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बिजली संयंत्रों में ‘कोयला संकट’ को देखते हुए रेलवे ने उठाया बड़ा कदम, 24 मई तक पैसेंजर ट्रेनों के 670 फेरे रद्द

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Railway News: रेल मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया है कि बिजली संयंत्र देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थित हैं, लिहाजा कोयला रेक (ट्रेन) को अपनी यात्रा पूरी करने में 3-4 दिन का समय लगता है. अधिकारी ने यह भी कहा कि घरेलू कोयले का एक बड़ा हिस्सा पूर्वी क्षेत्र से भारत के उत्तरी, मध्य और पश्चिमी भागों में ले जाया जाता है.

नई दिल्ली. देशभर में बिजली की मांग में भारी वृद्धि की वजह से कोयले की आवश्यकता भी बढ़ गई है, जिसके चलते पिछले कुछ हफ्तों में रोजाना तकरीबन 16 मेल/एक्सप्रेस और पैसेंजर ट्रेनों को रेलवे को रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा है, ताकि अलग-अलग जगहों पर स्थित बिजली संयंत्रों के लिए कोयला ढोने वाली ट्रेनों को अतिरिक्त रास्ता मिल सके. अब रेल मंत्रालय ने 24 मई तक यात्री ट्रेनों के करीब 670 फेरों को रद्द करने की अधिसूचना जारी की है. जिसमें से 500 से अधिक लंबी दूरी की मेल और एक्सप्रेस ट्रेनें हैं.

रेलवे ने कोयले की रेक (ट्रेन) की औसत दैनिक लोडिंग 400 से ज्यादा बढ़ा दी हैं, जो पिछले 5 वर्षों में सबसे अधिक हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया ने सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि भारतीय रेल ने मौजूदा मांग को पूरा करने के लिए रोजाना 415 रेक मुहैया कराने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई है. प्रत्येक रेक में तकरीबन 3,500 टन कोयला ढोया जा सकता है. बताया जा रहा है कि बिजली संयंत्रों में स्टॉक में सुधार और जुलाई-अगस्त में किसी भी संकट से बचने के लिए यह कवायद कम से कम दो महीने तक जारी रहेगी. बारिश शुरू होने पर अगर कोयला खनन में कमी आती है तो स्थिति पर फिर से विचार किया जाएगा.

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यात्री ट्रेनों के रद्द होने के कारण विरोध प्रदर्शन
वहीं दूसरी तरफ यात्री ट्रेनों के रद्द होने के कारण विरोध प्रदर्शन भी हो रहे हैं. इस मुद्दे पर रेल मंत्रालय के अधिकारी ने कहा, ‘परिस्थिति बेहद कठिन है. हमारे पास कोई और विकल्प नहीं बचा है, क्योंकि फौरन बिजली संयंत्रों को कोयला नहीं पहुंचाया गया तो स्थिति गंभीर हो सकती है. यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि बिजली संयंत्रों को कोयले की कमी न हो और कोई ब्लैक आउट न हो.’

अधिकारी ने आगे कहा, ‘दरअसल बिजली संयंत्र देश में अलग-अलग जगहों पर स्थित हैं, लिहाजा रेलवे को लंबी दूरी की ट्रेन चलानी पड़ती है और कोयला रेक को अपनी यात्रा पूरी करने में तीन से चार दिन का समय लगता है. घरेलू कोयले का एक बड़ा हिस्सा पूर्वी क्षेत्र से भारत के उत्तरी, मध्य और पश्चिमी भागों में ले जाया जाता है. उम्मीद है कि हम इस अस्थायी संकट से जल्द ही उबर जाएंगे.’

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रेल ट्रांसपोर्ट बना पसंदीदा साधन
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, रेलवे ने 2016-17 में रोजाना बमुश्किल 269 कोयला रेक लोड किए. 2017-18 और 2018-19 में इसे बढ़ाया गया था, मगर अगले 2 वर्षों के दौरान लदान घटकर रोजाना 267 रेक रह गया. पिछले साल इसे बढ़ाकर 347 रेक प्रति दिन कर दिया गया था और 28 अप्रैल तक कोयले से लदी रेक की संख्या लगभग 400-405 प्रतिदिन थीं. अधिकारियों का कहना है कि इस साल कोयले की मांग में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है और इसके लिए रेलवे ट्रांसपोर्ट का पसंदीदा साधन बना हुआ है.

रेलवे ने उठाए हैं कई कदम
देश की लगभग 70% बिजली पैदा करने के लिए कोयले का इस्तेमाल किया जाता है. कोयले के लदान और परिवहन को बढ़ाने के लिए रेलवे ने कई कदम उठाए हैं, जिसमें भारतीय रेलवे और फ्रेट कॉरिडोर नेटवर्क(दोनों ही पर लंबी दूरी की ट्रेनें चलाना), लोडिंग और अनलोडिंग प्वाइंट्स पर सभी कोयला रेक के अवरोधन की गहन निगरानी शामिल है.

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