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दुनियाभर में क्यों बढ़ रही है इतनी महंगाई? क्या भारत में आर्थिक मंदी आने वाली है!

 भारत में Wholesale Price Index यानी थोक महंगाई दर पिछले 30 सालों में सबसे ज्यादा है. भारत ही नहीं इस समय दुनिया में अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे बड़े-बड़े देशों में भी महंगाई अपने चरम पर है.

 महंगाई और आर्थिक मंदी आपकी तरफ तेजी से बढ़ रही है और इससे पहले कि आपकी मासिक आमदनी पहले के मुकाबले आधी रह जाए और खर्चे पहले से डबल हो जाएं, आपको सावधान हो जाने की जरूरत है. भारत में Wholesale Price Index यानी थोक महंगाई दर पिछले 30 सालों में सबसे ज्यादा है. भारत ही नहीं इस समय दुनिया में अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे बड़े-बड़े देशों में भी महंगाई अपने चरम पर है. दुनिया के हर बड़े देश की Currency गिर रही है और दुनियाभर के शेयर बाजार क्रैश हो रहे हैं. ये सारे लक्षण, आर्थिक मंदी के हैं और अगर आर्थिक मंदी आई तो आपकी नौकरी से लेकर व्यापार तक सबकुछ खतरे में पड़ जाएगा.

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क्या होती है महंगाई?

आपने देखा होगा कि पिछले कुछ महीनों में आपके घर का बजट बढ़ गया होगा और अब आप रोजमर्रा की जरूरतों पर ज्यादा पैसा खर्च कर रहे होंगे. इस स्थिति को ही महंगाई कहते हैं. यानी महंगाई का मतलब ही यही है कि आपका खर्च बढ़ गया है. जबकि आय में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है.

30 साल के बाद सबसे ऊंचे स्तर पर थोक महंगाई दर

भारत के लिए चिंताजनक बात ये है कि अब देश में Wholesale Price Index, जिसे हिंदी में आप थोक महंगाई दर भी कहते हैं, वो 30 साल के बाद सबसे ऊंचे स्तर पर है. खाने-पीने की चीजों और कच्चे तेल के दाम बढ़ने से मई में Wholesale Price Index 15.88 प्रतिशत के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया. इससे पहले अगस्त 1991 में ये आंकड़ा लगभग 16 प्रतिशत दर्ज किया गया था.

कैसे तय की जाती है थोक महंगाई दर

भारत में थोक महंगाई दर का आंकलन 697 वस्तुओं और सेवाओं के बाजार भाव के हिसाब से किया जाता है और इनमें 45 प्रतिशत हिस्सा खाने और पीने की वस्तुओं का होता है. जैसे अनाज, दूध, सब्जियां, मिठाई, तेल, चिकन, मटन, मछली और अंडे. इसके अलावा इसमें ईंधन की कीमतों का भी अध्ययन किया जाता है.

समझें ये जरूरी फर्क

हमारे देश में बहुत सारे लोग, थोक महंगाई दर और रिटेल महंगाई दर को एक ही समझ लेते हैं. जबकि ये दोनों अलग-अलग हैं. जब देश के लोग कोई वस्तु किसी दुकान से खरीदकर अपने घर लाते हैं तो उसे रिटेल महंगाई कहा जाता है. जबकि थोक महंगाई का मतलब होता है, वो वस्तु उस दुकानदार को कितने में मिली. अभी भारत में Wholesale Price Index ने 30 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है.

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जबकि रिटेल महंगाई दर में पिछले महीने की तुलना में कुछ कमी आई है. पिछले महीने रिटेल महंगाई दर 7.04 प्रतिशत दर्ज की गई. जबकि इससे पहले अप्रैल में रिटेल महंगाई दर 7.79 प्रतिशत दर्ज हुई थी, जो आठ साल के बाद सबसे ज्यादा थी. फरवरी से अप्रैल महीने के बीच सब्जियों के दामों में लगभग 23 प्रतिशत से ज्यादा का इजाफा हुआ. यानी अगर पहले कोई सब्जी 100 रुपये प्रति किलोग्राम के दाम पर मिल रही थी तो अब उसकी कीमत 123 रुपये हो गई है. इसके अलावा जनवरी 2010 के बाद आटे की कीमतों में भी भारी वृद्धि हुई है और कुल मिला कर कहें तो महंगाई अब इतनी बढ़ गई है कि भारत के लोगों की जेब में अब ज्यादा पैसा नहीं बच रहा है.

