Mutual Funds vs Fixed Deposit: जहां जोखिम ज्यादा होता है वहां रिटर्न भी ज्यादा मिलता है और जहां जोखिम कम होता है वहां रिटर्न भी तुलनात्मक रूप से थोड़ा कम होता है. यही वजह है कि आबादी का एक बड़ा तबका बैंकों की फिक्स्ड डिपॉजिट में निवेश करता है. लेकिन, मोटे रिटर्न के लिए अब म्यूचुअल फंड्स में भी निवेश करने वाले लोगों की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है.
Mutual Funds vs Fixed Deposit: मौजूदा समय में एक आम आदमी के पास सेविंग्स के कई ऑप्शन उपलब्ध हैं. सेविंग्स में मुख्य रूप से दो बातें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती हैं. पहली ये कि आपको स्कीम से कितना रिटर्न मिल रहा है और दूसरी बात की आपका पैसा कितना सुरक्षित है. हालांकि, जहां जोखिम ज्यादा होता है वहां रिटर्न भी ज्यादा मिलता है और जहां जोखिम कम होता है वहां रिटर्न भी तुलनात्मक रूप से थोड़ा कम होता है. यही वजह है कि आबादी का एक बड़ा तबका बैंकों की फिक्स्ड डिपॉजिट में निवेश करता है. लेकिन, मोटे रिटर्न के लिए अब म्यूचुअल फंड्स में भी निवेश करने वाले लोगों की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है.
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म्यूचुअल फंड्स
म्यूचुअल फंड्स की ओर लोगों का रुझान काफी तेजी से बढ़ रहा है क्योंकि इसके जरिए निवेशकों को कम समय में मोटा रिटर्न मिल जाता है. हालांकि, म्यूचुअल फंड्स निवेश पर मिलने वाला रिटर्न पूरी तरह से बाजार पर निर्भर करता है. बाजार उठेगा तो रिटर्न बहुत मोटा मिलेगा और अगर बाजार गिरा तो पैसा डूबने की संभावना भी बढ़ जाती है. फिक्स्ड डिपॉजिट अवधि में किसी तरह का कोई चार्ज नहीं लगता है जबकि म्यूचुअल फंड्स में अलग से चार्जेस भी वसूले जाते हैं.
एफडी में निवेश किए गए पैसों पर किसी तरह का रिस्क नहीं होता है. जबकि म्यूचुअल फंड्स के तहत अलग-अलग फंड्स पर अलग-अलग जोखिम बना रहता है. हालांकि, एमएफ में किसी तरह का कोई लॉक-इन पीरियड नहीं होता है. निवेशक जब चाहें, तब अपना पैसा निकाल सकते हैं.
जहां एफडी की सुविधा बैंकों और फाइनेंशियल कंपनियों द्वारा दी जाती है तो म्यूचुअल फंड्स निवेश की सुविधा ऐसेट मैनेजमेंट कंपनियां और फंड हाउस मुहैया कराते हैं. बैंकों से जुड़ी सभी गतिविधियों को भारतीय रिजर्व बैंक रेगुलेट करता है तो शेयर बाजार से जुड़ी गतिविधियों को सेबी (Securities and Exchange Board of India) रेगुलेट करता है.
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फिक्स्ड डिपॉजिट
देश की आम जनता बैंक एफडी पर काफी भरोसा करती हैं क्योंकि यहां आपका पैसा न सिर्फ सुरक्षित रहता है बल्कि आपको एक तय ब्याज दर और तय समय पर तय गारंटीड रिटर्न भी मिलता है. बैंकों द्वारा एफडी पर दिया जाने वाला ब्याज, रिजर्व बैंक के रेपो रेट पर निर्भर करता है. भारतीय रिजर्व बैंक का रेपो रेट जिनता ज्यादा होगा, एफडी पर आपको उतना ही ज्यादा ब्याज भी मिलेगा. इसलिए एफडी पर मिलने वाली ब्याज दरों में हमेशा कम-ज्यादा होता रहता है.
इसके अलावा, अगर आप किसी बैंक में लंबे समय के लिए एफडी कराते हैं तो आपको ब्याज भी ज्यादा मिलता है. इसके अलावा, वरिष्ठ नागरिकों को सामान्य नागरिकों के मुकाबले 0.50 फीसदी ज्यादा ब्याज मिलता है. बताते चलें कि मौजूदा समय में बैंक एफडी पर औसतन 7 प्रतिशत का ब्याज दर मिल रहा है.