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प्रधानमंत्री आवास योजना: बड़े शहरों के गरीब ‘बदनसीब’, पक्की छत का ख्वाब अधूरा, ये है अड़चन

प्रधानमंत्री आवास योजना अर्बन (PMAY-U) का असर छोटे शहरों पर ठीकठाक रहा है, मगर बड़े शहरों में इसका प्रभाव उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा. छोटे शहरों की तुलना में बड़े शहरों में नियम अलग हों तो वहां सफलता संभव है.

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प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) सरकार की एक ऐसी स्कीम है, जिसने कच्चे घरों में रहने वाले करोड़ों गरीब परिवारों की आंखों में नए और पक्के घर के सपने जगा दिए. ग्रामीण इलाकों में गरीबों के पक्के घर के सपने साकार भी हुए हैं. इसी की सफलता को देखते हुए सरकार ने शहरों में रहने वाले गरीबों के लिए पक्के घर का प्रबंध करने का विचार बनाया, और इसी योजना का शहरी वर्जन लॉन्च किया गया – प्रधानमंत्री आवास योजना अर्बन (PMAY-U). चिंता की बात यह है कि बड़े शहरों में यह स्कीम पूरी तरह सफल साबित नहीं हुई.

PMAY-U की शुरुआत 2015 में हुई थी. इस योजना का मुख्य उद्देश्य बड़े पैमाने पर शहरी गरीबों के लिए आवास उपलब्ध कराना था. इस योजना के तहत 1.19 करोड़ घरों को मंजूरी दी गई है, जो पहले की शहरी आवास योजनाओं से 10 गुना अधिक है. अब PMAY-U 2.0 के तहत एक और करोड़ घरों को मंजूरी मिलने की उम्मीद है.

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क्यों बड़े शहरों में नहीं है कारगर?
हालांकि, PMAY-U का पहला चरण छोटे शहरों में ज्यादा सफल रहा, जबकि बड़े शहरों में इसका असर अपेक्षाकृत कम रहा है. उदाहरण के लिए, इलाहाबाद जैसे मिलियन-प्लस शहर में लगभग 13,000 घरों को मंजूरी मिली, जबकि कुशीनगर जैसे छोटे शहर में भी 12,000 घरों को मंजूरी दी गई. इससे पता चलता है कि बड़े शहरों में इस योजना का फैलाव सीमित रहा है. इलाहाबाद की आबादी 10 लाख से अधिक है, जबकि कुशीनगर की आबादी इसकी तुलना में काफी कम. ऐसे में केवल 1000 अधिक घरों की मंजूरी से योजना सफल नहीं हो सकती.

गौर करने वाली बात यह भी है कि छोटे शहरों में भूमि की कीमत कम होती है, और वहां ज्यादा लोग इस योजना के तहत अप्लाई कर सकते हैं. लेकिन बड़े शहरों में जमीन के रेट बहुत ऊंचे होते हैं और हर गरीब के पास बड़े शहरों में घर बनवाने के लिए जमीन नहीं होती.

PMAY-U की चार प्रमुख उप-योजनाओं में से सबसे सफल योजना बेनिफिशियरी लेड कंस्ट्रक्शन (BLC) रही, जिसने छोटे शहरों में जमीन के मालिक गरीब परिवारों को अपने घर बनाने के लिए सब्सिडी प्रदान की. BLC के तहत स्वीकृतियों का 62% हिस्सा छोटे शहरों में ही केंद्रित रहा. लेकिन बड़े शहरों में, जहां कम ही लोग भूमि के मालिक हैं, यह योजना कारगर नहीं हो पाई.

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गरीबों की पहुंच में नहीं होम लोन!
दूसरी योजना, क्रेडिट-लिंक्ड सब्सिडी योजना (CLSS) है, जिसे अब इंटरेस्ट सब्सिडी योजना (ISS) कहा जाता है. इसने EWS परिवारों को उतना लाभ नहीं पहुंचाया, जितने की उम्मीद की जा रही थी. यह योजना मुख्यतः निम्न-आय वर्ग (LIG), और मध्यम-आय वर्ग (MIG) परिवारों के लिए कारगर रही, लेकिन शहरी गरीबों के लिए होम लोन तक पहुंच की सीमाओं के कारण इसका प्रभाव भी सीमित रहा.

पार्टनरशिप में अफॉर्डेबल हाउस (AHP) योजना भी सफल नहीं हो पाई, क्योंकि यह निजी क्षेत्र के लिए आकर्षक नहीं साबित हुई. महाराष्ट्र ने EWS की आय सीमा बढ़ाकर इसे कुछ हद तक बेहतर बनाया, लेकिन इससे योजना का वास्तविक लाभ गरीब परिवारों तक नहीं पहुंच पाया. इन-सीटू स्लम रि-डेवलपमेंट (ISSR) योजना ने भी बड़े शहरों में ज्यादा सफलता नहीं पाई, केवल मुंबई और गुजरात के कुछ शहरों में ही इसे आंशिक सफलता मिली.

PMAY-U 2.0 की सफलता के लिए यह जरूरी है कि EWS परिवारों की होम लोन तक पहुंच को बेहतर बनाया जाए, AHP की वित्तीय चुनौतियों का समाधान किया जाए, और स्लम रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स को प्राथमिकता दी जाए. केवल तभी इस योजना का वास्तविक लाभ शहरी गरीबों तक पहुंच सकेगा.

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