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मोदी सरकार ने चीन को तीसरी बार दिया झटका

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केंद्र की मोदी सरकार ने चीन को एक बार फिर झटका दिया है. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी परियोजना में से एक बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के 10 साल पूरे होने वाले हैं. लेकिन भारत सरकार ने लगातार तीसरी बार इसके शिखर सम्मेलन में शामिल होने से इनकार कर दिया है. 

चीन का बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) पहले से ही संकट में है. चीन ने बीआरआई प्रोजेक्ट के दांव पर 20 से अधिक देशों को मार्च 2023 तक 240 अरब डॉलर से अधिक का कर्ज दे चुका है. ऐसे में भारत की ओर से इस शिखर सम्मेलन में शामिल होने से इनकार करना, चीन को आइना दिखाने की तरह है.

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भारत शुरुआत से ही ‘बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव’ का विरोध करता रहा है. भारत साफ तौर पर कहता रहा है कि वह ऐसी किसी परियोजना को स्वीकार नहीं करेगा, जो उसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करता हो.

दरअसल, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की एक महत्वपूर्ण परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) से होकर गुजरता है जिसे भारत अपना अभिन्न हिस्सा मानता है. इस इलाके में आर्थिक गतिविधियों में चीन के शामिल होने पर भारत ऐतराज जताता रहा है. 

बीआरआई के शिखर सम्मेलन में भारत नहीं होगा शामिल

रिपोर्ट के मुताबिक, विवादास्पद सीपीईसी (चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर) प्रोजेक्ट को लेकर संप्रभुता के मुद्दों पर अपना रुख स्पष्ट करते हुए भारत ने एक बार फिर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के शिखर सम्मेलन में शामिल होने से इनकार कर दिया है. यह लगातार तीसरी बार है जब भारत बीआरआई के शिखर सम्मेलन का बहिष्कार कर रहा है. 

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मंगलवार को चीन की मेजबानी में दो दिवसीय बेल्ट एंड रोड फोरम फॉर इंटरनेशल कोऑपरेशन (बीआरएफआईसी) का आयोजन ऐसे समय में किया जा रहा है जब श्रीलंका, मालदीव, पाकिस्तान, जिबूती और बांग्लादेश जैसे छोटे देशों को कर्ज की जाल में फंसाने को लेकर चीन की काफी आलोचना की जा रही है.

इससे पहले 2017 और 2019 में भी चीन ने अपनी मेगा वैश्विक बुनियादी ढांचा पहल के तहत दो अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया था. लेकिन भारत उन दोनों बैठकों में भी शामिल होने से इनकार कर दिया था. आधिकारिक सूत्रों ने कहा है कि पिछले दो बीआरआई सम्मेलनों की तरह इस साल भी भारत बीआरआई सम्मेलन का बहिष्कार करेगा. 

भारत क्यों कर रहा है BRI का विरोध?

बीआरआई प्रोजेक्ट के तहत बन रहे सीपीईसी का भारत इसलिए भी विरोध कर रहा है क्योंकि बीआरआई के बहाने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में चीनी सैनिकों की उपस्थिति हमेशा बनी रहेगी. जो रणनीतिक तौर पर भारत के लिए खतरा से कम नहीं है.

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सीपीईसी परियोजना के तहत चीन काशगर के रास्ते पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह तक पहुंचेगा. जिससे चीन की पहुंच अरब सागर तक सुनिश्चित हो जाएगी. इसके अलावा सीपीईसी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के सबसे उत्तरी इलाके गिलगिट बाल्टिस्तान क्षेत्र में भी प्रवेश करती है. विशेषज्ञों का कहना है कि चीन इस प्रोजेक्ट की मदद से कश्मीर में तीसरी ताकत बनने की फिराक में है.

हिंद महासागर में चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स पॉलिसी भी चीन की इसी सिल्क रूट का हिस्सा है जिसे बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के नाम से भी जाना जाता है. 

हालांकि, चीन इन आरोपों को खारिज करता रहा है. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का कहना है कि बाआरआई का उद्देश्य न तो चीन के भू-राजनीतिक उद्देश्यों को साधना है और न ही कोई गुट बनाना है. उनका कहना है कि इस प्रोजेक्ट से पूरी दुनिया को फायदा होगा.

भारी भरकम निवेश

चीन इस प्रोजेक्ट पर भारी भरकम निवेश कर रहा है. अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मई 2023 तक चीन इस प्रोजेक्ट पर 1 ट्रिलियन से ज्यादा खर्च कर चुका है. वहीं, थिंक टैंक ऑर्गेनाइजेशन काउंसिल ऑन फॉरन रिलेशन्स (सीएफआर) ने विशेषज्ञों से हवाले से कहा है कि चीन इस प्रोजेक्ट पर 8 ट्रिलियन डॉलर तक खर्च कर सकता है. 

बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट की मदद से चीन दुनिया की अर्थव्यवस्था पर अपनी पकड़ और गहरी करना चाहता है. इसके जरिए चीन मध्य एशिया और पश्चिम एशिया के माध्यम से फारस की खाड़ी और भूमध्य सागर से सीधे जुड़ जाएगा. इसके अलावा यह प्रोजेक्ट चीन को दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया और हिंद महासागर से भी जोड़ेगा. बीआरआई प्रोजेक्ट दुनिया की दो तिहाई आबादी को चीन की अर्थव्यवस्था से सीधे जोड़ देगा. इसकी मदद से चीन अपने उत्पादों को दुनिया के बाजारों तक आसानी से पहुंचा पाएगा. 

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