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अब बीमा पॉलिसी सरेंडर पर प्रीमियम में नहीं लगेगी ज्यादा चपत

नई दिल्ली : अगर आप रिटर्न देने के मोर्चे पर नाकाम रहने वाली पॉलिसी के जाल में फंस गए हैं तो आपको क्या करना चाहिए? या आपको पता चलता है कि आप किसी बीमा एजेंट ने कमीशन के चक्कर में आपको गलत पॉलिसी थमा दिया है। ऐसे में आप अपनी पॉलिसी को सरेंडर करना चाहते हैं, तो आपको भुगतान किए गए प्रीमियम का एक बड़ा हिस्सा खोने की संभावना नहीं है।

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इंश्योरेंस रेगुलेटर IRDAI ने पॉलिसीहोल्डर्स के हितों की रक्षा के लिए नए नियमों का प्रस्ताव दिया है। इसके तहत बीमा कंपनियों को उन कस्टमर्स को भुगतान किए जाने वाले अमाउंट में बढ़ोतरी करनी होगी जो अपनी योजना को जल्दी बंद करने का विकल्प चुनते हैं। इससे निपटने के लिए बीमा कंपनियों के पास कम बिक्री या कम मुनाफे का विकल्प है। यदि बीमा कंपनी कमीशन में कटौती करके हाईयर पेआउट का विकल्प चुनती हैं, तो यह पॉलिसी की बिक्री को प्रभावित कर सकता है। दूसरी तरफ यदि वे अपना कमीशन बनाए रखते हैं, तो उन्हें पॉलिसी से मिलने वाली आमदनी का नुकसान होगा। इसी का परिणाम है कि लिस्टेड प्राइवेट लाइफ इंश्योरेंस कंपनियों के शेयरों में गुरुवार को गिरावट आई। एचडीएफसी लाइफ 1.9%, जबकि आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ 1.8% गिर गया।

हालांकि रेगुलेटर ने लिमिट वैल्यू तय नहीं की है, लेकिन पॉलिसी सरेंडर वैल्यू को दूसरे वर्ष में मौजूदा लेवल से लगभग 1.8 गुना और पांचवें वर्ष में 0.8 गुना अधिक होना होगा। सूत्रों के अनुसार, इस कदम का मकसद इंश्योरेंस कंपनियों को पहले साल में कमीशन के चक्कर में गलत बिक्री पर अंकुश लगाना है।

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इसके साथ ही यह सुनिश्चित करना है कि बीमा कंपनी अपनी क्षमता को बनाए रखने के लिए अपनी पूरी कोशिश करें।

नए नियम IRDAI के प्रस्तावित इंश्योरेंस प्रॉडक्ट नियमों का एक हिस्सा हैं। इसमें कहा गया है, हरेक प्रॉडक्ट के लिए एक प्रीमियम लिमिट की परिभाषा तय की जाएगी, जहां इस लिमिट से अधिक प्रीमियम की शेष राशि पर कोई सरेंडर चार्ज नहीं लगाया जाएगा, भले ही पॉलिसी सरेंडर करने का समय कुछ भी हो। इंश्योरेंस रेगुलेटर ने उन पॉलिसियों से सरेंडर चार्ज की कटौती के लिए एक लिमिट का प्रस्ताव किया है, जो जल्दी बंद हो जाती हैं। प्रस्तावित लिमिट कई कंपनियों द्वारा बीमा पॉलिसियों से कटौती की तुलना में बहुत कम है।

इंश्योरेंस कंपनियां सरेंडर चार्ज काटती हैं, क्योंकि वे पॉलिसी बेचने की अपनी सभी कॉस्ट को पहले ही बुक करती हैं। उदाहरण के लिए, ऐसे मामले हैं जब पहले वर्ष के प्रीमियम का 75% अलग-अलग कॉस्ट पर जाता है। इनमें कॉरपोरेट एजेंट (आमतौर पर बैंक) या एक पर्सनल एजेंट को पे किया जाता है।

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हालांकि यह पहली बार नहीं है जब इंश्योरेंस रेगुलेटर कंपनियों को सरेंडर चार्ज पर जोर दे रहा है। एक दशक पहले रेगुलेटर ने कंपनियों द्वारा यूनिट लिंक्ड बीमा योजनाओं से चार्ज की अधिकतम सीमा तय कर दी थी।

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