दिल्ली और उत्तर भारत के इलाकों में पिछले दो तीन दिनों से न्यूनतम तापमान 04 डिग्री के नीचे रिकॉर्ड किया गया. जब तापमान इतना नीचे गिरने लगता है तो ये शरीर के लिए बहुत खतरनाक हो जाता है. जानिए कैसे
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इन दिनों दिल्ली में न्यूनतम तापमान 3 डिग्री के आसपास भी चला गया है. 13, 14 और 15 जनवरी की तड़के के आसपास या उससे पहले दिल्ली एनसीआर में तापमान 03 डिग्री सेल्सियस या नीचे रिकॉर्ड किया गया है. उत्तर भारत में इस कड़ाके की ठंड में कई ऐसे इलाके हैं, जहां टैम्परेचर काफी नीचे चला गया. इन दिनों उत्तर भारत में तापमान हांड़ कंपाने वाली ठंड का है.
जब तापमान 04 डिग्री या कम होने लगता है तो ये हमारे शरीर के लिए बहुत खतरनाक स्थिति होती है. जानिए इतनी ठंड का शरीर पर क्या असर पड़ता है और इस तापमान में कैसे शरीर जब दिक्कत में आने लगता है तो खतरे के सिगनल भेजने लगता है.
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आप ने आमतौर पर देखा होगा कि ज्यादा ठंड में कभी रोएं खड़े हो जाते हैं तो कभी उंगलियां सुन्न हो जाती हैं. हम कांपने लगते हैं. कान एकदम ठंडे पड़ जाते हैं. क्या आपने कभी सोचा कि ठंड में हमारा शरीर ऐसे प्रतिक्रियाएं क्यों देता है. वैसे हर इंसान में ये प्रतिक्रिया अलग होती है. इसकी वजह ये भी है कि हर इंसान की त्वचा में तापमान के सेंसर अलग तरह के होते हैं और अलग तरह से रिएक्ट भी करते हैं. इसलिए कुछ लोगों को ज्यादा ठंड लगती है औऱ कुछ को कम.
कुछ लोगों कान में तापमान के ज्यादा सेंसर होते हैं तो कुछ में शरीर के अन्य हिस्से में. शरीर में तापमान के सेंसरों की संख्या हर इंसान में अलग हो सकती है.
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शरीर देने लगता है चेतावनी
04 डिग्री से नीचे तापमान पर शरीर आने वाले की बदलाव चेतावनी देने लगता है. आपको अगर ठंड में ज्यादा कंपकंपी छूटने लगती है या दिक्कत महसूस होनी शुरू हो जाती है तो समझ जाइए कि शरीर खतरे के सिगनल दे रहा है. लिहाजा तुरंत बचाव में जुट जाइए.
दुनिया के किसी भी कोने में रह रहे लोगों के शरीर का आंतरिक तापमान करीब समान होता है, फिर चाहे वो सहारा के मरुस्थल में रह रहे हों या ग्रीनलैंड की ठंडी बर्फीली हवाओं के बीच.
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हाइपोथर्मिया और मौत भी हो सकती है
जिस तरह लोगों के जूते का साइज एक दूसरे से अलग होता है उसी तरह शरीर में मौजूद तापमापी सेंसरों की संख्या भी एक दूसरे से अलग हो सकती है. कई बार बहुत अधिक ठंड के कारण हाइपोथर्मिया और मौत भी हो सकती है.
तब खून त्वचा को गरमाहट देना बंद कर देता है
बाजू, हाथ, पैर, टांगों की ब्लड वेसल्स (रक्त वाहिकाएं) अकड़ने लगती है. दरअसल हमारे शरीर में मौजूद खून त्वचा को गर्मी देता है. और जब रक्त वाहिकाओं में अकड़न होती है, तो वो स्किन को गर्माहट नहीं दे पातीं. जैसे-जैसे ब्लड फ्लो कम होता है, उसी रफ्तार से स्किन को गर्माहट मिलना कम होती है.
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ये हैं खतरे के संकेत
बार-बार टॉयलेट जाने की ज़रुरत पड़ सकती है.
>> ठंड लगने पर बेशक आपको कंपकपी लगती है. ऐसा इसलिए होता है जब वाहिका संकीर्णन (vasoconstriction) शरीर को गर्माहट नहीं दे पाता तो, हाइपोथेलेमस मसल्स को कॉन्सनट्रेट करने के लिए कहता है.
>> हाइपोथर्मिक सिचुएशन में ब्रेन और नर्वस सिस्टम नॉर्मली फंक्शन नहीं कर पाते. ठंड की इस स्थिति में व्यक्ति हालात के मुताबिक, सही से फैसला नहीं ले पाता.
