Rahul Gandhi Defamation Case: राहुल गांधी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष के बाद अब पूर्व सांसद बन गए हैं. राहुल गांधी भले ही कांग्रेस के सबसे बडे़ नेता हों, लेकिन अब उन्हें राहत सिर्फ सूरत की सेशन कोर्ट से मिल सकती है. राहुल मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के फैसले को सेशन कोर्ट में ही चुनौती दे सकते हैं.
नई दिल्ली. सूरत की मेट्रोपॉलिटन कोर्ट (Surat Metropolitan Court) के एक फैसले ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को अब पूर्व सांसद बना दिया है. राहुल गांधी के पास अब बेहद सीमित कानूनी विकल्प बचे हैं. राहुल गांधी भले ही कांग्रेस के सबसे बडे़ नेता हों, लेकिन अब उन्हें राहत सिर्फ एक ही अदालत दे सकती है और वो है सूरत की सेशन कोर्ट. मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के फैसले को सेशन में ही चुनौती दी जा सकती है. राहुल गांधी (Rahul Gandhi Defamation Case) को अब सेशन कोर्ट से ही अपनी सजा के साथ-साथ दोष (कन्विक्शन) को भी सस्पेंड करवाना पड़ेगा. बीते दो दिनों में राहुल गांधी को दो बड़े झटके लगे. एक दिन पहले सूरत की मेट्रोपॉलिटन कोर्ट ने राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि के मामले में दोषी करार दे दिया. फिर शुक्रवार को लोकसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता रद्द कर दी.
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दरअसल सुप्रीम कोर्ट के 2013 के एक फैसले ने आम आदमी और जनप्रतिनिधियों को बराबर कर दिया था. इस फैसले के बाद जनप्रतिनिधियों को आपराधिक मामलों में दोषी साबित होने के बाद ऊपरी अदालत में अपील करने तक मिलने वाली छूट छिन गई थी. यानी कि जैसे ही किसी आपराधिक मामले में उन्हें दो साल या उससे ज्यादा की सजा हुई, उनकी सदस्यता चली जाएगी.
राहुल गांधी के पास बचे कितने विकल्प
आमतौर पर जब किसी व्यक्ति को निचली अदालत सजा सुनाती है, तो जमानत मिलने के बाद अपील दाखिल करने के लिए उन्हें दी जाने वाली सजा को सस्पेंड कर दिया जाता है. लेकिन उनका दोष (कन्विक्शन) सस्पेंड नहीं होता. राहुल गांधी के साथ भी ऐसा ही हुआ है. उनकी दो साल की सजा तो सस्पेंड हो गई, लेकिन उनका दोष सस्पेंड नहीं हुआ. अब दोष को सस्पेंड करने का अधिकार ऊपरी अदालत को है, जो इस मामले में सूरत की निचली अदालत है. जाहिर है कि कांग्रेस के बड़े नेता होने के नाते राहुल गांधी के पास बेहतरीन वकीलों की कमी नहीं है, लेकिन विकल्पों की कमी जरूर है. वो हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट कहीं भी जा सकते हैं, लेकिन कानूनी भाषा में राहत देने का तात्कालीक अधिकार सूरत की सेशन कोर्ट के पास ही है.
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देश में शायद ही आपराधिक मानहानि के मुकदमों में सजा होती है. आमतौर पर बयान देने वाला व्यक्ति अदालत में ट्रायल के दौरान अपने बयान पर माफी मांग लेता है और मामला वहीं खत्म हो जाता है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ कई मानहानि के मुकदमे हुए, लेकिन उन्होंने उनमें अपने बयान को लेकर माफी मांग ली और मामले समाप्त हो गए. राहुल गांधी के पास भी ये विकल्प था, लेकिन उन्होंने इसका प्रयोग नहीं किया.