वित्त वर्ष 2022-23 में चार नई श्रम संहिता लागू होने की संभावना है। श्रम एक समवर्ती विषय होने के साथ, राज्य इन सुधारों के लिए मसौदा नियमों को पूर्व-प्रकाशित करने की प्रक्रिया में हैं। विशेषज्ञों की राय है कि यह चार श्रम संहिता देश में ईज ऑफ डूंइग बिजनेस के लिए काफी कारगर होंगी। नई श्रम संहिताओं का उद्देश्य देश में व्यापार करना आसान बनाना और 29 बोझिल कानूनों को बदलना है।
इसका उद्देश्य 50 करोड़ से अधिक संगठित और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को इसके दायरे में लाना है। गौरतलब है कि 90% कार्यबल फिलहाल श्रम कानूनों के दायरे से बाहर हैं। इसके पीछे यह सुनिश्चित करने का आइडिया है कि श्रमिकों को वेतन सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य सुरक्षा, पारिश्रमिक के मामले में लैंगिक समानता, न्यूनतम समान मजदूरी प्राप्त करें। साथ ही इसमें अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों के जीवन को आसान बनाने, छंटनी के दौरान श्रमिकों को पुन: कौशल हासिल कराने के लिए 15 दिन का वेतन जोड़ने जैसे प्रावधान भी शामिल हैं।
क्या है खास
- हफ्ते में 3 दिन मिल सकता है वीकऑफ, लेकिन बढ़ जाएंगे काम के घंटे
- 15 मिनट ज्यादा किया काम तो मिलेगा ओवरटाइम
- 5 घंटे बाद मिलेगा आधे घंटे का ब्रेक
- घट जाएगा हाथ में आने वाला वेतन
- भविष्य निधि खाते में बढ़ेगा अंशदान
- बेसिक सैलरी दोगुनी होने से ग्रेच्युटी के लिए दोगुना कटेगा पैसा
- सेलरी स्ट्रक्चर और पेंशन राशि में होगा बदलाव
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कोड की वर्तमान स्थिति
वित्त वर्ष 2022-23 में इन चारों कोड के लागू होने की संभावना है। ये हैं वेतन संबंधी कोड, औद्योगिक संबंध कोड, सामाजिक सुरक्षा कोड और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति संहिता। जहां केंद्र सरकार ने मसौदा नियमों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया पूरी कर ली है, वहीं राज्य सरकारें इसका मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया में हैं। वेतन संहिता के लिए मसौदा नियमों को 24 राज्यों ने पूर्व-प्रकाशित कर दिया है। औद्योगिक संबंध संहिता के लिए 20 राज्य इस काम को पूरा कर चुके हैं जबकि सामाजिक सुरक्षा संहिता के लिए 18 राज्यों और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति संहिता के लिए 13 राज्यों ने इनको पूर्व प्रकाशित कर दिया है।।
इन संहिताओं में प्रमुख लक्ष्य क्या हैं?
संगठित क्षेत्र के श्रमिकों के कुल कार्यबल का लगभग 10% होने के कारण, नए कोड यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि सामाजिक सुरक्षा लाभ सभी के लिए हों। प्रस्तावित श्रम संहिताओं के अनुसार, कुल भत्तों जैसे मकान किराया, छुट्टी, यात्रा आदि को वेतन के 50% तक सीमित किया जाना है, जबकि मूल वेतन शेष 50% होना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप एक निश्चित वर्ग को कम वेतन कम हो जाएगा, लेकिन सेवानिवृत्ति निधि में उनका योगदान बढ़ जाएगा। प्रति दिन 12 घंटे के कार्य समय की अनुमति के साथ चार-दिवसीय कार्य सप्ताह भी कंपनियां लागू कर सकती हैं।
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संहिता व्यापार सुगमता में योगदान करेंगी
कर्मचारियों और नियोक्ताओं में धन सृजन में भागीदार होने की भावना विकसित होने से श्रम उत्पादकता में सुधार होने की संभावना है। श्रमिकों के मुआवजे, कर्मचारी अधिकारों और नियोक्ता कर्तव्यों की स्पष्ट परिभाषा और अनुपालन को आसान बनाने वाली श्रम संहिताओं के चलते एक ‘पारदर्शी’ वातावरण तैयार होगा जिससे निवेश-आकर्षित होने की काफी संभावनाएं हैं। संगठित क्षेत्र में ज्यादा श्रमिकों को लाने से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों के रिसाव को रोका जा सकता है।
भारतीय राज्यों में कितने श्रम कानून हैं?
इन चार श्रम संहिताओं में 29 श्रम कानूनों का सरलीकरण होना काफी महत्वपूर्ण होगा। भारत में वर्तमान में कई श्रम कानूनों का जाल है इसमें 40 से अधिक केंद्रीय कानून और 100 राज्य कानून शामिल हैं। दूसरे राष्ट्रीय श्रम आयोग (2002) ने इन कानूनों में पारदर्शिता और एकरूपता लाने के लिए सरलीकरण की सिफारिश की थी।