>> शरीर की बाहरी त्वचा ठंड से अकड़कर सफेद पड़ने लगती है. खासकर गाल, नाक और उंगलियों में ब्लड वेसल्स का फ्लो बेहद कम हो जाता है. इस स्थिति को Frostbite कहा जाता है. इसमें स्किन टिश्यू डैमेज हो जाते हैं.
> जब स्किन टिश्यू डेमेज होते हैं तो पहले हल्का दर्द महसूस होता है फिर स्किन ठंडी, ठंडी और ज्यादा ठंडी होती जाती है.
>> कुछ लोगों को सर्दी से त्वचा पर रिएक्शन भी होता है. जिसमें उनकी स्किन में लाल-लाल चकत्ते पड़ जाते हैं.
>> नॉर्मली जब हम सांस के साथ हवा भीतर लेते हैं तो इसमें नाक हमारी मदद करती है. लेकिन बहुत ज्यादा ठंड की स्थिति में ऐसा होता है कि सांस लेने पर फेफड़ों को गर्माहट नहीं मिलती, क्योंकि बाहर से जो हवा हम सांस के साथ भीतर लेते हैं, वह बहुत ठंडी होती है.
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शरीर का तापमान कितना उठने या गिरने पर हो जाती है मौत
हमारे शरीर का तामपान 36.5 डिग्री सेल्सियस के आसपास होता है. अगर यह तापमान 42 डिग्री से ऊपर या 30 डिग्री से नीचे चला जाए तो जान भी जा सकती है.
शरीर का तापमान इतना अधिक गिरने की स्थिति में शरीर के भीतर अहम अंग काम करना बंद कर सकते हैं और ऐसी स्थिति में इंसान बेहोश हो सकता है, उसे हाइपोथर्मिया हो सकता है या मौत भी हो सकती है.
जैसे ही तापमान गिरता है शरीर का आंतरिक तंत्र सिग्नल भेज कर इस बात की सूचना देता है कि हम खतरे में हो सकते हैं. तापमान में परिवर्तन होने पर शरीर कांपना शुरू कर देता है या रोएं खड़े हो जाते हैं.
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प्राचीन समय में इंसान खुद को कैसे बचाते थे प्रचंड ठंड से
प्राचीन समय में इंसान के शरीर पर बहुत बाल हुआ करते थे जो उसे ठंड से बचने में मदद भी करते थे. हमारे शरीर पर बाल त्वचा के जिस हिस्से से जुड़े होते हैं वहां ठंड होने पर मांसपेशियां अकड़ने लगती हैं और बाल खड़े हो जाते हैं. उन जीवों में जिनके शरीर पर बहुत बाल होते हैं, बालों की परत ऊष्मारोधी या अवरोधी परत की तरह काम करती है.
इसी तरह शरीर के पास कुछ और भी आत्मरक्षक तरीके होते हैं. लाच ने कहा, “जब शरीर को एहसास होता है कि उसे और तापमान की जरूरत है तो हमें कंपकपी लगती है. अकसर ऐसी स्थिति में हमारे निचले जबड़े में किटकिटाहट होने लगती है.”
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महिलाओं में शरीर के अंदरूनी तापमान के नियंत्रण का सिस्टम ज्यादा बेहतर
जब हम कांपते हैं तो शरीर में रक्त स्राव तेज हो जाता है, जिससे हमें गर्मी मिलती है. पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में आंतरिक तापमान बनाए रखने का ज्यादा बेहतर तंत्र होता है. उनके शरीर की संरचना ही कुछ ऐसी होती है जिससे आंतरिक अंगों को गर्मी मिलती रहती है. साथ ही अगर वे गर्भवती हैं तो शरीर के भीतर पल रहे शिशु के लिए भी तापमान उचित बना रहता है.
क्या मोटे लोगों को ठंड कम लगती है
एक आम धारणा यह भी है कि मोटे व्यक्ति को ठंड कम लगती है, जो कि सच नहीं है. हालांकि मांसपेशियों का द्रव्यमान भी अहम भूमिका निभाता है. आमतौर पर महिलाओं के शरीर में 25 फीसदी और पुरुषों में 40 फीसदी द्रव्यमान मांसपेशियों का होता है. ज्यादा मांसपेशियों वाले शरीर को ठंड कम लगती है. लेकिन यह धारणा कि वसा या शरीर की चर्बी ठंड से बचने में मदद करती है, गलत है. ठंड से बचने का बढ़िया तरीका वजन बढ़ाना नहीं बल्कि शारीरिक गतिविधियां बढ़ाना है.