Dollar | Rupee | Economy: भारतीय रुपया (Indian Rupee) पिछले कुछ दिनों से लगातार कमजोर होता जा रहा है और शुक्रवार को यह अमेरिकी डॉलर (USD) के मुकाबले 79.11 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया. इस बात को लेकर विशेषज्ञों के बीच इस बात पर बहस छिड़ गई है. आखिरकार डॉलर के मुकाबले रुपया इतना कमजोर क्यों होता जा रहा है. क्या अभी भारतीय मुद्रा (Indian Currency) में और कमजोरी आ सकती है?
इस साल की शुरुआत से लेकर अभी तक डॉलर के मुकाबले रुपया तकरीबन 6 फीसदी गिर चुका है. हालांकि, गुरुवार को डॉलर के मुकाबले यह 13 पैसे की बढ़त के साथ 78.90 पर पहुंचकर अपने रिकॉर्ड निचले स्तर से उबरने में कामयाब रहा.
ये भी पढ़ें-:1 जुलाई से क्रेडिट कार्ड के नए नियम होंगे प्रभावी, जो आप सभी को जानना है जरूरी
रुपये में कमजोरी से आम आदमी के ऊपर दोहरी मार पड़ रही है, क्योंकि देश में पहले से ही महंगाई आरबीआई के लक्ष्य से काफी अधिक है और रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है.
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में कहा कि भारतीय मुद्रा ग्रीनबैक के मुकाबले अन्य वैश्विक मुद्राओं की तुलना में बेहतर स्थिति में है.
डॉलर के मुकाबले रुपये में इतनी अधिक कमजोरी क्यों आ रही है और इसक आम आदमी पर क्या असर होगा, आइए, यहां जानने का प्रयास करते हैं.
ये भी पढ़ें– LPG Gas Cylinder Price: 1 जुलाई की सुबह आई गुड न्यूज- सस्ता हुआ गैस सिलेंडर, दाम में करीब 200 रुपए की कटौती
क्यों आ रही है रुपये में गिरावट?
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये का मूल्य मांग और आपूर्ति के आधार पर काम करता है. यदि अमेरिकी डॉलर की अधिक मांग है, तो भारतीय रुपये का मूल्यह्रास होता है. ठीक उसी तरह से अमेरिकी डॉलर की मांग में कमी आती है, तो भारतीय रुपया मजबूत होता है. इसको इस तरह से समझा जा सकता है कि यदि कोई देश निर्यात से अधिक आयात करता है, तो डॉलर की मांग आपूर्ति से अधिक होगी, तो भारतीय मुद्रा में डॉलर के मुकाबले मूल्यह्रास होगा.
इन दिनों रुपये की गिरावट मुख्य रूप से कच्चे तेल की ऊंची कीमतों, विदेशों में मजबूत डॉलर और विदेशी पूंजी के आउटफ्लो की वजह से देखी जा रही है.
खासकर, रूस-यूक्रेन युद्ध, वैश्विक आर्थिक चुनौतियों, मुद्रास्फीति और कच्चे तेल की ऊंची कीमतों सहित अन्य मुद्दों के मद्देनजर आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान के बाद इस साल की शुरुआत से रुपये में डॉलर के मुकाबले कमजोरी देखी जा रही है.
ये भी पढ़ें– Indian Railways: रेलवे ने 3 जुलाई तक कैंसिल की यूपी, बिहार और उत्तराखंड की ये सभी ट्रेनें, देखें लिस्ट
इसके अलावा, घरेलू बाजारों से भारी विदेशी फंड का आउटफ्लो बना हुआ है, क्योंकि विदेशी संस्थागत निवेशकों ने इस साल अब तक 28.4 बिलियन डॉलर के शेयर बेचे हैं, जो 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान देखी गई 11.8 बिलियन डॉलर की बिकवाली से बहुत अधिक है. इस कैलेंडर वर्ष में अब तक डॉलर के मुकाबले रुपये में 5.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है.
उच्च आयात कीमतों से बढ़ता है दबाव
जैसे-जैसे पैसा भारत से बाहर जाता है, रुपया-डॉलर की विनिमय दर प्रभावित होती है और रुपये का अवमूल्यन होता है. इस तरह का मूल्यह्रास कच्चे माल और कच्चे माल की पहले से ही उच्च आयात कीमतों पर काफी दबाव डालता है, उच्च खुदरा मुद्रास्फीति के अलावा उच्च आयातित मुद्रास्फीति और उत्पादन लागत का मार्ग प्रशस्त करता है.
रुपये में कमजोरी का अर्थव्यवस्था पर असर?
भारत ज्यादातर आयात पर निर्भर करता है, जिसमें कच्चे तेल, धातु, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि शामिल हैं. आयात का बिल चुकाने के लिए हमको अमेरिकी डॉलर में भुगतान करना पड़ता है. चूंकि, अब रुपया कमजोर है तो उतनी ही मात्रा में सामान के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है. ऐसे मामलों में, कच्चे माल और उत्पादन की लागत बढ़ जाती है, जिसका भार उपभोक्ताओं पर पड़ता है.
ये भी पढ़ें– Post Office Scheme: सुरक्षित निवेश के साथ बेहतर भविष्य की गारंटी वाली सीनियर सिटिजन सेविंग स्कीम
दूसरी ओर, कमजोर घरेलू मुद्रा निर्यात को बढ़ावा देती है क्योंकि शिपमेंट अधिक प्रतिस्पर्धी हो जाते हैं और विदेशी खरीदार अधिक क्रय शक्ति प्राप्त करते हैं.
रुपये में गिरावट का सबसे बड़ा असर महंगाई पर पड़ा है, क्योंकि भारत अपने कच्चे तेल का 80 फीसदी से ज्यादा आयात करता है, जो देश का सबसे बड़ा आयात है. इस साल फरवरी में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद से वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से अधिक बनी हुई हैं. तेल की ऊंची कीमतें और कमजोर रुपया अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के दबाव को बढ़ाता जा रहा है.
कच्चे तेल की कीमतों का रुपये पर क्या असर होता है?
भारत अपनी 80 प्रतिशत से अधिक ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कच्चे तेल के आयात पर बहुत ज्यादा निर्भर करता है. जब भी तेल की कीमतों में तेजी आती है, तो यह रुपये पर दबाव डालता है क्योंकि भारत के आयात बिल कच्चे तेल की ऊंची कीमतों पर बढ़ जाते हैं.
ये भी पढ़ें– Small Savings Scheme: 1 जुलाई से PPF, सुकन्या जैसी छोटी बचत योजना पर 0.50% बढ़ सकता है ब्याज, आज होगा ऐलान
मई में ब्रेंट क्रूड 110 डॉलर प्रति बैरल को छू गया था, जो अब बढ़कर 122 डॉलर प्रति बैरल हो गया है. अगर तेल की कीमतें बढ़ रही हैं, तो इसका मतलब है कि आयात लगातार बढ़ रहा है. यह अमेरिकी डॉलर की मांग को बढ़ा रहा है, रुपये के मुकाबले डॉलर को मजबूत होता जा रहा है. इस साल जनवरी से ही भारतीय रुपये में गिरावट देखी जा रही है. इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय मुद्रा की क्रय शक्ति घटती जा रही है.