अक्सर हम यह सोचते हैं कि बच्चों का मूड या व्यवहार उनकी उम्र या उनके पर्सनेलिटी पर निर्भर करता है, लेकिन सच्चाई यह है कि उनकी नींद की कमी भी उनके व्यवहार में बदलाव का एक प्रमुख कारण हो सकती है.
अक्सर हम यह सोचते हैं कि बच्चों का मूड या व्यवहार उनकी उम्र या उनके पर्सनेलिटी पर निर्भर करता है, लेकिन सच्चाई यह है कि उनकी नींद की कमी भी उनके व्यवहार में बदलाव का एक प्रमुख कारण हो सकती है. एक अच्छी नींद बच्चों को शारीरिक और मानसिक रूप से हेल्दी रखने में मदद करती है.
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एक नए अध्ययन में पाया गया है कि नियमित सोने का समय रखने वाले बच्चों में अपने इमोशन और बिहेवियर को कंट्रोल करने की बेहतर क्षमता होती है. यह शोध अमेरिका की पेन्सिलवेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया, जिसमें छह वर्ष की उम्र के 143 बच्चों के सोने और व्यवहार का डेटा शामिल किया गया. इन बच्चों की माताओं को पहले ढाई साल तक ‘रेस्पॉन्सिव पेरेंटिंग’ (उत्तरदायी पालन-पोषण) के बारे में ट्रेंड किया गया था.
रेस्पॉन्सिव पेरेंटिंग एक ऐसी पेरेंटिंग स्टाइल है, जिसमें बच्चों की इमोशनल और शारीरिक जरूरतों को गर्मजोशी और नियमितता के साथ पूरा किया जाता है. इसके अंतर्गत बच्चों के लिए समर्थनपूर्ण और स्थिर नींद का माहौल बनाना भी शामिल है. इस तरीके में बच्चों को थपकाकर या धीरे-धीरे झुलाकर सुलाने जैसी तकनीकों का प्रयोग किया जाता है.
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बेहतर ढंग से कंट्रोल हुआ व्यवहार और इमोशन
अध्ययन के अनुसार, नियमित सोने का समय रखने वाले बच्चों ने अपने व्यवहार और भावनाओं को बेहतर ढंग से कंट्रोल किया, जबकि अनियमित सोने के समय वाले बच्चों में ज्यादा सनक और कम आत्म-नियंत्रण देखा गया. प्रमुख शोधकर्ता और पेन्सिलवेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी की बायोबेहवियरल हेल्थ में डॉक्टोरल छात्रा एडवा दादजी के अनुसार, “जिन बच्चों का सोने का समय नियमित था, वे अपने व्यवहार और भावनाओं को बेहतर तरीके से कंट्रोल करने में सक्षम थे, जबकि जिन बच्चों का सोने का समय अनियमित था, उनमें अधिक सनक देखी गई.
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7 दिनों तक बच्चों पर चली स्टडी
इस शोध के दौरान बच्चों ने सात दिनों तक अपने हाथ पर एक मॉनिटर पहना, जो उनकी नींद की अवधि और क्वावलिटी को रिकॉर्ड करता था. बच्चों का एक काम करते समय प्रदर्शन भी देखा गया, जिसमें उन्हें एक लॉक बॉक्स में रखा एक खिलौना प्राप्त करना था. इसके लिए बच्चों को ऐसे चाबियों का सेट दिया गया जो लॉक नहीं खोलती थीं. बच्चों के आत्म-नियंत्रण का ओवरव्यू किया गया कि क्या वे चाबियों को आजमाते रहे या गुस्से में फेंक देते हैं. अध्ययन में पाया गया कि जिन बच्चों के सोने का समय हर रात बदलता था, वे अपने व्यवहार और भावनाओं को कंट्रोल करने में कम सक्षम थे. यह अध्ययन ‘जर्नल ऑफ डेवलपमेंटल एंड बिहेवियरल पेडियाट्रिक्स’ में प्रकाशित हुआ है.
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.