सिर्फ भारत में नहीं है ऐसी स्थिति

हालांकि ये स्थिति सिर्फ भारत में नहीं है. पूरी दुनिया में महंगाई ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच चुकी है. इस समय सबसे ज्यादा महंगाई Turkey में है. Turkey में 24 साल के बाद महंगाई दर 73.5 प्रतिशत के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. अमेरिका में 41 वर्षों के बाद महंगाई दर 8 प्रतिशत से ज्यादा है. ब्रिटेन में 40 वर्षों के बाद महंगाई दर ने 9 प्रतिशत का आंकड़ा छुआ है. जर्मनी में 50 वर्षों के बाद महंगाई दर 7.9 प्रतिशत दर्ज की गई है. इसके अलावा यूरोप में ये आंकड़ा 8.1 प्रतिशत है, ब्राजील में 11.7 प्रतिशत, रशिया में 17 प्रतिशत और पाकिस्तान में ढाई साल के बाद मई महीने में महंगाई दर लगभग 14 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई है. जबकि इन देशों की तुलना में भारत में महंगाई दर अब भी काफी कम है. भारत में महंगाई दर 7 प्रतिशत के ही आसपास है.

डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ रुपया

अब जब पूरी दुनिया में इस तरह से महंगाई बढ़ती है तो इससे व्यापार करना महंगा हो जाता है और इसका सीधा असर दुनिया की अलग-अलग Currencies पर पड़ता है. यानी महंगाई बढ़ने के साथ दुनिया के हर बड़े देश की Currency गिर रही है. इस साल Dollar के मुकाबले Pound 11 प्रतिशत कमजोर हो चुका है. Pound ब्रिटेन की करेंसी है. इसी तरह यूरोप की करेंसी Euro, Dollar के मुकाबले 7.6 प्रतिशत कमजोर हुई है. जापान की करेंसी Yen 17.2 प्रतिशत तक गिरी है, जो कि ऐतिहासिक है. इसके अलावा चीन की करेंसी Yuan (युआन) भी Dollar के मुकाबले इस साल 5.6 प्रतिशत कमजोर हुई है और हमारे देश की करेंसी की Value भी Dollar के मुकाबले 4.7 प्रतिशत तक गिरी है. इस समय भारत के 78.15 रुपये एक Dollar के बराबर है. ये भारत के इतिहास में पहली बार है, जब Dollar के मुकाबले रुपया इतना कमजोर हुआ है.

इस निगेटिव ट्रेंड का कारण क्या है?

अब बड़ा सवाल ये है कि आखिर पूरी दुनिया में ही ये Negative ट्रेंड क्यों दिख रहा है? इसका एक बड़ा कारण है केन्द्रीय बैंकों द्वारा बढ़ाई गई ब्याज दरें. हर देश में बड़े बड़े बैंक होते हैं, जो ब्याज दरें तय करते हैं. जैसे भारत में Reserve Bank of India है. अब होता ये है कि जब अलग अलग कारणों से महंगाई बढ़ने लगती है तो ये केन्द्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ा देते हैं और जब ब्याज दरें बढ़ती हैं तो आपने जो लोन लिया है, उसकी EMI महंगी हो जाती है.

उदाहरण के लिए, RBI ने पिछले महीने ब्याज दरों को 0.40 प्रतिशत से बढ़ाकर 4.4 प्रतिशत कर दिया था और ऐसा करने वाला RBI दुनिया का अकेला बैंक नहीं है. दुनिया के 50 से ज्यादा देशों में केन्द्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरें बढ़ाई गई हैं, जिससे इन देशों में लोन की EMI महंगी हो गई है. अब आप सोच रहे होंगे कि, महंगाई बढ़ने पर केन्द्रीय बैंक ब्याज दरें क्यों बढ़ाते हैं तो इसका गणित भी आपको आज समझाते हैं. उदाहरण के लिए, RBI को भारत में बैंकों का बैंक कहा जाता है. यानी अगर RBI बैंकों को लोन देते वक्त ब्याज दरें बढ़ाता है तो बदले में आपका बैंक भी आपकी ब्याज दरें या EMI बढ़ा सकता है. अब आप सोच रहे होंगे कि महंगाई कम करने के लिए तो RBI को ब्याज दर घटा देनी चाहिए ताकि लोगों के पास ज्यादा पैसा बच पाए. तो फिर RBI और दूसरे केन्द्रीय बैंक ब्याज दरें क्यों बढ़ाते हैं.

