केरल में एक मंदिर में खास मौके पर भगवा रंग का इस्तेमाल करने पर केरल पुलिस ने रेाक लगाई तो मामला कोर्ट तक पहुंच गया. पहले केरल हाई कोर्ट ने मंदिर प्रशासन के पक्ष में फैसला दिया. फिर कुछ महीने बाद एक दूसरे मंदिर में ऐसा क्या हुआ कि हाई कोर्ट ने अपने पुराने फैसले के उलट भगवा रंग के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी?
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देश के ज्यादातर मंदिरों में आपको भगवा ध्वज लहराता हुआ दिख जाएगा. कुछ तो पूरे के पूरे मंदिर ही भगवा रंग से रंगे हुए नजर आ जाएंगे. लेकिन, केरल में ऐसा संभव नहीं है. यहां तक कि केरल में खास मौकों पर भी मंदिरों में भगवा रंग से सजावट पर पाबंदी है. पहले ये रोक केरल पुलिस ने लगाई. बाद में केरल हाई कोर्ट ने भी पुलिस के बैन को हटाने वाले अपने पुराने फैसले के उलट निर्णय देते हुए मंदिरों में भगवा सजावट पर पाबंदी लगा दी. ये मामला तिरुअनंतपुरम के वेल्लयानी भद्रकाली मंदिर से शुरू हुआ और कोल्लम के मुथुपिलक्कडु श्री पार्थसारथी मंदिर पर जाकर बैन के साथ थम गया. नतीजा ये है कि अब केरल के मंदिरों में भगवा पर पाबंदी लग गई है.
केरल में भगवा रंग को लेकर विवाद तब गहराया, जब त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड तिरुअनंतपुरम के वेल्लयानी भद्रकाली मंदिर में 70 दिन तक चलने वाले उत्सव की तैयारियां कर रहा था. बता दें कि मंदिर में यह उत्सव 850 साल से भी ज्यादा समय से चला आ रहा है. दरअसल, उत्सव शुरू होने से कुछ दिन पहले ही केरल पुलिस ने आदेश जारी किया कि मंदिर के अधिकारी उत्सव की सजावट के लिए इस्तेमाल किए गए भगवा रंग को पूरी तरह से हटाएं. साथ ही निर्देश दिया कि भगवा रंग को हटाकर इसकी जगह कई रंगों का सजावट में इस्तेमाल किया जाए. मंदिर के अधिकारी मामले को लेकर केरल हाई कोर्ट पहुंच गए.
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केरल हाई कोर्ट ने पुलिस के आदेश पर लगाई रोक
मंदिर के अधिकारियों ने सजावट में भगवा रंग के इस्तेमाल पर पाबंदी को राज्य में सत्तारूढ़ माकपा का हिंदू अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों को नष्ट करने की कोशिश बताया था. इस पर पुलिस ने कहा कि पहले भी मंदिर में कार्यक्रम के दौरान कानून व्यवस्था की स्थिति में समस्या आई थी. इसी के चलते मंदिर से भगवा रंग की सजावट को हटाने का आदेश दिया गया था. इस पर कोर्ट ने 14 फरवरी 2023 को हस्तक्षेप करते हुए कहा था, ‘पुलिस या प्रशासन इस बात पर जोर नहीं दे सकता है कि टीडीबी उत्सव के दौरान मंदिरों को किस रंग से सजावट करेगा या किस रंग से नहीं करेगा.’
‘टीडीबी रीति-रिवाजों से आयोजित करेगा त्योहार’
केरल हाई कोर्ट ने कहा, ‘यह त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड का कर्तव्य है कि वह त्योहार को रीति-रिवाजों और प्रथाओं के अनुसार आयोजित कराए.’ बता दें कि इस मामले में पुलिस के आदेश को लेकर केरल हाई कोर्ट में दो याचिकाएं दायर की गई थीं. इन पर जस्टिस अनिल के. नरेंद्रन और पीजी अजित कुमार की खंडपीठ ने सुनवाई की थी. इनमें एक याचिका मंदिर की सलाहकार समिति ने दायर की थी. वहीं, दूसरी याचिका एक भक्त की तरफ से दायर की गई थी. फैसले को केरल सरकार और पुलिस के लिए तगड़ा झटका माना गया. दरअसल, प्रशासन ने मंदिर बोर्ड को दिए निर्देश में कहा था कि कालीयूट्टू पर्व के लिए सिर्फ भगवा रंग से सजावट की अनुमति नहीं दी जा सकती है. इससे मजहबी लोगों की भावना को ठेस पहुंच सकती है.
