The Real Game Behind IPO Allotment: IPO अलॉटमेंट प्रॉसेस डिमांड-सप्लाई एक्सचेंज और इंडस्ट्री संबंधों से प्रभावित एक तरह का जटिल गेम है.
The Real Game Behind IPO Allotment: आरंभिक सार्वजनिक पेशकश (IPO) की दीवानगी ने हमेशा निवेशकों (Investors) और आम जनता को अपनी तरफ आकर्षित किया है. हालांकि, IPO आवंटन (IPO Allotment) की प्रॉसेस हमेशा उतनी पारदर्शी (Transparent) और सीधी नहीं होती जितनी बाहर से दिखाई देती है. पर्दे के पीछे कुछ और ही खेल होता है. जिसमें अक्सर यह तय किया जाता है कि IPO का हिस्सा किसे मिलेगा. कई लोग इस बात से आश्चर्य में पड़ जाते हैं कि उन्हें हमेशा सबसे बेहतर कंपनियों के IPO में हिस्सेदारी क्यों नहीं मिलती है?
ये भी पढ़ें– LPG सिलेंडर केवल 786 रुपये में, रक्षाबंधन से पहले लाएं अपने घर
आइए, यहां यहां पर जानते हैं कि IPO आवंटन (Allotment) की प्रॉसेस क्या है और इसके अलॉटमेंट को लेकर SEBI के नियम क्या है?
IPO आवंटन (Allotment) के पीछे का खेल क्या है?
डिमांड और सप्लाई के डायनेमिक्स
रीटेल और इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स (Institutional Investors) की हाई डिमांड के कारण IPO को आम तौर पर ओवरसब्सक्राइब किया जाता है. यह ओवरसब्सक्रिप्शन एक ऐसी स्थिति पैदा करता है जहां शेयरों के लिए आवेदन करने वाले हर व्यक्ति को आवंटन (Allotment) प्राप्त नहीं होगा. ऐसे मामलों में, आवंटन (Allotment) का निर्णय अक्सर लॉटरी सिस्टम से किया जाता है.
रीटेल Vs इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर
ये भी पढ़ें– सस्ते सरकारी प्लॉट से वंचित कर देंगी ये तीन गलतियां, आवदेन करने से पहले जान लें यमुना अथॉरिटी के नियम
म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) जैसे संस्थागत निवेशकों (Investors) को अक्सर IPO शेयरों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अलॉट किया जाता है. इससे रीटेल निवेशकों (Retail Investors) के पास का एक छोटा हिस्सा बच सकता है. संस्थानों को आमतौर पर बड़ी रकम निवेश करने और स्टॉक मूल्य को स्थिरता प्रदान करने की उनकी कैपेसिटी की वजह से बड़े अलॉटमेंट (Allotment) मिलते हैं.
रिलेशनशिप और कनेक्शन
IPO को अंडरराइट करने वाले निवेश बैंक (Investment Banks) अपने पसंदीदा ग्राहकों या उच्च-नेट-वर्थ व्यक्तियों (HNI) को शेयर आवंटित कर सकते हैं. इससे यह धारणा बन सकती है कि सर्वश्रेष्ठ IPO तक पहुंच फाइनेंस इंडस्ट्री से जुड़े कुछ स्पेशल राइट्स प्राप्त लोगों तक ही सीमित है.
एंकर इन्वेस्टर्स
ये भी पढ़ें– Petrol Diesel Prices: महाराष्ट्र-एमपी में सस्ता हुआ पेट्रोल-डीजल, इन राज्यों में बढ़ गई कीमत
सेबी (SEBI) के नियम एंकर निवेशकों (Anchor Investors) को IPO के सब्सक्रिप्शन के लिए खुलने से एक दिन पहले शेयरों के लिए बोली लगाने की अनुमति देते हैं. ये एंकर निवेशक (Anchor Investors), जो संस्थान या पैसे वाले लोग हो सकते हैं, उनको शेयरों का एक हिस्सा आवंटित किया जाता है और IPO के लिए कीमत निर्धारित की जाती है. खुदरा निवेशकों ( Retail Investors) को इन एंकर निवेशकों (Anchor Investors) के टक्कर में खड़ा होना मुश्किल हो सकता है.
IPO अलॉटमेंट को लेकर सेबी (SEBI) के नियम क्या कहते हैं?
IPO ग्रेडिंग और डिस्क्लोजर
सेबी (SEBI) का आदेश है कि सभी IPO को क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा रेटिंग दी जाए, जिससे निवेशकों (Investors) को कंपनी की बेसिक बातों का आकलन मिल सके. इससे निवेशकों (Investors) को सोच-समझकर निर्णय लेने में मदद मिलती है.
न्यूनतम और अधिकतम आवंटन (Allotment)
सेबी (SEBI) ने शेयरों का उचित अलॉटमेंट सुनिश्चित करने के लिए रीटेल इन्वेस्टर्स निवेशकों (Investors) को अलॉट किए जा सकने वाले शेयरों की न्यूनतम और अधिकतम संख्या पर नियम निर्धारित किए हैं. हालांकि, ओवरसब्सक्रिप्शन कभी-कभी इन नियमों के विपरीत हो सकते हैं.
ये भी पढ़ें– LIC Policy: एलआईसी की इस पॉलिसी पर मिलेगा डबल फायदा, दिया जाएगा 125% प्रीमियम, चेक करें डिटेल्स
लिस्टिंग और लॉक-इन आवश्यकताएं
सेबी (SEBI) लिस्टिंग के बाद तत्काल बिक्री को रोकने के लिए प्रमोटरों और शेयरधारकों की कुछ कैटेगरीज के लिए लॉक-इन अवधि तय करता है. यह सुनिश्चित करता है कि कंपनी के हित निवेशकों (Investors) के हितों के अनुरूप हों.
इनसाइडर ट्रेडिंग पर प्रतिबंध
सेबी (SEBI) IPO से पहले और बाद में किसी भी प्रकार के इनसाइडर ट्रेडिंग (Insider Trading) या प्राइस मैनीपुलेशन (Manipulation) पर सख्ती से रोक लगाता है. यह सभी निवेशकों (Investors) के हितों की रक्षा करता है और मार्केट की इंटेग्रिटी बनाए रखता है.