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दिल्‍ली में 100 वार्ड व्‍यापारी बहुल, कैट ने सभी राजनीतिक पार्टियों को भेजा चार्टर

दिल्ली में ऐसे लगभग 12 लाख व्यापारी प्रतिष्ठान हैं जिनके माता- पिता या व्यस्क बच्चों को जोड़ा जाए और यदि व्यापारियों पर निर्भर कामदारों को भी जोड़ लें तो यह अपने आप में एक बड़ा वोट बैंक हो जाता है जो चुनाव के परिणाम बदलने की भी ताक़त रखता है. पिछले अनेक विभिन्न चुनावों में ऐसा हुआ भी है.

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नई दिल्‍ली. दिल्ली नगर निगम के आगामी चुनावों के संदर्भ में दिल्ली के सभी भागों के प्रमुख व्यापारी संगठनों के साथ पिछले एक सप्ताह में रायशुमारी कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ( कैट) ने आव एक व्यापारी चार्टर जारी किया है जिसकी प्रति दिल्ली के तीनों राजनीतिक दलों को भेज कर मांग की गई है कि वे अपने चुनाव घोषणा पत्र में न केवल इन मुद्दों को शामिल करें बल्कि पूरा करने के लिए एक समयबद्ध योजना का भी खुलासा करें.

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कैट के प्रदेश अध्यक्ष विपिन आहूजा प्रदेश महामंत्रे देवराज बवेजा के अनुसार व्यापारी चार्टर में कहा है क‍ि वर्ष 2006 से दिल्ली के व्यापारी सीलिंग और तोड़ फोड़ का दंश झेल रहें हैं और लगभग 10 हजार दुकानें आज भी वर्षों से सील पड़ी हैं . इस समस्या के स्थायी हल के लिए कैट ने आग्रह किया है क‍ि जिस प्रकार से दिल्ली की 1700 अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित किया गया, उसी तर्ज पर दिल्ली के व्यापारियों को एक कट ऑफ डेट के साथ एक एमनेस्टी स्कीम दी जाए जिसके अंतर्गत दिल्ली में कट ऑफ डेट तक ‘जो बना -जैसा बना’ के आधार पर कंपाउंड राशि लेकर नियमित किया जाए. दिल्ली नगर निगम के कानून में कंपाउंडिंग का प्रावधान भी है. इससे जहां व्यापारियों को सीलिंग से राहत मिलेगी वहीं नगर निगम को भी हजारों करोड़ का राजस्व प्राप्त होगा. पर इससे पूर्व सभी सील की हुई दुकानों की सील खोलना जरूरी है. अगर किसी सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करता है तो उसके खिलाफ कड़ी कारवाई हो लेकिन व्यापारियों को आये दिन निगम द्वारा सीलिंग के नोटिस दिए जाते हैं, उन पर तुरंत रोक लगे. दिल्ली में व्यापारियों की ओर से हजारों करोड़ रुपये पार्किंग और कन्वर्जन शुल्क के रूप में दिए जाने के बाद भी आज तक दिल्ली में पार्किंग स्थल विकसित नहीं हुए हैं. इसलिए निगम द्वारा पर्याप्त मात्रा में दिल्ली में पार्किंग स्थल बनाए जाएं. पुरानी दिल्ली क्योंकि मुगलों के जमाने का बाजार है, लिहाज़ा पुरानी दिल्ली को पार्किंग और कन्वर्जन शुल्क से मुक्त किया जाए.

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कैट के अन्य प्रदेश महामंत्री आशीष ग्रोवर और सतेंद्र वधवा ने कहा की व्यावसायिक संपत्ति पर लगने वाले प्रॉपर्टी टैक्स को निगम द्वारा उचित बनाया जाए. साइनबोर्ड टैक्स, सफाई टैक्स आदि को व्यापारियों पर से हटाया जाये. ट्रेड लाइसेंस ऑनलाइन मिलें और प्रक्रिया पारदर्शी हो. निगम द्वारा व्यापारियों से अनेक प्रकार के गैर जरूरी कर लिए जा रहे हैं, ऐसे सभी करों की समीक्षा के लिए व्यापारियों के साथ एक संयुक्त उच्च समिति बनाई जाए जो निगम का राजस्व किस प्रकार से बढ़े और व्यापारियों पर अनावश्यक बोझ भी न पड़े तथा इस पर सुझाव दे. अब तक दिल्ली के लिए लागू हुए तीनों मास्टर प्लान में निगम अपनी वर्णित जि‍म्मेदारियों को पूरा करने में फेल हुआ है. मास्टर प्लान 2041 के निगम से संबंधित प्रावधानों पर समयबद्ध सीमा में कारवाई हो, इसके लिए विशेष ध्यान दिया जाना जरूरी है.

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दिल्ली के वर्तमान बाजारों की हालत बेहद खराब है. सभी बाजारों में सार्वजनिक सुविधाएं, सफाई और स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाए. पार्टिसिपेटरी गवर्नेंस के अंतर्गत निगम के प्रत्येक वार्ड में स्थानीय व्यापारी एसोसियेशन एवं रेसिडेंट वेलफेयर एसोसिएशनों के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर एक वार्ड कमेटी का भी गठन हो जो उस वार्ड में निगम के कार्यों पर विशेष ध्यान रखें. 20 वर्गमीटर की दुकानों को 50 वर्गमीटर करने की अनुमति दी जाये. दिल्ली सरकार तुरंत 371 सड़कों को पारित करे क्योंकि एक लंबे समय से यह मामला दिल्ली सरकार पर लंबित है.

कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने कहा क‍ि दिल्ली की सारी आर्थिक गतिविधियों का केंद्र व्यापार ही है और दिल्ली में मौटे तौर पर छोटे -बड़े, सूक्ष्म, लघु तथा हर बाजार और रिहायशी कॉलोनियों में नुक्कड़ की दुकानें होती हैं. दिल्ली में ऐसे लगभग 12 लाख व्यापारी प्रतिष्ठान हैं जिनके माता- पिता या व्यस्क बच्चों को जोड़ा जाए और यदि व्यापारियों पर निर्भर कामदारों को भी जोड़ लें तो यह अपने आप में एक बड़ा वोट बैंक हो जाता है जो चुनाव के परिणाम बदलने की भी ताक़त रखता है. पिछले अनेक विभिन्न चुनावों में ऐसा हुआ भी है. मुख्य बात यह भी है क‍ि इस श्रृंखला में लोगों के आर्थिक हित जुड़े हैं, इसलिए व्यापारियों को अपने आप में एक वोट बैंक में बदलना आसान प्रक्रिया है.

उन्होंने यह भी कहा क‍ि नये परिसीमन के बाद दिल्ली नगर निगम के 76 से अधिक वार्डों में व्यापारियों की बहुलता है वहीं दूसरी ओर लगभग 30 वार्ड ऐसे हैं जिन पर व्यापारी तथा उनके कर्मचारी रहते हैं और इन वार्डों के चुनाव परिणामों पर अपना प्रभाव डाल सकते हैं.

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