जस्टिस रामासुब्रमण्यन ने बहुमत का फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत उल्लिखित प्रतिबंधों को छोड़कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने आज मंगलवार को कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत निर्धारित प्रतिबंधों के अलावा कोई भी अतिरिक्त प्रतिबंध किसी नागरिक के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर नहीं लगाया जा सकता है. 19(2) संपूर्ण हैं. जस्टिस एस.ए. नजीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस ए.एस. बोपन्ना, जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यम और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना शामिल थे. हालांकि जस्टिस नागरत्ना ने इस मामले में अलग निर्णय दिया.
ये भी पढ़ें– Supreme Court on Demonetisation: नोटबंदी पर सरकार का फैसला सही, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की सभी याचिकाएं
जस्टिस रामासुब्रमण्यन ने बहुमत का फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत उल्लिखित प्रतिबंधों को छोड़कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है. जस्टिस राम रामसुब्रमण्यन ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को प्रतिबंधित करने के लिए अनुच्छेद 19 (2) में व्यापक प्रावधान है. इन प्रावधानों के अलावा कोई अन्य प्रतिबंध अनुच्छेद 19 (1) द्वारा प्रदत्त अधिकार के प्रयोग पर नहीं लगाए जा सकते हैं.
शीर्ष अदालत ने कहा कि एक मंत्री के बयान को सरकार के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, मंत्री स्वयं बयान के लिए उत्तरदायी है. संविधान पीठ ने यह फैसला किसी सार्वजनिक पदाधिकारी के भाषण या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबंध लगाए जाने के सवाल पर सुनवाई करते हुए दिया. पीठ में शामिल न्यायमूर्ति नागरत्न ने कहा कि अभद्र भाषा समानता और बंधुत्व की जड़ पर प्रहार करती है. मौलिक कर्तव्यों का उपयोग अपमानजनक भाषणों रोकने और नागरिकों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है.
जस्टिस नागरत्न ने कहा कि अदालत ऐसे सार्वजनिक पदाधिकारियों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर कोई बड़ा/अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगा सकती है.
ये भी पढ़ें– SC Verdict on Demonetisation: सुप्रीम कोर्ट ‘नोटबंदी’ पर आज सुनाएगा फैसला, दो अलग-अलग निर्णय आने की संभावना
यह मामला उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मंत्री आजम खान द्वारा सामूहिक बलात्कार मामले की पीड़ितों के बारे में दिए गए एक बयान से उत्पन्न हुआ था. शीर्ष अदालत एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसकी पत्नी और बेटी के साथ जुलाई 2016 में बुलंदशहर के पास एक राजमार्ग पर कथित रूप से सामूहिक बलात्कार किया गया था और मामले को दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग की गई थी.
याचिका में खान के बयान, सामूहिक बलात्कार का मामला एक राजनीतिक साजिश थी, के संबंध में मामला दर्ज करने की भी मांग की गई थी. अक्टूबर 2017 में तीन जजों की पीठ ने मामले को संविधान पीठ को भेज दिया था.