Lung Cancer Causes: भारत में फेफड़ों का कैंसर बढ़ रहा है. इसके लिए धूम्रपान नहीं बल्कि 3 बड़े कारण जिम्मेदार हैं, जिनमें खराब एयर क्वालिटी और बढ़ता वायु प्रदूषण प्रमुख कारण है. वहीं बिना एक सिगरेट पीए, पैसिव स्मोकिंग भी बीमारी के लिए जिम्मेदार है.
Lung Cancer News: ‘हाल ही में द बिग बैंग थ्योरी में लूसी का किरदार निभाने वाली एक्ट्रेस कैट मिकुसी ने एक टिक टॉक वीडियो में खुद के लंग कैंसर से पीड़ित होने की बात बताई है. फेफड़ों में कैंसर की सर्जरी कराने के बाद मिकुसी ने कहा कि अजीब बात है, उन्होंने अपने जीवन में कभी एक सिगरेट तक नहीं पी लेकिन उन्हें लंग कैंसर डायग्नोस हुआ है’…. ऐसा सिर्फ मिकुसी के साथ ही नहीं हुआ है, बल्कि दुनिया में एक बड़ी आबादी बिना स्मोकिंग या धूम्रपान के किए भी लंग कैंसर से जूझ रही है. इनमें महिलाओं की संख्या ज्यादा है.
अक्टूबर 2023 में जर्नल ऑफ थोरेसिक ऑन्कोलॉजी में छपी इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर द स्टडी ऑफ लंग कैंसर अर्ली डिटेक्शन एंड स्क्रीनिंग कमेटी की एक रिपोर्ट बताती है कि 2007 के बाद से दुनिया में फेफड़ों के कैंसर की वजह से मौतों में 30 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है जबकि धूम्रपान में कमी हो रही है. ऐसे में बड़ा सवाल है कि स्मोकिंग नहीं तो फिर कौन सी वजहें हैं जो लोगों को लंग कैंसर का शिकार बना रही हैं?
एम्स दिल्ली के डिपार्टमेंट ऑफ पल्मोनरी, क्रिटिकल केयर एंड स्लीप मेडिसिन में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर रहते हुए इस रिसर्च स्टडी से जुड़े रहे दिल्ली के सीताराम भारतीय इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड रिसर्च में डॉ. तेजस सूरी कहते हैं कि भारत में लंग कैंसर के मामले बढ़ने के पीछे 3 बड़े कारण देखे जा रहे हैं.
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. वायु प्रदूषण
डॉ. सूरी कहते हैं कि रिसर्च में सामने आया है कि लंग कैंसर और वायु प्रदूषण का गहरा कनेक्शन है. आज धूम्रपान, फेफड़ों के कैंसर का बड़ा कारण नहीं है बल्कि पॉल्यूशन है. कई स्टडीज कहती हैं कि दिल्ली-एनसीआर में बहुत खराब केटेगरी में पहुंची हवा में रहना 20-25 सिगरेट के धुएं में रहने के बराबर है, ऐसे में जैसे-जैसे प्रदूषण बढ़ रहा है, कैंसर के मरीज और उससे मौतें भी बढ़ रही हैं.
हालांकि प्रदूषण के लिए सिर्फ आउटडोर पॉल्यूशन जैसे खराब एयर क्वालिटी, गाड़ियों का धुआं, उद्योग और फैक्ट्री से प्रदूषण ही नहीं बल्कि इनडोर प्रदूषण भी जिम्मेदार है. सूरी कहते हैं कि घरों के अंदर धुएं में खाना पकाने, हीटिंग के लिए कोयला या उपले जलाने से होने वाले प्रदूषण के एक्सपोजर से भी ये बीमारी हो रही है. चूंकि इस बीमारी के लक्षण प्रकट होने में 20-25 साल भी लग जाते हैं ऐसे में पुराने एक्सपोजर के कारण अब कैंसर के मरीज सामने आ रहे हैं.
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2. पैसिव स्मोकिंग
डॉ. सूरी कहते हैं कि धूम्रपान से लंग कैंसर होता है, यह पुरानी बात हो गई है. आजकल बहुत सारे मामले नॉन स्मोकर्स में लंग कैंसर के आ रहे हैं. जिन्होंने अपने जीवन में कभी बीड़ी-सिगरेट को हाथ नहीं लगाया वे आज फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित हैं. इसकी वजह पैसिव स्मोकिंग या सेकेंड हैंड स्मोकिंग है.
स्वस्थ रहना है तो सिर्फ खुद ही नहीं बल्कि परिवार में भी किसी को स्मोकिंग न करने दें.
अगर आप सिगरेट नहीं पीते हैं लेकिन आपके घर में, ऑफिस में या पड़ोस में कोई 10-20 सिगरेट रोजाना पीता रहता है और आप उसके साथ बने रहते हैं और उसके धुएं को इनहेल करते रहते हैं तो यह आपके लिए मुसीबत बन सकता है. संभव है कि सिगरेट पीने वाले से पहले आपके फेफड़े जवाब दे जाएं और उसके बजाय आपको कैंसर चपेट में ले ले. इसकी वजह ये भी है कि स्मोकर, सिगरेट पीते समय धुएं को बाहर फेंक देता है, लेकिन आसपास का व्यक्ति उसे सांस से अंदर खींच लेता है, इसलिए स्मोकर कोई भी हो, उससे दूरी बनाकर रखें.
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3. जेनेटिक लिंक
तीसरा सबसे बड़ा कारण आनुवांशिक रूप से बीमारी का एक्सपोजर है. हाल ही में ताइवान लंग कैंसर स्क्रीनिंग इन नेवर स्मोकर ट्रायल रिपोर्ट द लेंसेट जर्नल में प्रकाशित हुई है जो कहती है कि लंग कैंसर की फैमिली हिस्ट्री होती है. इसको रोकना काफी मुश्किल है. डॉ. सूरी कहते हैं कि अगर किसी को परिवार में लंग कैंसर है तो उसकी पहली पीढ़ी में इसके होने के चांसेज होते हैं. मान लीजिए किसी 30 साल के व्यक्ति को लंग कैंसर है और बीमारी के दौरान वह पिता बनता है तो उसकी संतान में कैंसर के जीन पहुंचकर बीमारी फैला सकते हैं.
भारत में हालात हैं बेहद खराब
इसी साल आई आईसीएमआर और एम्स की स्टडी का हवाला देते हुए एम्स के डिपार्टमेंट ऑफ रेडियोडायग्नोसिस एंड इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अमरिंदर सिंह माल्ही बताते हैं कि भारत में आयुष्मान भारत स्कीम के तहत लाभ लेने वालों में 70 फीसदी मरीज कैंसर के हैं. जिनमें अधिकांश मरीज तंबाकू, सिगरेट, बीड़ी, खैनी की वजह से ओरल और लंग कैंसर से ग्रस्त रहे हैं.
डब्ल्यूएचओे के अनुमान के मुताबिक 2025 तक भारत में कैंसर की घटनाएं साढ़े 15 लाख सालाना से ऊपर पहुंच जाएंगी. 2022 में मरीजों की करीब संख्या साढ़े 14 लाख दर्ज की गई है. दिलचस्प है कि सरकार कैंसर के इन मरीजों के इलाज पर इतना पैसा खर्च कर रही है, जितना कि वह तंबाकू उत्पादों से राजस्व नहीं जुटा रही.