हर व्यक्ति के घर और व्यवसाय में समस्याएं आती रहती हैं. इनसे बचने के लिए वास्तु शास्त्र में मंगलदीप का विधान बताया गया है. यह प्रयोग कांच के प्याले में दीपक जलाकर किया जाता है.
घर और व्यवसाय में कई बार अचानक परेशानियां उठ खड़ी होती हैं. खराब आर्थिक स्थिति तो कभी बीमारी या दांपत्य जीवन में कड़वाहट परिवार का सुख-चैन छीन लेती हैं. इसके लिए ज्योतिष सहित विभिन्न शास्त्रों में कई उपाय बताए गए हैं. इन्हीं में एक उपाय मंगल दीप का भी शामिल है. मान्यता है कि यदि सही विधि से मंगलदीप का प्रयोग किया जाए तो सभी परेशानियां दूर होती हैं.
मंगलदीप जलाने की विधि
पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार, मंगलदीप की विधि वास्तु शास्त्र में बताई गई है. इसके लिए एक कांच का प्याला लें. उसमें कांच का गिलास उल्टा रखें. प्याले का करीब तीन चौथाई भाग पानी से भर दें. गिलास के चारों ओर कांच की गोलियां या लोहे के छर्रे बिखेर दें. फिर गिलास के ऊपर मिट्टी का दीपक रखें. इसे तिल या सरसों के तेल से प्रज्ज्वलित करें. ऐसा प्रयोग रोजाना शाम छह से रात दस बजे तक लगातार करते रहें. सोने से पहले दीपक को बुझा दें. दूसरे दिन बत्ती और पानी बदल कर फिर प्रयोग चालू करें.
कार्य के अनुसार हो मंगलदीप की दिशा
पंडित जोशी के अनुसार, मंगलदीप जलाते समय कुछ सावधानियां व दिशा का ध्यान रखना चाहिए. दीपक कभी ईशान यानी उत्तर-पूर्व दिशा में नहीं जलाना चाहिए. दंपती को वायव्य कोण में दीपक जलाने से बचना चाहिए. आर्थिक समस्या, शत्रु बाधा, चिंता या बीमारी से घिरने पर दीपक अग्नि कोण या घर के मुखिया के कक्ष में प्रज्ज्वलित करना चाहिए. परिवार में किसी के विवाह में बाधा हो तो उसके नैऋत्य कोण में दीपक रखें. मंगलदीप के प्रयोग में अन्य किसी यंत्र या मंत्र की जरूरत नहीं है. किसी कारण से किसी दिन दीपक नहीं जला सके तो कोई हानि नहीं होगी.
मंगलदीप के प्रयोग की अवधि
वास्तु शास्त्रियों के अनुसार, मंगलदीप का प्रयोग एक या दो महीने तक करने से बिगड़े काम बन जाते हैं. फिर भी बीमारी व चिंता से मुक्त होकर सुख-समृद्धि के लिए यह प्रयोग हमेशा भी किया जा सकता है. किसी कार्य विशेष के लिए दीपक जला रहे हैं तो कार्य पूरा होने पर उसके जलाना बंद किया जा सकता है.