नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। पीरामल इंटरप्राइजेज लिमिटेड ने दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (डीएचएफएल) की अधिग्रहण प्रक्रिया पूरी कर ली है। कंपनी ने एक बयान में कहा कि उसकी सहायक शाखा पीरामल कैपिटल एंड हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (पीसीएचएफएल) ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) डीएचएफएल के कर्जदाताओं को 34,250 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया है। इस रकम का भुगतान नकद और नान-कन्वर्टिबल डिबेंचर्स (एनसीडी) के माध्यम से किया गया है। कर्जदाताओं को डीएचएफएल के पास मौजूद नकद में से 3,800 करोड़ रुपये भी मिलेंगे। इसके साथ ही डीएचएफएल में निवेश करने वाले हजारों निवेशकों की राशि की वापसी भी सुनिश्चित हो गई है।
इंसाल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) के तहत पूरी हुई इस प्रक्रिया में डीएचएफएल के कर्जदाताओं और फिक्स्ड डिपाजिट (एफडी) धारकों को कुल 38,060 करोड़ रुपये मिलेंगे। यह अधिग्रहण प्रक्रिया आइबीसी के तहत समाधान तक पहुंचने वाले सबसे बड़े मामलों में एक और किसी एनबीएफसी के समाधान का सबसे बड़ा मामला है। पीरामल ग्रुप के चेयरमैन अजय पीरामल ने बताया कि अगले दो हफ्तों के भीतर पीसीएचएफएल और डीएचएफएल के विलय की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। विलय के बाद नई कंपनी पीसीएचएफएल के नाम से जानी जाएगी और यह पीईएल की पूर्ण स्वामित्व वाली शाखा होगी।
पीरामल ग्रुप ने कर्ज संकट में फंसी डीएचएफएल को खरीदने का प्रस्ताव जनवरी, 2021 में ही भेजा था। इसे बाद में रिजर्व बैंक और नेशलन कंपनी ला ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) से भी मंजूरी मिल चुकी है। पीरामल का कहना है कि डीएचएफएल पर जिसकी भी देनदारी पहले से ही थी उन सभी के बकाये का तकरीबन 46 फीसद भुगतान हो जाएगा।
पीरामल ने बताया कि डीएचएफएल के ढांचे को मिला कर उनकी कंपनी हाउसिंग फाइनेंस क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करने पर ध्यान देगी। अधिग्रहण की वजह से पीरामल ग्रुप का लोन बुक आकार पांच गुणा बढ़ जाएगा। देश के 24 राज्यों में डीएचएफएल के 301 शाखाओं के साथ ही उसके 10 लाख ग्राहकों का बिजनेस भी अब पीरामल के पास होगा। ऐसे में कंपनी अब सस्ते आवास उपलब्ध कराने पर जोर दिया जाएगा। भारत के गैर महानगरीय शहरों व अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में आवास की मांग में तेजी से वृद्धि का अनुमान लगाते हुए उन्होंने कहा कि एक हजार छोटे बड़े शहरों में कंपनी अपनी शाखा खोलेगी। अभी तत्काल एक हजार रोजगार के नये अवसर भी दिए जाने की संभावना उन्होंने जताई।
डीएचएफएल को तीन वर्ष पहले तक देश की सबसे बड़ी एनबीएफसी में शामिल किया जाता था। लेकिन वर्ष 2019 में यह एक के बाद एक संकट में फंसती गई। कंपनी पर कुल 91,000 करोड़ रुपये की देनदारियां थी। कंपनी के पूर्व प्रमोटर कपिल वाधवान पर वित्तीय गड़बड़ी के कई मामले चल रहे हैं।