What is Federal Reserve Interest: उम्मीद के मुताबिक अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में तीसरी बार बदलाव नहीं किया है. मौद्रिक नीति की समीक्षा बैठक में ब्याज दरों को 5.2 से लेकर 5.5 के स्तर पर ही रखा गया है. बता दें कि जुलाई के महीने में से ब्याज की दर इसी स्तर पर बनी हुई है. मुद्रास्फीति की दर कम होने और अर्थव्यवस्था में स्थिरता की वजह से फेडरल ओपन मार्केट कमेटी के सदस्यों ने ब्याज दर को 5.25 से लेकर 5.5 के बीच रखने का फैसला किया है. लेकिन 2024 में कम से कम तीन दर कटौती पर विचार भी किया गया.
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अमेरिकी शेयर बाजार में उछाल
अमेरिका के घरेलू बाजार के साथ साथ वैश्विक बाजार को भी इसी तरह के फैसले की उम्मीद थी. यह उम्मीद इसलिए भी थी क्योंकि जुलाई से पहले 11 बार बढ़ोतरी हुई थी. इस निर्णय के बाद डॉव जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज 400 अंक से अधिक उछला और पहली बार 37,000 को पार कर गया. फेड रिजर्व के मुखिया जेरोम पॉवेल ने कहा कि मुद्रास्फीति लगातार कम होने के कारण फेड अधिकारियों ने दरें बढ़ाने की संभावना जताई है, फेड की 19 सदस्यीय नीति समिति की बैठक के बाद पॉवेल ने कहा कि मुद्रास्फीति नीचे आ रही है, श्रम बाजार वापस संतुलन में आ रहा है और, यह सब संकेत अच्छे हैं. अमेरिका में कोर इन्फ्लेशन की दर 3.7 फीसद के आस पास है.ब्याज दरों में कमी या बढ़ोतरी के लिये फडरल रिजर्व कोर इन्फ्लेशन दर पर पैनी निगाह रखता है.
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2023 की शुरूआत से ही अमेरिका में कोर मुद्रास्फीति में कमी आई है. हालांकि अभी भी यह दो फीसद के लक्ष्य के ऊपर है.
भारत पर ऐसे पड़ता है असर
भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया के बाजारों से जुड़ी हुई है. लिहाजा वैश्विक हलचल का असर शेयर बाजार पर नजर आने लगता है. अमेरिका के साथ भारत के वित्तीय बाजार का गहरा संबंध है लिहाजा फेड रिजर्व द्वारा ब्याज दरों का बदलाव यहां भी नजर आने लगता है. फेड रिजर्व, भारत में आरबीआई की तरह ही काम करता है. फेड रिजर्व महंगाई और कैश फ्लो पर नियंत्रण रखने का काम करता है. जब अमेरिका ब्याज दरों में इजाफा करता है तो भारत और उसके ब्याज दरों में अंतर कम हो जाता है और इसकी वजह से मुद्रा व्यापार पर नकारात्मक असर पड़ता है.
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ब्याज दर अधिक होने की सूरत में भारतीय बाजार से विदेशी निवेशक अपने पैसे को निकालना शुरू कर देतें हैं. अगर अमेरिका में ब्याज दरें कम होने की सूरत में अमेरिकी निवेशक भारत की तरफ रुख करते हैं.