देश की आजादी से पहले दक्षिण में त्रावणकोर एक ऐसी रियासत थी, जो विकास के मामले में देश के दूसरे हिस्से से कहीं आगे थी. आजादी के बाद जब भारत में इस बड़ी रियासत के विलय की बात आई तो इसने विलय से इंकार कर दिया. यहां का राजा अपने जाने-माने मंत्री सर सीपी रामास्वामी की बात मानता था. रामास्वामी के बारे में कहा जाता है कि उन पर वहां की महारानी फिदा थीं.
दीवान जर्मनीदास ने अपनी किताब “जर्मनीदास” में इसका विस्तार से जिक्र किया है. सर रामास्वामी के एक- दो फैसले बहुत विवादास्पद भी रहे थे, जिसे लेकर उनकी शिकायत ब्रिटेन तक पहुंची थी. बाद में ब्रिटिश राज के एतराज के बाद इसे खत्म किया गया.
जर्मनीदास लिखते हैं कि एक समय था जब त्रावनकोर रियासत का राजा नाबालिग था. तब महारानी सेथु लक्ष्मीबाई उनकी ओर से सत्ता संभालती थीं. जिसे उस जमाने में रिजेंट कहा जाता था.
राज्य के मंत्री सर सीपी रामास्वामी प्रभावशाली व्यक्ति थे. यहां तक कि ये भी चर्चाएं थीं कि वो फोन से वायसराय विलिंगटन की पत्नी से भी लंबी-लंबी प्रेम वार्ताएं करते हैं. रामास्वामी पेशे से वकील थे लेकिन उन्होंने कई असरदार स्थितियों में काम किया था. वो सुदर्शन शख्सियत के स्वामी थे.
महारानी की सुंदरता के थे चर्चे
महारानी सेथु लक्ष्मीबाई की सुंदरता के चर्चे थे. जब सीपी रामास्वामी पहली बार त्रावणकोर आए तो वो महारानी से मिले. वो महारानी पर मोहित हो गए. चूंकि अंग्रेज अधिकारियों से सीपी रामास्वामी के रिश्ते बहुत अच्छे थे, लिहाजा उन्होंने ऐसा प्रबंध कराया कि वो राज्य में दीवान बनकर आ गए. उन दिनों महत्वपूर्ण रियासतों में दीवान की नियुक्ति के लिए वायसराय से मंजूरी लेनी होती थी.
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हर किसी की जुबान पर थी ये प्रेम कहानी
मंत्री बनकर आने के बाद रामास्वामी ने विधवा रानी से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कीं. महारानी ने भी प्यार का जवाब उसी अंदाज में दिया. दोनों के बीच बहुत जल्दी प्रगाढ़ प्रेम संबंध बन गए. यहां तक कि उनके प्रेम की कहानी रियासत में हर किसी की जुबां पर थी.
धीरे धीरे ये लव स्टोरी राजनीतिक क्षेत्रों में फैली. फिर वायसराय हाउस तक पहुंची. लेकिन रामास्वामी और सेथु लक्ष्मीबाई का असर काफी बड़े हलके में था. लिहाजा इन चर्चाओं से ना तो उनका कुछ बिगड़ा और ना ही उनके प्रेम संबंधों पर कोई आंच आई. हालांकि रामस्वामी के फैसले और कार्यशैली से त्रावणकोर की जनता बहुत खुश नहीं थी.
एक साथ जहाज से गए थे लंदन
लंदन में हुई गोलमेज कांफ्रेंस में रामास्वामी और महारानी एकसाथ पानी के जहाज से वहां गए थे. जहाज का एक पूरा कोना दोनों के लिए आरक्षित था. किताब में लिखा है कि जहाज पर महारानी और रामस्वामी खुले तौर पर प्रेम का इजहार करते दिखते थे. जहाज के मुसाफिर ये सब देखते रहे. रामास्वामी का महल में भी महारानी के पास अबाध आना-जाना होता था.
आजादी के दौरान जब सीपी रामास्वामी ने युवा महाराजा को अपने असर में लेकर त्रावणकोर को स्वतंत्र घोषित कर दिया तो वहां की जनता क्षुब्ध हो गई, क्योंकि वो भारत में विलय चाहती थी. इस दौरान रामास्वामी पर एक व्यक्ति ने चाकू से जानलेवा हमला किया. जिससे उन्हें गहरे घाव आए. इसके तुरंत बाद त्रावणकोर ने भारत में मिलना मान लिया.
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बाद में महारानी का जीवन
त्रावणकोर के विलय के बाद महारानी मद्रास चली गईं. इसके बाद वो बेंगलुरु में शिफ्ट हो गईं. वहां उन्होंने अपना बंगला बनवाया. करीब 25 सालों तक महारानी वहीं रही. 1985 में वहीं उनका निधन हो गया. हालांकि ये भी कहा जाता है कि त्रावणकोर ने महारानी के राज के दौरान काफी तरक्की की, जिसमें रामास्वामी का भी हाथ था. हालांकि भारत की आजादी के बाद सीपी रामास्वामी लंदन चले गए. वहीं वो बस गए. कई देशों के राष्ट्रप्रमुखों से उनके अच्छे रिश्ते थे. लंदन में 1966 में उनका निधन हो गया.