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बिज़नेस

गुब्बारे बेचने से शुरू हुआ सफर, आज है 38,000 करोड़ की कंपनी, 1 लाख के करीब 1 शेयर की कीमत

MRF Success Story: एमआरएफ (मद्रास रबर फैक्ट्री) की शुरुआत एक गुब्बारे बनाने और बेचने वाली कंपनी के रूप में हुई थी. कंपनी ने टायर बनाने की शुरुआत 1961 में की थी.

MRF Success Story: के. एम मैमन मापिल्लई ( K.M. Mammen Mappillai) का नाम संभवत: बहुत कम ही लोगों ने सुना होगा. हां, लेकिन इनकी कंपनी का नाम बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सबको पता होगा. मैमन मापिल्लई भारत की सबसे बड़ी टायर निर्माता कंपनियों में से एक एमआरएफ (MRF) या मद्रास रबर फैक्ट्री के संस्थापक हैं. एमआरएफ की कहानी शुरू होती है 1946 से, जब मापिल्लई मद्रास में गुब्बारे बेचा करते थे. उनके पास एक छोटी फैक्ट्री जहां वह इनका प्रोडक्शन करते और फिर खुद ही गली-गली जाकर इसकी बिक्री करते. तब तक उन्हें ये नहीं पता था कि यही रबड़ एक दिन बड़ी विदेशी कंपनियों को भी देश से बाहर का रास्ता दिखा देगी.

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1952 में उन्हें पता चला कि एक विदेशी कंपनी भारत में किसी रिट्रेडिंग प्लांट को ट्रेड रबर सप्लाई करती है. रिट्रेडिंग पुराने टायरों को दोबारा इस्तेमाल करने लायक बनाने को कहते हैं और ट्रेड रबर टायर का ऊपरी हिस्सा होती है जो जमीन के साथ संपर्क बनाती है. मापिल्लई ने सोचा कि यह काम तो वह भी कर सकते हैं.

नई कंपनी
उन्होंने गुब्बारे बेचकर जो संपत्ति बनाई थी वह सारी पूंजी इस कारोबार में झोंक दी. यह काफी बड़ा रिस्क था लेकिन उन्हें इसका फल भी जबरदस्त मिला. मजेदार बात यह थी कि एमआरएफ ही इकलौती भारतीय कंपनी थी जो ट्रेड रबर का निर्माण कर रही थी. इस क्षेत्र की बाकी सभी कंपनियां तब विदेशी थी. 4 साल के अंदर एमआरएफ का मार्केट शेयर 50 फीसदी पहुंच गया. यह कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के भारत से जाने का कारण बना. मैमन यहीं नहीं रुके और उन्होंने अब सीधे टायर ही बनाने की ठान ली.

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टायर बनाने की शुरुआत
1961 में मैमन ने टायर बनाने के लिए कारखाना स्थापित कर दिया. हालांकि, टायर बनाने के लिए कंपनी तकनीकी रूप से सशक्त नहीं थी और इसलिए एमआरएफ ने अमेरिकी कंपनी मैनसफील्ड टायर एंड रबर कंपनी के साथ साझेदारी की. इसी साल कंपनी मद्रास स्टॉक एक्सचेंज में अपना आईपीओ भी ले आई. उस समय घरेलू उद्योगों को सरकार से भी तगड़ा समर्थन मिलता था. एमआरएफ ने सरकारी टेंडर्स के लिए आवेदन शुरू कर दिया. 1963 तक एमआरएफ के जाना-माना नाम बन चुकी थी.

मार्केटिंग ने घर-घर पहुंचाया
कंपनी को एक बात समझ आ गई थी कि अभी वह गाड़ियों की मैन्युफैक्चरिंग के समय अपना टायर लगवाने में सफल नहीं हो रही है. उसे डनलप, गुडईयर जैसी कंपनियों से तगड़ी प्रतिस्पर्धा मिल रही है. इसलिए एमआरएफ ने अपने टायर सीधे मार्केट में उतार दिए और यह सुनिश्चित किया कि जब कोई टायर रिप्लेस करे तो उसके मन में एमआरएफ का ही खयाल आए. इसके लिए मार्केटिंग दिग्गज और विज्ञापनों की भारत में दिशा बदलने वाले दिवंगत अलीक पदमसी (Alyque Padamsee) को हायर किया गया.

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काफी रिसर्च के बाद एमआरएफ मसलमैन का जन्म हुआ जो मजबूती और टिकाऊ टायर का प्रतीक बन गया. कंपनी ने विज्ञापन के लिए अन्य तरीकों के अलावा क्रिकेट बैट्स को टारगेट किया. सचिन तेंदुलकर और ब्रायन लारा से लेकर विराट कोहली तक इसके ब्रैंड एम्बेसडर बने और बच्चों के बीच खूब प्रसिद्ध हुआ. यही बच्चे जब बड़े हुए तो टायर के लिए उनके मन में एमआरएफ की तस्वीर छप चुकी थी.

शेयर मार्केट में तूती
एमआरएफ का 1 शेयर आज 84,046 रुपये का है. 1990 में 332 रुपये थी. आज यह भारतीय बाजार का संभवत: सबसे महंगा स्टॉक है. यह शेयर 7 नवंबर 2022 को 96000 रुपये तक पहुंचा था. 1990 में अगर किसी ने इसमें 1 लाख रुपये का निवेश किया होता तो आज उसके पास 2.52 करोड़ रुपये से अधिक के स्टॉक्स होते.

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