Russian Oil Imports : भारत के बड़ी मात्रा में रूस से सस्ता तेल खरीदने के कारण मॉस्को के साथ उसका ट्रेड डेफिसिट (trade deficit) खासा बढ़ गया है, जो दोनों देशों की रुपये में व्यापार की योजना (rupee trade plan) पर भारी पड़ रहा है। भारत और रूस के बीच निर्यात और आयात के बीच का अंतर बढ़ता जा रहा है, जिससे स्थानीय करेंसी में पेमेंट की व्यवस्था बेकार साबित हो रही है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सूत्रों ने कहा कि कोई भी पेमेंट नहीं हो रहा है,
क्योंकि रूसी बैंक अब अपने यहां अतिरिक्त रुपया जमा करना नहीं चाहते हैं। आठ महीने में 16 गुना हुआ आयात ट्रेड मिनिस्ट्री के डेटा के मुताबिक, नवंबर तक आठ महीने में नई दिल्ली का रूस से आयात लगभग 16 गुना हो गया। यूक्रेन के साथ रूस के युद्ध के चलते अमेरिकी प्रतिबंध लगने के बाद रुपये में ट्रेड का विचार सामने आया था। दरअसल, दुनिया में कमोडिटी की कीमतों में बढ़ोतरी के बीच बढ़ते इम्पोर्ट बिल को थामने के लिए भारत ने रूस से सस्ते क्रूड की खरीद बढ़ा दी थी। यह मैकेनिज्म मॉरीशस और श्रीलंका जैसे दूसरे देशों के साथ ऐसी व्यवस्था बनाने के लिए एक नजीर बनकर सामने आया। Russia-Ukraine War : अमेरिका की अपने नागरिकों से तुरंत रूस से निकलने की अपील, जानिए क्यों दी चेतावनी रूस के साथ रुपये में ट्रेड की धीमी प्रगति से स्थानीय करेंसी पर दबाव बढ़ सकता है, जो पिछले 12 महीनों के दौरान एशिया की दूसरी इमर्जिंग इकोनॉमीज की तुलना में सबसे ज्यादा टूटी है। रिकॉर्ड स्तर पर चालू खाता घाटा भारत डॉलर की मांग को कम करने के लिए रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण पर दांव लगा रहा है और चालू खाता घाटे के बाद अपनी अर्थव्यवस्था को वैश्विक झटकों के प्रति कम संवेदनशील बनाना चाहता है।
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current account deficit यानी चालू खाता घाटा माल और सेवाओं में व्यापार का सबसे बड़ा मानक है जो जुलाई-सितंबर में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था। इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में रूस को निर्यात बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा करने के लिए दोनों देशों के अधिकारियों ने पिछले महीने मुलाकात की थी, ताकि रुपये में व्यापार के मैकेनिज्म को वापस पटरी पर लाया जा सके। इस बीच, ट्रेडर्स भी निपटान के अन्य तरीकों पर विचार कर रहे हैं।