वर्ल्ड बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, FY2023-24 में भारत की ग्रोथ रेट 6.3% रहने का अनुमान है.
निवेश और घरेलू मांग के दम पर भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) के चालू वित्त वर्ष 2023-24 में 6.3 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है.
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विश्व बैंक (World Bank) की मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, चुनौतीपूर्ण वैश्विक माहौल की पृष्ठभूमि में भारत लगातार लचीलापन दिखा रहा है.
विश्व बैंक (World Bank) की भारत की वृद्धि से जुड़ी अपडेटेड जानकारी के मुताबिक, भारत जो दक्षिण एशिया क्षेत्र का बड़ा हिस्सा है, वहां 2023-24 में वृद्धि दर 6.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है.
मुद्रास्फीति (Inflation) पर रिपोर्ट में कहा गया कि खाद्य पदार्थों की कीमतें सामान्य होने और सरकारी कदमों से प्रमुख वस्तुओं की सप्लाई बढ़ाने में मदद मिलने से इसके धीरे-धीरे कम होने की उम्मीद है.
क्या है भारतीय अर्थव्यवस्था?
इंडियन इकोनॉमी एक कांसेप्ट है जो उस सिस्ट से संबंधित है जो किसी देश की सभी आर्थिक गतिविधियों को मैनेज करती है. इसमें कृषि, उद्योग और सेवाओं जैसे अलग-अलग सेक्टर्स को उनके उप-खंडों के साथ शामिल किया गया है.
वर्ल्ड बैंक का इस्तेमाल क्यों किया जाता है?
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वर्ल्ड बैंक दुनिया भर के विकासशील देशों को फाइनेंशियल और टेक्निकल सहायता का एक महत्वपूर्ण सोर्स है. यह सामान्य अर्थों में एक बैंक नहीं हैं बल्कि गरीबी कम करने और विकास को समर्थन देने वाली एक अनूठी साझेदारी हैं. विश्व बैंक समूह में उनके सदस्य देशों द्वारा प्रबंधित पांच संस्थान शामिल हैं.
क्या है इन्फ्लेशन?
इन्फ्लेशन साल-दर-साल आधार पर थोक मूल्य सूचकांक (WPI) के प्राइस में प्रतिशत परिवर्तन है. यह एक साल में वस्तुओं और सेवाओं की एक चेन की कीमतों में बदलाव को प्रभावी ढंग से मापता है. भारत में इन्फ्लेशन की कैलकुलेशन WPI को आधार मानकर की जाती है.
इन्फ्लेशन अर्थव्यवस्था को करती है प्रभावित?
जब एनर्जी, फूड, कमोडिटीज और अन्य वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ती हैं, तो पूरी अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है. बढ़ती कीमतें, जिन्हें मुद्रास्फीति (Inflation) के रूप में जाना जाता है, जीवन यापन की लागत, व्यवसाय करने की लागत, पैसा उधार लेना, बंधक, कॉर्पोरेट और सरकारी बांड पैदावार और अर्थव्यवस्था के हर दूसरे पहलू पर प्रभाव डालती हैं.
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दूसरे देशों को कैसे प्रभावित करती है इन्फ्लेशन?
सामान्यतया, जब मुद्रास्फीति अधिक होती है, तो यह करेंसी को कमजोर बना देती है, निवेश को दबा देती है और इस प्रकार विनिमय दर पर निगेटिव असर डालती है. जब मुद्रास्फीति कम होती है, तो मुद्रा मजबूत होती है, जिससे उसकी विनिमय दर में सुधार होता है.