर खूनी संघर्ष कर रहे हैं. खास बात यह है कि यह किसी को पता नहीं कि यह जुर्माना किस गलती पर लगाया था. यह लड़ाई खत्म होने के आसार दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है. आपस में झगड़ा करने पर दोनों ही परिवार 80 बार समुदाय की पंचायत में जुर्माना भुगत चुके हैं.

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खेरोज के तेम्बा गांव में डूंगरी भील परिवारों के बीच जुर्माने और झगड़े का विचित्र दौर जारी रहने की बड़ी वजह आदिवासियों के अपने झगड़े निपटाने के लिए पुलिस के पास न जाना है. ये लोग पुश्तों से चले आ रहे पुराने नियम को मान रहे हैं और अपने झगड़े से जुड़े मामले को पंचों के पास लेकर जाते हैं. यह इनके समुदाय से जुड़े बुजुर्गों का एक अनौपचारिक स्वशासी निकाय है. लेकिन, पिछली दीवाली पर पैसों को लेकर हुए झगड़े में ज्‍यादा चोट लगने पर इलाज के लिए अस्‍पताल में एक पक्ष के तीन लोगों के दाखिल होने पर मेडिको लीगल रिपोर्ट बनने पर यह मामला पुलिस के पास पहुंच गया.

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300 रुपये का जुर्माना झगड़े की जड़
टाइम्‍स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, दोनों परिवारों के बीच दुश्मनी की असल वजह के बारे में बहुत कम जानकारी है. 1960 के दशक में हरखा राठौड़ के साथी आदिवासी जेठा राठौड़ के साथ लड़ाई हुई थी. समुदाय के पंचों ने फैसला सुनाया कि हरखा को जेठा के परिवार को 300 रुपये जुर्माने के तौर पर देने होंगे. यह पैसा तब दिया गया था या नहीं, किसी को पता नहीं है. इन पैसों की वसूली के लिए जेठा के परिवार के सदस्य हरखा परिवार के सदस्‍यों पर हमला बोलते हैं तो कभी हरखा परिवार जेठा परिवार पर चढ़ाई कर देता है. यह सिलसिला पिछले 60 वर्षों से चल रहा है.

लड़ाई होने पर मामला पंचों के पास जाता है. पंच कसूरवार को दूसरे पक्ष को हर्जाना देने का फैसला दे देते हैं. देय राशि समय पर न देने पर जुर्माना राशि पर चक्रवृद्धि ब्याज लगाया जाता है. इस तरह जुर्माना न चुकाने पर देय राशि समय के साथ बढ़ती जाती है. साथ ही जुर्माना न देने पर इसकी वसूली के लिए जुर्माना पाने वाला दूसरे पक्ष पर हमला भी कर देता है.

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25,000 हो गया जुर्माना
पिछली दिवाली पर, एक पंच अदालत ने खुलासा किया कि हरखा के परिवार पर 25,000 रुपये का कर्ज दंड के रूप में बाकी था. बकाया रकम की वसूली के लिए जेठा के दो बेटों ने जनवरी में हरखा के पोते विनोद, उनकी पत्नी चंपा और उनके बेटे कांटी पर हमला दिया. हमले में तीनों को काफी चोटें आई और उन्‍हें अस्‍पताल में दाखिल कराना पड़ा.

पंच प्रणाली है काफी मजबूत
खेरोज के एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि केवल ये दो परिवार नहीं हैं, जिन्होंने पीढ़ियों से कर्ज जमा किया है. क्षेत्र की सभी जनजातियां पंच प्रणाली का पालन करती हैं. झगड़ा होने पर पंच बैठकर समझौता कराते हैं और कसूरवार पर आर्थिक दंड लगाते हैं. हरखा और जेठा के परिवारों के बीच विवाद आखिरकार पुलिस तक पहुंच गया, क्योंकि यह एक मेडिको-लीगल मामला बन गया था और इस बार समुदाय के बुजुर्ग भी दोनों परिवारों के बीच समझौता कराने में विफल रहे.

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