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आखिर RBI ने क्यों बढ़ाईं ब्याज दरें?

तो इसका जवाब ये है कि अगर बैंक ब्याज दरों में कमी करेंगे तो लोगों के पास ज्यादा पैसा बचेगा और ऐसी स्थिति लोग और ज्यादा सामान खरीदेंगे यानी डिमांड बढ़ जाएगी जबकि सप्लाई पहले के जैसी ही बनी रहेगी. इससे महंगाई में और ज्यादा इजाफा होगा. क्योंकि डिमांड और सप्लाई में बड़ा अंतर पैदा हो जाएगा और इसी वजह से ये ब्याज दरें बढ़ाई जाती हैं.

अमेरिका में महंगा हुआ लोन

अभी अमेरिका का जो केन्द्रीय बैंक है, उसे US Federal Reserve कहते हैं. ये बैंक अमेरिका में महंगाई बढ़ने के बाद दो बार ब्याज दरें बढ़ा चुका है, जिससे वहां लोन महंगा हो गया है और लोगों को इस लोन की ज्यादा EMI चुकानी पड़ रही है. इसके अलावा ये बैंक आज भी वहां ब्याज दरें बढ़ा सकता है, जिससे वहां लोन की EMI और महंगी हो सकती है और इससे दुनियाभर के शेयर बाजार क्रैश हो सकते हैं.

असल में जब लोन की EMI बढ़ जाती है तो लोगों की जेब में पैसा कम बचता है और जब लोगों के पास पैसा कम होता है तो वो स्टॉक मार्केट में कम निवेश करते हैं. जब स्टॉक मार्केट में निवेश धीरे-धीरे घटने लगता है तो मार्केट क्रैश हो जाता है और आर्थिक स्थितियां बिगड़ने लगती हैं. जैसा कि इस समय पूरी दुनिया में हो रहा है.

स्टॉक मार्केट में दर्ज हुई गिरावट

इस साल भारत के Stock Market में काफी गिरावट दर्ज हुई है. Sensex में 9.4 प्रतिशत जबकि Nifty में 9.25 प्रतिशत की गिरावट इस साल दर्ज हुई है. और 13 जून को यानी दो दिन पहले Stock Market में इस गिरावट की वजह से निवेशकों के 6 लाख करोड़ रुपये डूब गए थे. जब लोग स्टॉक मार्केट में कम निवेश करते हैं तो इससे निवेशकों का भरोसा भी मार्केट पर कम हो जाता है और वो अपना पैसा शेयर बाजार से निकालने लगते हैं. जब ऐसा होता है तो शेयर मार्केट गिरने लगते हैं और ये इस बात का संकेत होता है कि उस देश की अर्थव्यवस्था संकट की तरफ जा रही है.

किसी भी देश का Stock Market जब 20 प्रतिशत तक गिर जाता है तो वो Bear Territory में चला जाता है. Bear Territory का मतलब ये है कि स्टॉक मार्केट क्रैश होने से निवेशक घबरा जाते हैं, मार्केट से अपना पैसा वापस निकालने लगते हैं और एक पैनिक की स्थिति बन जाती है. स्टॉक मार्केट का Bear Territory में जाने का एक मतलब ये भी होता है कि आर्थिक मंदी आने वाली है.

मंदी के संकेत

पिछले 77 वर्षों में ऐसा सिर्फ 14 बार हुआ है, जब अमेरिका के Stock Market ने Bear Territory में प्रवेश किया है. अभी अमेरिका का Stock Market, S&P पिछले 6 महीनों में 22 प्रतिशत गिर चुका है. जबकि एक और स्टॉक मार्केट, जिसे NASDAQ कहते हैं, वो पिछले 8 महीनों में 32 प्रतिशत तक गिर चुका है. ये संकेत है कि दुनिया में मंदी यानी रिसेशन आना वाला है.

