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चुनावी वादों को पूरा करने के लिए कहां से लाएंगे धन? राजनीतिक दलों से जानकारी लेने की तैयारी में चुनाव आयोग

यह फॉर्म और चुनावी वादे से जुड़ा नया बदलाव चुनाव आचार संहिता का हिस्सा होगा. फिलहाल चुनाव आयोग ने तमाम राजनीतिक दलों से इन फॉर्म पर राय मांगी है और उनसे 19 अक्टूबर तक जवाब देने को कहा है. एक बार राजनीतिक दलों के बीच इस पर आम सहमति बन जाती है तो आगामी चुनाव में इसे लागू किया जा सकता है.

नई दिल्ली. गुजरात और हिमाचल में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग ने एक नई पहल की है. चुनाव आयोग ने झूठे चुनावी वादों और ‘रेवड़ी कल्चर’ पर लगाम लगाने के मकसद से राजनीतिक दलों के लिए एक नया फॉर्म जारी करने की तैयारी में है. प्राप्त जानकारी के मुताबिक, यह फॉर्म मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट का हिस्सा होगा, जिसमें तमाम दलों को बताना होगा कि उनके चुनावी वादे को पूरा करने के लिए धन कहां से आएगा.

यह फॉर्म और चुनावी वादे से जुड़ा नया बदलाव चुनाव आचार संहिता का हिस्सा होगा. फिलहाल चुनाव आयोग ने तमाम राजनीतिक दलों से इस फॉर्म पर राय मांगी है और उनसे 19 अक्टूबर तक जवाब देने को कहा है. एक बार राजनीतिक दलों के बीच इस पर आम सहमति बन जाती है तो आगामी चुनाव में इसे लागू किया जा सकता है.

इस नए नियम लागू हो जाने के बाद राजनीतिक दलों को अपने चुनावी वादे पूरा करने का स्रोत और इसे लागू करने से राज्य के खजाने पर पड़ने वाले वित्तीय प्रभाव के बारे में बताना होगा.

चुनाव आयोग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि राजनीतिक दलों को चुनावी वादे करने से रोका नहीं जा सकता है, लेकिन मतदाता को भी यह जानने का हक है कि उनसे किए गए वादे पूरे कैसे किए जाएंगे. इसी मकसद से चुनाव आयोग ने राजनीतिक पार्टियों के साथ राज्य तथा केंद्र सरकार से विस्तृत खुलासे की मांग की है. इससे वोटरों को राजनीतिक दलों की तुलना करने और यह समझने में मदद मिलेगी क्या चुनावी वादे हकीकत में तब्दील किए जा सकते हैं.

चुनाव आयोग ने इस संबंध में प्रस्ताव दिया है कि जब भी या कहीं भी चुनाव हों तब उस राज्य के मुख्य सचिव या केंद्र के वित्त सचिव एक तय फॉर्मैट में टैक्स और खर्चों का विवरण प्रदान करें.

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