नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। क्रिप्टोकरेंसी पर हजारों करोड़ रुपये की रकम लगाई जा रही है। जिन्हें इस करेंसी के बारे में कुछ नहीं पता, वे भी दूसरों को प्रेरित करने में लगे हुए हैं और एक अंधी दौड़ सी चल रही है। लेकिन इसका एक्सचेंज चलाने वालों पर नियमन की कोई नकेल नहीं है। अगर यह जल्द नियामकीय दायरे में नहीं लाया गया, तो काफी देर हो चुकी होगी।
आपने एक विज्ञापन देखा होगा। एक अंधेरे और फिल्मी लगने वाले गैराज में कुछ युवक कैरम खेल रहे हैं। उनमें से एक युवक दूसरों को बिटक्वाइन के बारे में बताता है, और उन्हें एक एप के जरिये खरीदने पर जोर देता है। दूसरे युवक विरोध में कहते हैं कि उन्हें बिटक्वाइन समझ नहीं आता। तो वह युवक अपने फोन का स्क्रीन दिखाता है जिसमें एक ग्राफ ऊपर-नीचे जा रहा है, और कहता है, ‘नो झंझट, नो लोड’।मुझे यह फिल्मी सा दिखने वाला विज्ञापन पूरी तरह असली लगता है। यह एक ऐसे व्यक्ति को दिखा रहा है, जो खुद तो बिटक्वाइन के बारे में कुछ नहीं जानता, लेकिन दूसरे अनजान युवकों को पूरे आत्मविश्वास से बिटक्वाइन खरीदने के लिए कह रहा है। ठीक यही बात असल जिंदगी में भी हो रही है।
क्रिप्टोकरेंसी पर हजारों करोड़ रुपये लगाए जा रहे हैं। बिटक्वाइन खरीदने की एक ही वजह है, इसके बारे में दिखाई जा रही ऊपर जाती लाइन। यह भी सच है कि यह विज्ञापन असल में बिटक्वाइन के लिए नहीं, बल्कि एक खास क्रिप्टो एक्सचेंज के लिए है। थोड़ी देर के लिए इस तथाकथित करेंसी के सही या गलत होने के फेर में पड़े बिना इस मुद्दे को देखेंगे तो पाएंगे कि ऐसे एक्सचेंज की मौजूदगी ही एक बड़ी नियामकीय खाई है, जिसका तत्काल भरा जाना जरूरी है। भारत में हमारे वित्तीय तंत्र का नियमन बड़ा कसा हुआ है। एक आम आदमी का यह उम्मीद करना पूरी तरह उचित है कि खुलेआम वित्तीय मध्यस्थों के तौर पर काम करने वाली इन संस्थाओं की कोई न कोई विभाग निगरानी करे, उन्हें नियमन के दायरे में रखे।
मगर जिन्होंने खुद को क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज घोषित कर रखा है, उन पर अभी सरकार या दूसरे वित्तीय नियामकों का कोई नियंत्रण नहीं है।इस नियंत्रण के महत्व को समझना बेहद जरूरी है। जब मैं कोई स्टाक खरीदता हूं, तो पहले एक स्टाक ब्रोकर के पास जाता हूं। मैं अपने बैंक अकाउंट से ब्रोकर को कुछ रकम ट्रांसफर करता हूं, और बदले में मुझे अपनी स्क्रीन पर, कुछ नंबर दिखाई देते हैं। ये नंबर मुझे बताते हैं कि अब ये स्टाक मेरे हैं। और ये स्टाक मेरे ही हैं, इस पूरी व्यवस्था को स्टाक मार्केट, और उससे जुड़ी सभी संस्थाएं इसे बड़ी बारीकी से रेगुलेट कर रही हैं। ब्रोकर, एक्सचेंज, स्टाक डिपाजिटरी सब आपस में जुड़े हैं और सब पर सरकार का नियमन है। बैंकिंग, म्यूचुअल फंड, इंश्योरेंस, बांड्स और इसी तरह की बाकी सभी चीजों के लिए नियामकीय संरचनाएं हैं। मगर क्रिप्टो का कारोबार अभी पूरी तरह से नियमन से बाहर है।
इनके एक्सचेंज ऐसे बिजनस हैं, जो आपके पैसे ले लेते हैं, और बदले में आपको स्क्रीन पर कुछ नंबर और ग्राफ दिखाते हैं। क्रिप्टो एक्सचेंज असल में ब्रोकर, एक्सचेंज, डिपाजिटरी और पूंजी बाजार नियामक सेबी, सब एक साथ हैं। आपके पास उनकी कही हुई बात के अलावा और कोई साक्ष्य नहीं है कि आपका उनसे क्या सौदा हुआ है। नियमन से बाहर होने का असल मतलब यही है।विज्ञापन के ‘नो झंझट’ वाले बिना किसी नियामकीय बाधा के अपना बिजनेस चला रहे हैं।
आप ठीक से देखेंगे तो विज्ञापन में बताया गया झंझट असल में ऐसा झंझट है जो निवेशकों को उसके बाद के दर्जनों बड़े झंझटों से बचा लेता है। इसी साल एक खबर थी कि एक तुर्की क्रिप्टो एक्सचेंज थोडेक्स तब ग़ायब हो गया, जब उसका संस्थापक अपने ग्राहकों के दो अरब डालर या करीब 15,000 करोड़ रुपये ले उड़ा।हालांकि, मैं ऐसे एक्सचेंज या किसी और को इस बिजनेस के लिए जम्मेदार नहीं ठहरा रहा। मगर इस सब को इस हद तक बढ़ने देने की पूरी जिम्मेदारी कई सरकारी विभागों पर आती है। तीन साल पहले आरबीआइ ने बैंकों समेत अपने नियामकीय दायरे में आने वाली संस्थाओं को क्रिप्टोकरेंसी में कारोबार से रोक दिया था। पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने यह प्रतिबंध हटा दिया। अगर आप क्रिप्टो के किसी महारथी से बात करेंगे, तो वो कहेगा कि सुप्रीम कोर्ट ने भारत में क्रिप्टो को लीगल कर दिया है, ये बात आधा सच है।
लेखक, वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं, ये विचार उनके निजी हैं