नई दिल्ली: चीन की कंपनियां लंबे समय से अपनी सप्लाई चेन और प्रॉडक्शन वर्क को भारतीय कंपनियों को खोलने के लिए तैयार नहीं थीं।
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लेकिन मोदी सरकार की सख्ती के आगे उनको झुकना पड़ा है और वे भारतीय कंपनियों को बिजनस देने के लिए सहमत हो गई हैं। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक चीनी कंपनियों ने महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं और जानकारी को चुनिंदा भारतीय कंपनियों को आउटसोर्स करने का फैसला किया है। इसे स्थानीय कंपनियों की जीत के तौर पर देखा जा रहा है, जिन्हें उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना से भी फायदा होगा। सूत्रों के मुताबिक इसका फायदा डिक्सन टेक्नोलॉजीज और कार्बन को हो सकता है। उन्हें ओप्पो और वीवो जैसी कंपनियों से नया बिजनस मिल सकता है।
सूत्रों के मुताबिक डिक्सन को पहले ही ओप्पो से एक बड़ा मैन्युफैक्चरिंग ऑर्डर मिला है। इसके तहत डिक्सन को हर महीने 5 से 6 लाख स्मार्टफोन बनाने का ऑर्डर मिला है। इससे पहले भी डिक्सन को चीन की एक और कंपनी Xiaomi से स्मार्टफोन बनाने का बड़ा ऑर्डर मिला है। साथ ही शाओमी ने एक और घरेलू कंपनी Optiemus के साथ भी ऑडियो प्रॉडक्ट्स बनाने के लिए समझौता किया है। कार्बन ने UTL Neolyncs के तहत PLI का लाभ मिला था। यह कंपनी भी ऑर्डर हासिल करने के लिए बातचीत कर रही है। हालांकि कंपनी ने इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की। सूत्रों ने कहा कि कुछ और देसी कंपनियों को भी इसमें शामिल किया जा रहा है।
क्या होगा फायदा?
वीवो और ओप्पो की भारत में अपनी मैन्युफैक्चरिंग सुविधाएं हैं। वे अपने ODM के माध्यम से भी काम आउटसोर्स करती हैं। इनमें Longcheer, Huaqin और Wingtech शामिल हैं। चीनी कंपनियों के स्मार्टफोन ईकोसिस्टम में इन ओडीएम की अहम भूमिका है और मैन्यूफैक्चरिंग बिजनस के अलॉटमेंट में उनकी काफी चलती है। ओप्पो और वीवो ने इस मामले में कोई टिप्पणी नहीं की। सरकार ने ऐसे समय इस मामले में हस्तक्षेप तब किया जब उसने पाया कि चीनी कंपनियां भारतीय स्मार्टफोन बाजार में अपने दबदबे के बावजूद भारतीय कंपनियों के लिए अपनी सप्लाई चेन खोलने को तैयार नहीं हैं। भारत के स्मार्टफोन बाजार में सैमसंग और ऐपल की करीब 25 फीसदी हिस्सेदारी है। बाकी हिस्सा चीन की कंपनियों के पास है। इनमें Xiaomi, Oppo, Vivo, RealMe और OnePlus शामिल हैं।
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सूत्रों का कहना है कि सैमसंग काफी समय पहले भारत में अपनी फैसिलिटीज लगा चुकी हैं। इसलिए भारतीय कंपनियों को केवल चीन की कंपनियों से ही बिजनस मिल सकता है।
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सरकार चाहती है कि ज्यादा से ज्यादा चीनी कंपनियां भारतीय कंपनियों को बिजनस का मौका दें। इससे उन्हें पीएलआई स्कीम का फायदा मिलेगा। ऐपल ने भी भारत में आईफोन बनाने के लिए टाटा ग्रुप के साथ हाथ मिलाया है। इसके अलावा कंपनी ताइवान की फॉक्सकॉन और पेट्रागॉन से भी आईफोन बनाती है।