नवरात्रि के दिनों में दुर्गा पूजा के पंडाल में पूजा के वक्त पुष्पांजलि का विशेष महत्व होता है. नवरात्रि के 8वें दिन अष्टमी को पुष्पांजलि अर्पित की जाती है. इसके बाद महागौरी की विधि विधान से पूजा की जाती है.
Durga Puja 2022: इस बार 26 सितंबर 2022 से शारदीय नवरात्रि का पर्व शुरू है, जो 05 अक्टूबर 2022 तक चलेगा. शारदीय नवरात्रि में नौ दिन तक मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा अर्चना और उपवास रखे जा रहे हैं. यूं तो मां दुर्गा भक्तों की पुकार केवल सच्ची श्रद्धा से प्रार्थना करने पर भी सुन लेती हैं परंतु दुर्गा पूजा के आठवें दिन मां के चरणों में पुष्पांजलि अर्पित करने से इसका लाभ दोगुना हो जाता है.
पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि नवरात्रि में महा अष्टमी पर मां दुर्गा के 8वें अवतार ‘महागौरी’ की विशेष पूजा होती है. इस खास दिन मां दुर्गा पूजन में पुष्पांजलि मंत्र का जाप कर पुष्प अर्पित किए जाते हैं. आइये जानते हैं पुष्पांजलि मंत्र का महत्व और इसके लाभ.
अष्टमी पुष्पांजलि का महत्व
नवरात्रि में पुष्पांजलि का विशेष महत्व होता है. नवरात्रि के 8वें दिन अष्टमी को पुष्पांजलि अर्पित की जाती है. इसके बाद महागौरी की विधि विधान से पूजा की जाती है. इस दौरान भक्त पुष्पांजलि मंत्र के जाप के साथ मां दुर्गा को फूल अर्पित करते हैं. अष्टमी पुष्पांजलि का बंगाल में खास महत्व है. यहां सप्तमी की रात्रि और अष्टमी की सुबह पुष्पांजलि अर्पित की जाती है.
पुष्पांजलि मंत्र से भक्त मां दुर्गा से अपनी गलतियों की क्षमा याचना मांगते हैं. मान्यता है कि अष्टमी पुष्पांजलि मंत्र से मां दुर्गा प्रसन्न होकर भक्तों को आशीर्वाद देती हैं. मां दुर्गा की कृपा परिवार पर बनी रहती है. घर में सुख-समृद्धि और शांति रहती है.
प्रथम पुष्पांजलि मंत्र
ॐ जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी ।
दुर्गा, शिवा, क्षमा, धात्री, स्वाहा, स्वधा नमोऽस्तु ते॥
एष सचन्दन गन्ध पुष्प बिल्व पत्राञ्जली ॐ ह्रीं दुर्गायै नमः॥
द्वितीय पुष्पांजलि मंत्र
ॐ महिषघ्नी महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनी ।
आयुरारोग्यविजयं देहि देवि! नमोऽस्तु ते ॥
एष सचन्दन गन्ध पुष्प बिल्व पत्राञ्जली ॐ ह्रीं दुर्गायै नमः ॥
तृतीया पुष्पांजलि मंत्र
ॐ सर्व मङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोऽस्तु ते ॥१॥
सृष्टि स्थिति विनाशानां शक्तिभूते सनातनि ।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि! नमोऽस्तु ते ॥२॥
शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि! नारायणि! नमोऽस्तु ते ॥३॥