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कोर्ट ने मंदिर में भगवा रंग के इस्तेमाल की दी छूट
कोर्ट ने कहा कि मंदिरों में दैनिक पूजा, समारोहों और त्योहारों के आयोजन में राजनीति की कोई भूमिका नहीं है. जिला प्रशासन या पुलिस इस बात पर जोर नहीं दे सकती है कि मंदिर की सजावट के लिए केवल राजनीतिक रूप से तटस्थ रंगों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. जिला प्रशासन या पुलिस मंदिर के रीति-रिवाजों और प्रथाओं के अनुसार कालीयुट्टू उत्सव आयोजित करने में दखल नहीं दे सकती है. साथ ही कहा कि अगर मंदिर परिसर या आसपास कानून व्यवस्था को बिगाड़ने वाली किसी घटना की आशंका है तो टीडीबी पुलिस को सूचित कर सकती है. उस पर जिला मजिस्ट्रेट को उचित कदम उठाना चाहिए. कोर्ट ने प्रशासन को यह सुनिश्चित करने का निर्देश भी दिया कि कार्यक्रम के लिए लगाए अस्थायी ढांचे सड़कों का अतिक्रमण न करें.
हाई कोर्ट ने 6 महीने बाद ही दिया उलटा फैसला
भद्रकाली मंदिर के मामले के कुछ महीने बाद केरल के कोल्लम जिले के मुथुपिलक्कडु श्री पार्थसारथी मंदिर में भगवा ध्वज लगाने को लेकर फिर विवाद खड़ा हो गया. इस बार केरल हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए अपने ही पिछले फैसले के उलट निर्णय दिया. कोर्ट ने 14 सितंबर 2023 दिए फैसले में मंदिर के परिसर में भगवा झंडे लगाने की अनुमति की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी. दरअसल, केरल के कोल्लम जिले के मुथुपिलक्कडु श्री पार्थसारथी मंदिर में कुछ लोगों ने मंदिर में भगवा झंडा फहराने के लिए याचिका दाखिल की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए केरल हाई कोर्ट ने ये फैसला दिया.
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‘मंदिर का राजनीतिक इस्तेमाल नहीं किया जाए’
केरल हाई कोर्ट ने इस बार कहा कि मंदिर आध्यात्मिक सांत्वना और शांति के प्रतीक के रूप में खड़े हैं. उनकी पवित्रता और श्रद्धा सबसे ऊपर है. ऐसे पवित्र आध्यात्मिक आधारों को राजनीतिक इस्तेमाल या एक-दूसरे को ऊपर उठाने के प्रयासों से कम नहीं किया जाना चाहिए. याचिका मुथुपिलक्कडु श्री पार्थसारथी मंदिर के भक्त होने का दावा करने वाले दो लोगों ने दायर की थी. उन्होंने 2022 में मंदिर और उसके भक्तों के कल्याण के लिए ‘पार्थसारथी भक्तजन समिति’ का गठन किया था. उन्होंने बताया कि विशेष अवसरों और त्योहारों के दौरान मंदिर परिसरों पर भगवा झंडे लगाने की उनकी कोशिशों को हर बार नाकाम कर दिया गया. इसके लिए राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल किया गया.
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मंदिर पर भगवा ध्वज लगाने की नहीं दी अनुमति
दोनों याचिकाकर्ताओं ने अदालत से पुलिस को उन्हें सुरक्षा देने का निर्देश देने की मांग की, ताकि उन्हें ध्वज लगाने से ना रोका जा सके. सरकारी वकील ने सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय के 2020 के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें पुलिस को मंदिर परिसर से ऐसे सभी प्रतिष्ठानों को हटाने का आदेश दिया गया था. इसके बाद अदालत ने याचिका खारिज कर दी. साथ ही कहा कि याचिकाकर्ताओं ने मंदिर में अनुष्ठान करने के लिए कोई वैध अधिकार प्रदर्शित नहीं किया है. हाई कोर्ट ने कहा कि उन्हें विशेष मौकों और त्योहारों पर भी मंदिर में झंडे लगाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.