अंबाला, [दीपक बहल]। रेलवे ने यात्रियों की सुविधाओं में बढ़ोतरी करने के लिए 109 रूटों पर डेढ़ सौ ट्रेनें प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप (पीपीपी) पर चलाने की तैयारी की थी, लेकिन महज दो कंपनियों इंडियन रेलवे केटरिंग एंड टूरिज्म कारपोरेशन (आइआरसीटीसी) और मेधा ने ही ट्रेनों को चलाने में दिलचस्पी दिखाई। बड़ी संख्या में प्राइवेट कंपनियां इससे दूर ही रहीं। इस कारण आज तक यह टेंडर फाइनल ही नहीं हो पाया है। अब इस टेंडर को नए सिरे से तैयार किया जा सकता है।
नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन योजना में अब 90 ट्रेनें प्राइवेट सेक्टर के हवाले करने की तैयारी
नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन योजना के माध्यम से केंद्र सरकार ने चार साल में सरकारी संपत्तियों से छह लाख करोड़ रुपये जुटाने का खाका तैयार किया है। इसमें रेलवे से जुड़ी 90 ट्रेनों व कुछ अन्य प्रोजेक्टों को भी शामिल किया गया है। पीपीपी मोड में प्राइवेट कंपनियों की दिलचस्पी न होने के कारण टेंडर प्रक्रिया भी फिर से शुरू की जा सकती है।
12 कलस्टर में देश भर को बांटा गया, महज दो कंपनियों ने ही ट्रेनें चलाने में दिखाई दिलचस्पी
गौरतलब है कि हरियाणा, पंजाब सहित देश भर के सभी महत्वपूर्ण रूटों पर 12 कलस्टर में 109 रूटों को बनाया गया था। भारतीय रेलवे ने 109 रूटों पर चलने वाली 150 प्राइवेट ट्रेनों का रूट तैयार कर देशभर के अधिकारियों से सुझाव मांगे थे। हरियाणा और पंजाब से भी 18 रूटों को शामिल किया गया था। इनमें प्रतिदिन दौड़ने वाली ट्रेनें भी शामिल थीं। इन ट्रेनों में रेलवे के महज चालक, गार्ड और इंजन ही होते। डिब्बों का आधुनिकीकरण कंपनी को ही करना था।
इन रूटों पर दौड़नी थीं प्राइवेट ट्रेनें
इन प्राइवेट ट्रेनों में नई दिल्ली से अमृतसर दो ट्रेन, नई दिल्ली से चंडीगढ़ तीन ट्रेन, लखनऊ से कटरा के लिए दो ट्रेन, अमृतसर से फरीदाबाद दो ट्रेन, वाराणसी से बठिंडा दो ट्रेन, नागपुर से चंडीगढ़ दो ट्रेन, भोपाल से मुंबई दो ट्रेन, भोपाल से पूना दो ट्रेन शामिल हैं। इसके अलावा नई दिल्ली से ऋषिकेश दो ट्रेन, इंदौर से दिल्ली दो ट्रेन, नई दिल्ली से वाराणसी दो ट्रेन, आनंद विहार से दरभंगा दो ट्रेन, आनंद विहार से बड़गाम तक दो ट्रेन, लखनऊ से दिल्ली दो ट्रेन आदि शामिल हैं। इन ट्रेनों की स्पीड 160 किलोमीटर प्रति घंटा तय की गई थी।
30 हजार करोड़ रुपये का था प्रस्ताव
रेलवे पहले इस संबंध में 30 हजार करोड़ रुपये का प्रस्ताव तैयार किया था। इसका मकसद रेलवे में नई तकनीक को शामिल करना था। जिन ट्रेनों को प्राइवेट सेक्टर को सौंपा जाना था, उनमें अधिकतर गाडि़यों का निर्माण मेक इन इंडिया के तहत किया जाना था। प्राइवेट कंपनी को एक निश्चित राशि रेलवे को देनी थी। इसमें समयबद्धता, भरोसा आदि बरकरार रखने का जिक्र भी था। भारतीय रेलवे के तय मानकों के आधार पर ही ट्रेनों का रखरखाव किया जाना था।