नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) में से कई की स्थिति अभी भी ठीक नहीं है। पिछले महीनों से इस क्षेत्र की श्रेई समूह की कंपनियों को लेकर जो चिंताजनक खबरें बैंकों की तरफ से दी जा रही थीं, वे आखिरकार सही साबित हुई हैं। सोमवार को आरबीआइ ने श्रेई इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस लिमिटेड और श्रेई इक्विपमेंट फाइनेंस लिमिटेड के निदेशक बोर्ड को निरस्त कर दिया। बैंक आफ बड़ौदा (बीओबी) के पूर्व चीफ जनरल मैनेजर रजनीश शर्मा को इन दोनो कंपनियों का प्रशासक बनाया गया है।
केंद्रीय बैंक ने आरबीआइ कानून की धारा 45 (आइई-2) के तहत यह कदम उठाया है। केंद्रीय बैंक ने नए प्रशासक को आदेश दिया है कि इंसाल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) के तहत इन दोनों कंपनियों की दिवालिया प्रकिया शुरू करें और बकाया कर्ज विवाद खत्म करें। प्रशासक की तरफ से इन कंपनियों में दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने के लिए नेशनल कंपनी ला ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में भी शीघ्र आवेदन दाखिल करने को कहा गया है।
कोलकाता मुख्यालय स्थित श्रेई ग्रुप की एनबीएफसी को लेकर पिछले वर्ष से ही कई बैंक परेशानी का सामना करने लगे थे। इन दोनों गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों पर बैंकिंग सेक्टर का करीब 30,000-35,000 करोड़ रुपये का बकाया है। दोनों कंपनियां अपने ऋण प्रपत्रों की देनदारियों का काफी समय से भुगतान नहीं कर पा रही थीं। वित्तीय बोझ को देखते हुए प्रमोटर्स की तरफ से इन दोनों कंपनियों का विलय प्रस्ताव भी लाया गया और बकाये कर्ज का भुगतान करने का एक रोडमैप बैंकों को दिया गया था। इस बारे में एक मामला एनसीएलटी की कोलकाता पीठ में भी चल रहा था। बाद में इनके कर्जदाताओं के प्रमुख बैंक यूको बैंक की तरफ से आरबीआइ में यह आवेदन किया गया था कि उक्त दोनों कंपनियों के बोर्ड को निरस्त किया जाए।
आरबीआइ की तरफ से नियुक्त प्रशासक एक अन्य एनबीएफसी डीएचएफएल की तरह श्रेई ग्रुप की कंपनियों में भी दिवालिया प्रक्रिया शुरू करेंगे ताकि कर्ज देने वाले बैंकों की ज्यादा से ज्यादा रकम वापस हो सके।
फैसले से श्रेई ग्रुप को हैरानी
श्रेई ग्रुप ने आरबीआइ के इस फैसले पर आश्चर्य जताया है। ग्रुप के एक प्रवक्ता ने कहा कि बैंकों को पिछले वर्ष नवंबर से ही एस्क्रो अकाउंट से नियमित रूप से उनकी रकम मिल रही है। इतना ही नहीं, बैंकों ने ग्रुप को डिफाल्ट किए जाने जैसी कोई सूचना भी नहीं दी। हालांकि हमने पिछले वर्ष अक्टूबर में कंपनी कानून, 2013 के तहत पूरी रकम वापस लौटाने संबंधी एक प्रस्ताव कर्जदाता बैंकों को भेजा था। लेकिन उन्होंने अभी तक न तो प्रस्ताव स्वीकार किया है और ना कोई ऐसा प्रस्ताव हमें दिया है जिस पर वे राजी हों।