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हिजाब विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट में समान पोशाक के लिए PIL दायर, जानें पूरा मामला

supreme Court

कर्नाटक में जारी हिजाब विवाद के बीच उच्चतम न्यायालय में शनिवार को एक जनहित याचिका दायर की गयी जिसमें समानता और भाईचारे को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय अखंडता के वास्ते पंजीकृत शिक्षण संस्थानों में कर्मचारियों और विद्यार्थियों के लिए समान पोशाक संहिता लागू करने का केंद्र सरकार, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश देने का आग्रह किया गया है।

शीर्ष अदालत के समक्ष हिजाब विवाद से संबंधित अन्य मामलों का उल्लेख शुक्रवार को त्वरित सुनवाई के लिए किया गया था, जिसने कर्नाटक उच्च न्यायालय की तीन-सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष लंबित मामले का संज्ञान लिया था और कहा था कि यह प्रत्येक नागरिक के संवैधानिक अधिकारों को संरक्षित करेगी और ‘उचित समय’ पर मामले की सुनवाई करेगी।

इस बीच, उच्च न्यायालय ने अपने अंतरिम आदेश में कर्नाटक सरकार से शिक्षण संस्थानों को खोलने के लिए कहा। अदालत ने इसके साथ ही निर्णय आने तक शिक्षण संस्थानों में कक्षाओं में किसी भी प्रकार की धार्मिक ड्रेस पहनकर आने पर रोक लगा दी थी।

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अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय और अश्विनी दुबे के जरिये निखिल उपाध्याय द्वारा दायर नयी जनहित याचिका में केंद्र सरकार को एक न्यायिक आयोग अथवा विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है, जो सामाजिक और आर्थिक न्याय, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के मूल्यों को सिखाने तथा विद्यार्थियों के बीच भाईचारा, सम्मान, एकता और राष्ट्रीय अखंडता को बढ़ावा देने के उपाय बताए।

याचिका में केंद्र सरकार, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के अलावा विधि आयोग को भी पक्षकार बनाया गया है। याचिका में कर्नाटक में जारी हिजाब विवाद को लेकर गत 10 फरवरी को राष्ट्रीय राजधानी में हुए प्रदर्शनों का भी संदर्भ दिया गया है।

इसमें कहा गया है, “शैक्षणिक संस्थान धर्मनिरपेक्ष सार्वजनिक स्थान हैं और ये ज्ञान एवं बुद्धिमता के इस्तेमाल, अच्छे स्वास्थ्य और राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए हैं, न कि जरूरी और गैर-जरूरी धार्मिक प्रथाओं का पालन करने के लिए।”

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याचिका में कहा गया है कि शैक्षणिक संस्थानों के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बनाए रखने के लिए सभी स्कूल-कॉलेजों में समान पोशाक संहिता लागू करना बहुत जरूरी है, अन्यथा कल नागा साधु आवश्यक धार्मिक प्रथा का हवाला देते हुए महाविद्यालयों में प्रवेश ले सकते हैं और बिना कपड़ों के कक्षा में शामिल हो सकते हैं। 

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