Presidential Election & Opposition: टीएमसी सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष के प्रत्याशी पर आम सहमति बनाने के लिए विपक्षी दलों की बैठक से एक दिन पहले 14 जून को दिल्ली पहुंच रही हैं. इससे एक बार फिर विपक्ष की एकता को खतरा नजर आ रहा है क्योंकि कांग्रेस और टीएमसी दोनों राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए विपक्ष की पसंद एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार पर सहमत हैं, लेकिन ममता बनर्जी की अलग से बैठक बुलाने को लेकर कांग्रेस आलाकमान परेशान है.
नई दिल्ली: राष्ट्रपति चुनाव (Presidential Election) में एक बार फिर से विपक्ष की एकजुटता का परीक्षण होगा. असल चुनौती कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस (Congress-TMC) के बीच जारी मतभेदों को लेकर है जिसके कारण विपक्ष बिखरा हुआ है. अब राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार का चयन और उसे समर्थन पर इन मुद्दों पर कांग्रेस और टीएमसी आते हैं यह देखने वाली बात होगी.
टीएमसी सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष के प्रत्याशी पर आम सहमति बनाने के लिए विपक्षी दलों की बैठक से एक दिन पहले 14 जून को दिल्ली पहुंच रही हैं.
ममता बनर्जी ने व्यक्तिगत रूप से 22 नेताओं को 15 जून की इस बैठक के लिए आमंत्रित किया है. एक लेटर के जरिए उन्होंने आह्वान किया है कि “विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ लड़ने के लिए एक मजबूत प्रभावी विपक्ष की आवश्यकता है.” टीएमसी सूत्रों का कहना है कि, यह अरविंद केजरीवाल से लेकर केसीआर और लेफ्ट तक पूरे विपक्षी दल तक पहुंचने का प्रयास था.
हालाँकि, ममता बनर्जी के इस कदम ने कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को हैरान कर दिया है. क्योंकि उनका दावा है कि उन्होंने अनौपचारिक रूप से बैक-चैनल वार्ता की प्रक्रिया शुरू की थी और एक बैठक आयोजित करने का प्रयास किया था.
शरद पवार पर आम सहमति, तो फिर बैठक क्यों?
हालांकि कांग्रेस और टीएमसी दोनों राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए विपक्ष की पसंद एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार पर सहमत हैं, लेकिन ममता बनर्जी की अलग से बैठक बुलाने को लेकर कांग्रेस आलाकमान परेशान है.
पार्टी द्वारा जारी एक बयान में कांग्रेस ने कहा कि पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी ने विपक्षी दलों से बातचीत शुरू की थी और उन्होंने शरद पवार व ममता बनर्जी से संपर्क किया था. इस मुद्दे पर आम सहमति बनाने में मदद करने के लिए पार्टी ने अनुभवी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को नियुक्त किया था.
सोनिया गांधी और ममता बनर्जी के बीच रिश्तों में नरमी और गर्मी कोई नई बात नहीं है. बंगाल चुनाव के नतीजों के बाद ममता बनर्जी सोनिया गांधी के पास पहुंचीं और दोनों ने दिल्ली में गर्मजोशी से मुलाकात की और गठबंधन की संभावनाओं को बल मिलने लगा. लेकिन हालात उस वक्त खराब हो गए जब कांग्रेस ने सुष्मिता देव और मुकुल संगमा को लेकर टीएमसी पर बड़ा आरोप लगाया.
इस तनाव के बावजूद, टीएमसी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि पार्टी कांग्रेस के साथ आगे बढ़ने के बारे में सकारात्मक रूख रखती है, लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस गठबंधन में मुख्य भूमिका कौन निभाएगा? राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, राष्ट्रपति चुनाव विपक्ष के लिए एक लिटमस टेस्ट होगा कि जिससे यह पता चलेगा कि क्या वे वास्तव में 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले एकजुट होंगे?
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ममता बनर्जी ने जिन 22 नेताओं से संपर्क साधा है, उनमें अरविंद केजरीवाल, पिनाराई विजयन, नवीन पटनायक, के. चंद्रशेखर राव, एमके स्टालिन, उद्धव ठाकरे, हेमंत सोरेन, भगवंत मान, सोनिया गांधी, लालू प्रसाद यादव, डी राजा, सीताराम येचुरी और अखिलेश यादव शामिल हैं.
शरद पवार, जयंत चौधरी, एचडी कुमारस्वामी, एचडी देवेगौड़ा, फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती, सुखबीर सिंह बादल और पवन कुमार चामलिंग भी शामिल हैं.
अब जबकि निमंत्रण भेजे जा चुके हैं तो सभी के मन में सवाल हैं: क्या केजरीवाल कांग्रेस के साथ जगह साझा करने के इच्छुक होंगे? क्या केसीआर इसके लिए मंजूरी देंगे? कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का क्या होगा? क्या वामपंथी एकजुट प्रयास का हिस्सा बनेंगे?
अगर विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव के लिए आम सहमति से एक आम उम्मीदवार को खड़ा करने के लिए एक साथ आने में सक्षम है, तो यह किसी उपलब्धि से कम नहीं होगा, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि टीएमसी यह सुनिश्चित करना चाहेगी कि कांग्रेस 15 जून की बैठक की अगुवाई न करे.