रिकवरी का नहीं रिसेशन का साल है 2022

वर्ष 2022 यानी मौजूदा साल पूरी दुनिया के लिए रिकवरी का साल था. लेकिन अब ये रिसेशन का साल बनता जा रहा है. इसकी दो बड़ी वजह हैं. पहला है, यूक्रेन और रशिया के बीच शुरू हुआ युद्ध, जिसकी वजह से अनाज, कच्चे तेल और दूसरी चीजों के आयात पर असर पड़ा है. जबकि दूसरा कारण है, चीन की जिद. चीन अब भी जीरो कोविड पॉलिसी पर अड़ा हुआ है, जिसकी वजह से ग्लोबल सप्लाई चेन प्रभावित हुई है और दुनियाभर में अलग अलग वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ने के बाद भी उनके उत्पादन को बढ़ाया नहीं गया है. क्योंकि चीन की जीरो कोविड पॉलिसी की वजह से वहां फैक्ट्रियां बन्द हैं और इससे ग्लोबल सप्लाई चेन प्रभावित हो रही है और इसीलिए अब ये कहा जा रहा है कि दुनिया में एक बार फिर से मंदी आ सकती है.

रिकवरी का नहीं रिसेशन का साल है 2022

वर्ष 2022 यानी मौजूदा साल पूरी दुनिया के लिए रिकवरी का साल था. लेकिन अब ये रिसेशन का साल बनता जा रहा है. इसकी दो बड़ी वजह हैं. पहला है, यूक्रेन और रशिया के बीच शुरू हुआ युद्ध, जिसकी वजह से अनाज, कच्चे तेल और दूसरी चीजों के आयात पर असर पड़ा है. जबकि दूसरा कारण है, चीन की जिद. चीन अब भी जीरो कोविड पॉलिसी पर अड़ा हुआ है, जिसकी वजह से ग्लोबल सप्लाई चेन प्रभावित हुई है और दुनियाभर में अलग अलग वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ने के बाद भी उनके उत्पादन को बढ़ाया नहीं गया है. क्योंकि चीन की जीरो कोविड पॉलिसी की वजह से वहां फैक्ट्रियां बन्द हैं और इससे ग्लोबल सप्लाई चेन प्रभावित हो रही है और इसीलिए अब ये कहा जा रहा है कि दुनिया में एक बार फिर से मंदी आ सकती है.

आर्थिक मंदी तब आती है, जब किसी देश की अर्थव्यवस्था लगातार दो तिमाही में Negative रहती है. जैसे अभी ब्रिटेन में अभी लगातार दो महीने से GDP ग्रोथ रेट मायनस में बनी हुई है. अब आर्थिक मंदी के आने से क्या होता है? जब मंदी आती है, तो आर्थिक तरक्की रुक जाती है. लोगों के पास पैसा खत्म होने लगता है. लोगों की सैलरी बढ़ना बन्द हो जाती है. नई नौकरियां और नए कारोबार खोलने मुश्किल हो जाता है. बैंक लोन महंगे हो जाते हैं. जो छोटी कम्पनियां हैं, वो घाटे में जाने की वजह से बन्द हो जाती हैं और बेरोजगारी बढ़ने लगती है. और मंदी केवल एक देश को प्रभावित नहीं करती, बल्कि ये सभी देशों पर असर डालती है. 2008 में दुनिया में आर्थिक मंदी आई थी, तब इसकी वजह से डेढ़ करोड़ लोगों की नौकरियां चली गई थीं.

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भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन फिर भी शानदार

जब पूरी दुनिया आर्थिक मंदी की आहट से परेशान है, तब भी भारत की अर्थव्यवस्था शानदार प्रदर्शन कर रही है. अनुमान है कि इस वित्त वर्ष में भी भारत की अर्थव्यवस्था 7 से 8 प्रतिशत की ग्रोथ रेट से बढ़ेगी और ये ऐतिहासिक होगा और भारत इसके लिए काफी प्रयास कर रहा है. पिछले कुछ समय में हमने रूस से कच्चे तेल का आयात बढ़ा दिया है और ये कच्चा तेल हमें डिस्काउंट मिल रहा है. दुनिया में अभी प्रति बैरल कच्चे तेल की कीमतें 120 डॉलर के आसपास हैं. जबकि रूस भारत को 90 डॉलर प्रति बैरल कच्चा तेल दे रहा है. यानी प्रति बैरल हमें 30 डॉलर यानी लगभग ढाई हजार रुपये का फायदा हो रहा है.

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