Sutak Kaal and Patak Kaal: हिंदू धर्म में सूतक काल और पातक काल को बहुत अहम माना गया है. हालांकि ज्यादातर लोग सूतक और पातक काल में अंतर नहीं जानते हैं, जिसका संबंध सूर्य ग्रहण-चंद्र ग्रहण के अलावा जन्म-मृत्यु से भी है.
सूतक और पातक काल में क्या अंतर है: सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की बात आते ही कुछ चीजें तुरंत जेहन में आ जाती हैं. जैसे- सूतक काल, ग्रहण के दौरान कुछ नहीं खाना, ग्रहण के बाद स्नान-दान करना आदि. यानी कि सूर्य ग्रहण-चंद्र ग्रहण के दौरान पालन किए जाने वाले कई नियम याद आ सकते हैं. सूतक काल सूर्य ग्रहण-चंद्र ग्रहण से कुछ घंटे पहले ही शुरू हो जाते हैं. इसके अलावा भी कुछ मौकों पर सूतक और पातक काल लगते हैं. जैसे- जन्म और मृत्यु के मौके पर सूतक-पातक लगता है.
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जन्म और ग्रहण के बाद लगता है सूतक
सूतक काल उस समय को कहा जाता है, जिसमें कुछ सामान्य कार्य करना भी वर्जित हो जाता है. जैसे- भगवान की पूजा-पाठ करना, बाकी लोगों से दूर रहना. कुछ कामों में हिस्सा नहीं लेना आदि. जैसे- सूर्य ग्रहण शुरू होने से कुछ घंटे पहले सूतक काल शुरू हो जाता है. इस दौरान कुछ खाना-पीना, भगवान की पूजा-पाठ करना वर्जित होता है. इसी तरह घर में बच्चे के जन्म के मौके पर पूरे परिवार पर सूतक लगता है. यानी कि कुछ दिनों तक पूरा परिवार किसी धार्मिक गतिविधि में हिस्सा नहीं लेता है. इसके अलावा मां और बच्चे को कुछ समय तक छूते नहीं हैं.
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पातक कब लगता है?
वहीं जब परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो उसके बाद कुछ दिनों तक खास नियमों का पालन किया जाता है, उसे पातक कहते हैं. आमतौर पर यह 12 से 13 दिन का होता है. इस दौरान परिजन किसी पूजा-पाठ और शुभ या मांगलिक कार्य में हिस्सा नहीं लेते हैं. घर में भोजन नहीं पकता है. इसी तरह ग्रहण के दौरान भी नकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है, उसका असर हम पर कम से कम पड़े इसलिए सूतक काल माना जाता है.
सूतक-पातक के पीछे वैज्ञानिक कारण
सूतक-पातक काल के पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं. जन्म के बाद मां और बच्चे को इंफेक्शन से बचाने के लिए उसे सबसे दूर रखा जाता है. उन्हें बार-बार छूने की मनाही होती है. इसी तरह किसी व्यक्ति की मृत्यु से फैली अशुद्धि से बचने के लिए पातक काल लगता है. ताकि बाकी लोग किसी संक्रमण आदि की चपेट में ना आएं. इसके अलावा इसी वजह से पूरे घर की साफ-सफाई भी की जाती है. गर्भपात के बाद भी पातक काल लगता है.