छात्र-छात्राएं माता-पिता को दोषी मानते हैं. उनका कहना है कि माता-पिता हमें डांटते रहते हैं और हमें टॉप नंबर पाने के लिए प्रेरित करते रहते हैं. वे हमारी तुलना अपने दोस्तों के बच्चों से करते हैं.
देशभर में बोर्ड एग्जाम का समय है. बोर्ड एग्जाम के वक्त बच्चों का रातभर जागकर पढ़ाई करना बेहद आम बात है. लेकिन आजकल आम दिखने वाली हर बात में कुछ न कुछ ऐसा मिलजाता है तो इंसान को फिक्रमंद करता है. रातभर जागकर पढ़ाई करने वाले बच्चों के लिए न्यूरोसर्जन ने चौंकाने वाला खुलासा किया है.
ये भी पढ़ें– किसान आंदोलन का छठा दिन, MSP अध्यादेश पर अड़े अन्नदाता; सरकार से चौथे दौर की बैठक आज
हाल ही में कक्षा 10 की एक स्टूडेंट प्राजक्ता स्वरूप के मस्तिष्क में खून का थक्का जम गया था. पिछले सप्ताह उसकी एक बड़ी सर्जरी की गई, जिसके कारण नसों में सूजन आ गई थी. वह पूरी रात जागकर अपनी बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी करती थी. उसकी मां उसे जागते रहने में मदद करने के लिए गरमागरम कॉफी के कप दे रही थी. प्राजक्ता एक शाम बेहोश हो गई और उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया. बाद में उसके माता-पिता को उसकी दराज में गोलियों से भरी एक बोतल मिली और जब उन्होंने गोलियां डॉक्टर को सौंपीं, तो वे यह जानकर हैरान रह गए कि उनकी बेटी नींद-रोधी गोलियां ले रही थी.
माता-पिता को एहसास नहीं बेटी किस दबाव का सामना कर रही है
प्राजक्ता के माता-पिता अब स्वीकार करते हैं कि उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि उनकी बेटी किस तरह के दबाव का सामना कर रही है. उसके पिता ने कहा, “वह हमें बताती रही कि वह परीक्षाओं में ज्यादा अंक चाहती है, ताकि उसे दिल्ली के एक अच्छे कॉलेज में दाखिला मिल सके, क्योंकि उसके दोस्त वहीं जाते होंगे.”
ये भी पढ़ें– दुनियाभर में नौकरियां गायब होने की वजह AI नहीं, Mark Zuckerberg ने बताए कारण
बच्चो की पेरेंट्स से नाराजगी
दूसरी ओर, छात्र-छात्राएं माता-पिता को दोषी मानते हैं. प्राजक्ता की सहपाठी सुनीति ने गुस्से में कहा, “माता-पिता हमें डांटते रहते हैं और हमें टॉप नंबर पाने के लिए प्रेरित करते रहते हैं. वे हमारी तुलना अपने दोस्तों के बच्चों से करते हैं और कहते हैं कि हम किसी काम के नहीं हैं. ऐसी स्थिति में हम और क्या कर सकते हैं?
न्यूरोसर्जन का खुलासा, जागने के लिए क्या करते हैं बच्चे
एक प्रमुख न्यूरोसर्जन डॉ. शरद श्रीवास्तव ने कहा, “यह चौंकाने वाला लग सकता है, लेकिन आजकल बड़ी संख्या में छात्र नींद-रोधी गोलियां ले रहे हैं जो उन्हें परीक्षाओं के दौरान जागते रहने में मदद करती हैं. यह बेहद खतरनाक चलन है. इन दवाओं के खतरनाक दुष्प्रभाव हो सकते हैं, खासकर अगर इन्हें कैफीन की अधिक मात्रा जैसे कि बहुत अधिक कप कॉफी के साथ लिया जाए तो ये नुकसानदेह हो सकता है. जैसा कि प्राजक्ता के मामले में हुआ.
