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‘मेक इन इंडिया’ का ठप्पा लगाकर बिक रहे चीनी खिलौने, देसी कंपनियों को भारी नुकसान

नई दिल्ली: खिलौनों की क्वालिटी सुधारने के उद्देश्य से भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) ने कड़े नियम बनाए हैं। इन नियमों का सख्ती से पालन नहीं हो रहा है। सरकार की कोशिशों के बावजूद टॉयज के इंपोर्ट में कमी नहीं आ रही है। इससे देसी निर्माताओं को नुकसान हो रहा है।

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खिलौना निर्माता सरबजीत सिंह ने बताया कि BIS ने मैन्युफैक्चरर्स के लिए लाइसेंसिंग प्रक्रिया आसान की है। रिन्युअल फीस में भी रियायत दी जाती है। माइक्रो इंडस्ट्रीज को कई तरह की छूट मिलती है। इन सबके बावजूद निर्माताओं का माल उम्मीद के मुताबिक नहीं बिक रहा है। दरअसल, अलग-अलग तरह से विदेशी खिलौने इंपोर्ट हो रहे हैं। उससे नुकसान झेलना पड़ रहा है। BIS का नियम 14 साल से कम उम्र के बच्चों के खिलौनों पर लागू होता है। ऐसे में एक्सपोर्टर अपने टॉयज पर शो करते हैं कि वो 14 साल के अधिक उम्र के बच्चों के लिए है। फिर ये BIS नॉर्म्स से बाहर हो जाते हैं। ये टॉयज आसानी से इंपोर्ट हो जाते हैं।

चीन से खिलौनों के कई पार्ट्स अलग-अलग पोर्ट से भारत में आ रहे हैं। यहां पेचकस से कसकर ‘मेक इन इंडिया’ डब्बों में पैककर बेचते हैं जबकि भारत में खिलौना नहीं बना है। सरबजीत ने बताया कि BIS लागू होने से पहले 85 प्रतिशत खिलौने बाहर से आते थे। तमाम प्रयासों के बावजूद इंपोर्ट में ज्यादा कमी नहीं ला सके हैं। आज भी 50 से 60 प्रतिशत खिलौने विदेश से आते हैं। कुछ टॉयज मिस डिक्लियरेंस करके लाए जा रहे हैं। इनमें खिलौने का नाम नहीं होता है। उसमें गिफ्ट और डेकोरेटिव आइटम शो करते हैं। इससे इंपोर्ट ड्यूटी और BIS से भी बच जाते हैं। सरकार को इस पर ध्यान देना होगा।

दुकान पर खिलौना देखकर पसंद करते हैं बच्चे

द टॉयज असोसिएशन ऑफ इंडिया के चीफ कॉर्डिनेटर अमिताभ खरबंदा ने कहा कि BIS ने तय कर रखा है कि एक पार्टिकुलर खिलौना 3 साल या 5 साल से ऊपर का बच्चा ही खेल सकता है। मगर, इंपोर्टेड खिलौनों पर लिखा होगा कि उसे 14 साल से ज्यादा उम्र के बच्चे खेल सकते हैं, तो यह नियमों का सरासर उल्लंघन है। कोई भी निर्माता 10 तरह के खिलौने बनाता है। यदि सभी पर लिखे कि 14 साल से बड़े बच्चे खेलेंगे, तो किसी को लैब लगाने की जरूरत ही नहीं है। बच्चे दुकान में खिलौना देखकर पसंद करते हैं। कोई ग्रेडिंग पर ध्यान नहीं देता। इस तरह की समस्याओं पर सरकार को गौर करना चाहिए। कोशिश हो कि देसी निर्माताओं का प्रोडक्शन और बिजनेस दोनों बढ़े।

अपेक्षा के अनुरूप नहीं इंडस्ट्री का ग्रोथ

द टॉयज असोसिएशन ऑफ इंडिया के प्रेजिडेंट अजय अग्रवाल ने कहा कि इंपोर्टेड टॉयज पर BIS के नियम लागू नहीं हो पा रहे हैं। काफी मात्रा में खुला माल विदेश से आ रहा है। BIS को गहन विचार करना होगा। मैन्युफैक्चरर्स को प्रोटेक्ट करने की जरूरत है। नियम ऐसे हों, जिससे लोकल निर्माताओं को काम मिले। अभी पॉलिसी में क्लियरिटी नहीं है। खिलौनों के पार्ट्स के साथ तैयार टॉयज भी विदेश से आ रहे हैं। दिल्ली और देश के दूसरे बाजार विदेशी खिलौनों से भरे हैं। सरकार भारतीय खिलौना निर्माताओं और व्यापारियों को आगे बढ़ाना चाहती है। फिर भी इंडस्ट्री ग्रोथ अपेक्षा के अनुरूप नहीं है।

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देश में बहुत कम मैन्युफैक्चरर्स के पास लाइसेंस है। अधिक से अधिक लोगों को लाइसेंस दिए जाएं। व्यापारियों और निर्माताओं के संग इंटरेक्शन होगा, तो अधिक लोग खिलौना उद्योग से जुड़ेंगे। BIS के संदर्भ में इंपोर्ट पॉलिसी के मापदंड स्पष्ट होने चाहिए।

खिलौनों पर जनवरी 2021 से BIS मानक अनिवार्य

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के तहत आने वाला BIS मानक तय करने वाला राष्ट्रीय निकाय है। जनवरी 2021 से खिलौने के लिए गुणवत्ता प्रमाणन अनिवार्य किया गया है। किसी भी व्यापारी को ऐसे खिलौनों का निर्माण, आयात, बिक्री या वितरण, भंडारण या बिक्री के लिए प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं है, जो भारतीय मानक के अनुरूप नहीं हैं।

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BIS ने जुलाई 2022 में लोगों से ISI के निशान वाले खिलौने खरीदने का आग्रह किया था। इससे टॉयज की क्वालिटी का प्रमाणन सुनिश्चित होता है। उपभोक्ताओं को यदि पता चलता है कि खिलौने बिना ISI के निशान के बेचे जा रहे हैं, तो इसकी शिकायत कर सकते हैं। BIS केयर मोबाइल ऐप पर कंप्लीट दर्ज हो सकती है।

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