देश का विदेशी मुद्रा भंडार दो साल के निचले स्तर पर चला गया है। 20 मार्च 2020 को समाप्त हफ्ते के दौरान रिजर्व में 11.98 बिलियन डॉलर की गिरावट दर्ज की गई। Covid महामारी के दौरान विदेशी निवेशकों ने बड़ी रकम निकाल ली है।
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। देश का विदेशी मुद्रा भंडार दो साल के निचले स्तर पर है। 11 मार्च, 2022 को समाप्त सप्ताह के दौरान भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 9.64 बिलियन डॉलर गिरकर 622.275 बिलियन डॉलर हो गया। इसका कारण यह रहा कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की बिकवाली के कारण कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हुई और अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में तेज गिरावट आई। इसके बाद 20 मार्च, 2020 को समाप्त सप्ताह के दौरान Forex में 11.98 बिलियन डॉलर की गिरावट दर्ज की गई। यह लगभग दो साल में सबसे बड़ी गिरावट है, जब कोविड -19 महामारी के दौरान FPI ने अपना पैसा निकाल लिया।
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रूस-यूक्रेन के बीच लड़ाई तेज होने के बाद रुपया 77 के स्तर से नीचे गिर गया और कच्चे तेल की कीमतें बढ़ गईं, तो भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मूल्य में और गिरावट को रोकने के लिए डॉलर बेचे। RBI के हस्तक्षेप से पीएसयू बैंकों ने डॉलर की बिक्री तब शुरू की जब रुपया 76 के स्तर को पार कर 77 अंक पर पहुंच गया। RBI ने 8 मार्च को 5.135 अरब डॉलर की बिक्री की और साथ ही स्वैप-निपटान टाइम में डॉलर वापस खरीदने को सहमत हो गया। जब केंद्रीय बैंक डॉलर बेचता है, तो वह रुपये में बराबर रकम निकाल लेता है, जिससे सिस्टम में रुपये की तरलता कम हो जाती है।
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बाजार में डॉलर की आमद ने रुपये को मजबूत किया, जो 8 मार्च को डॉलर के मुकाबले 77 अंक पर पहुंच गया था। 17 मार्च को रुपया 41 पैसे की तेजी के साथ गुरुवार (17 मार्च) को डॉलर के मुकाबले 75.80/81 पर आ गया था। रुपये पर भारी दबाव डालते हुए विदेशी निवेशकों ने मार्च में 41,617 करोड़ रुपये निकाले। ऐसा फरवरी में 45,720 करोड़ रुपये और जनवरी में 41,346 करोड़ रुपये की निकासी के बाद हुआ है। इसके साथ, एफपीआई ने 1 अक्टूबर, 2021 से 225,649 करोड़ रुपये (आईपीओ में एफपीआई निवेश को छोड़कर) निकाले हैं। क्योंकि उन्हें मुख्य रूप से यूएस फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी की आशंका थी।
इसके अलावा, रूस-यूक्रेन युद्ध तेज होने के कारण ब्रेंट क्रूड की कीमतें 140 डॉलर के करीब 14 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गईं। चूंकि भारत अपनी घरेलू आवश्यकताओं का लगभग 80 प्रतिशत आयात करता है, कच्चे तेल की ऊंची कीमतों से डॉलर की जरूरत में भी भारी बढ़ोतरी होती है।