‘चुनिया’, ‘मीठी’ नामों से बेची जा रही है दवाएं
डॉक्टर के मुताबिक, ये दवाएं काउंटरों पर ‘चुनिया’ और ‘मीठी’ जैसे नामों से बेची जा रही हैं. एक अन्य चिकित्सक ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, ये मोडाफिनिल के वेरियंट हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि ये याददाश्त में सुधार करते हैं, और किसी के मूड, सतर्कता और संज्ञानात्मक शक्तियों को बढ़ाते हैं. यह दवा एम्फ़ैटेमिन की तुलना में अधिक सुखद अनुभव देती है और उपयोगकर्ता को लगातार 40 घंटे या उससे अधिक समय तक जागते और सतर्क रहने में सक्षम बनाती है. एक बार जब दवा ख़त्म हो जाती है, तो आपको बस कुछ देर की नींद लेनी होती है.
याददाश्त बढ़ाने वाली दवाओं की बिक्री में तेजी
एक रसायनज्ञ सुरिंदर कोहली ने स्वीकार किया कि पिछले एक महीने से नींद रोधी गोलियों, याददाश्त बढ़ाने वाली दवाओं की बिक्री में तेजी आई है. उन्होंने कहा, ग्राहक इन दवाओं के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं. वे थकान दूर करने के लिए एनर्जी ड्रिंक भी खरीदते हैं. प्रोविजिल ब्रांड नाम के तहत बेची जाने वाली मॉडाफिनिल का उपयोग मुख्य रूप से नार्कोलेप्सी, शिफ्ट वर्क स्लीप डिसऑर्डर, इडियोपैथिक हाइपरसोमनिया और ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया से जुड़ी अत्यधिक दिन की नींद जैसे विकारों के उपचार में किया जाता है.
ये भी पढ़ें– NCR में बनने जा रहे 10 हजार नए राशन कार्ड, जानिए किन लोगों को मिलेगा मौका
बच्चों पर हाई स्कोर करने का दबाव
जाने-माने मनोचिकित्सक डॉ. आर. सक्सेना ने कहा, बच्चों पर हाई स्कोर करने का दबाव होता है, ताकि उन्हें अच्छे कॉलेजों में दाखिला मिल सके. अगर बच्चों को अपने दोस्तों से आधा प्रतिशत भी कम मिलता है तो वे निराश हो जाते हैं. बोर्ड परीक्षाओं में 98 और 99 फीसदी अंक लाने का दबाव धीरे-धीरे उन्हें खत्म कर रहा है. माता-पिता को इस तथ्य को स्वीकार करना चाहिए कि इतने उच्च प्रतिशत अवास्तविक हो सकते हैं और हर बच्चा इतना अंक प्राप्त नहीं कर सकता.
पेरेंट्स के पास बच्चों के दबाव महसूस करने का समय नहीं
डॉ. सक्सेना ने कहा कि आज की दुनिया में माता-पिता का मार्गदर्शन लगभग न के बराबर है, खासकर ऐसे मामलों में जहां माता-पिता दोनों कामकाजी हों. उन्होंने कहा, “माता-पिता के पास अपने बच्चे के व्यवहार में बदलाव देखने और उसे सलाह देने या वह जो दबाव महसूस करता है, उसे समझने का समय नहीं है.
ये भी पढ़ें– ‘कोर्ट के फैसले का…’ ED के छठे समन पर भी पेश नहीं होंगे अरविंद केजरीवाल, AAP ने बताई वजह
लगातार पढ़ाई का पैटर्न बनाए नहीं रखते
इस बीच, शिक्षक लगातार पढ़ाई के पैटर्न को बनाए नहीं रखने के लिए माता-पिता के साथ-साथ छात्रों को भी दोषी मानते हैं. इंग्लिश मीडियम गर्ल्स स्कूल की सेवानिवृत्त शिक्षिका पुष्पा डिसूजा ने कहा, “छात्र पूरे साल पढ़ाई नहीं करते. वे कक्षाएं बंक कर देते हैं और माता-पिता अनजान बने रहते हैं. अगर माता-पिता सालभर अपने बच्चों की पढ़ाई के पैटर्न पर नजर रखें तो परीक्षा का तनाव काफी हद तक कम हो जाएगा. (इनपुट एजेंसी से)
![](https://hindi.officenewz.com/wp-content/uploads/2021/08/officenewzlogo_vr2-1.jpg)