दरअसल, जी एंटरटेनमेंट का मामला अब नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यून (NCLT) में चला गया है, यानी कंपनी को अब दिवालिया प्रक्रिया से गुजरना होगा, और IBC के नियमों के मुताबिक एक बार जब कंपनी इनसॉल्वेंसी में चली गई तो किसी भी संपत्ति के ट्रांसफर पर रोक लग जाती है.
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नई दिल्ली: देश की दिग्गज मीडिया कंपनी जी एंटरटेनमेंट (Zee Entertainment Enterprises Ltd) और सोनी पिक्चर्स (Sony Pictures Networks India Pvt.) के बीच होने वाला विलय अब ठंडे बस्ते में चला गया है. दरअसल, जी एंटरटेनमेंट का मामला अब नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यून (NCLT) में चला गया है, यानी कंपनी को अब दिवालिया प्रक्रिया से गुजरना होगा, और IBC के नियमों के मुताबिक एक बार जब कंपनी इनसॉल्वेंसी में चली गई तो किसी भी संपत्ति के ट्रांसफर पर रोक लग जाती है.
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NCLT ने स्वीकार की इंडसइंड बैंक की याचिका
इंडसइंड बैंक ने NCLT में जी एंटरटेनमेंट के खिलाफ इनसॉल्वेंसी प्रक्रिया को चलाने की अर्जी दी थी. यह आदेश इंडसइंड बैंक लिमिटेड की ओर से दाखिल उसी याचिका पर आया है, जिसके बाद कंपनी बैंक और सिटी नेटवर्क्स लिमिटेड के बीच एक लोन चुकाने के एक समझौते के तहत अपने दायित्व को पूरा करने में नाकाम रही, जिसमें ज़ी भी एक पक्ष था, सिटी नेटवर्क एस्सेल ग्रुप का हिस्सा है. कोर्ट ने संजय कुमार झलानी को अंतरिम रिजोल्यूशन प्रोफेशनल भी नियुक्त किया है.
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क्या है मामला ?
समझौते की शर्तों के तहत, जी ने सिटी नेटवर्क्स को इंडसइंड बैंक के 150 करोड़ रुपये के लोन की गारंटी दी थी, जिसमें कर्ज को चुकाने के लिए खाते में हर समय एक चौथाई ब्याज और एक चौथाई मूलधन के बराबर रकम बनाए रखनी थी. ज़ी ने समझौते के तहत इतनी रकम बनाए रखने की गारंटी दी थी, लेकिन वो ऐसा करने में नाकाम रही. इंडसइंड के मुताबिक, सिटी नेटवर्क्स सितंबर 2019 से ही खाते को मेनटेन करने में नाकाम रही, और तब से लेकर वो डिफॉल्टर रही. ऐसे में डिफॉल्ट की रकम 89 करोड़ रुपये तक पहुंच गई. इंडसइंड बैंक ने ट्रिब्यूनल ने कहा कि इस डिफॉल्ट के लिए ज़ी को भी उत्तरदायी बनाया जाना चाहिए.
ज़ी एंटरटेनमेंट-सोनी विलय का क्या होगा?
जी एंटरटेनमेंट के NCLT में जाने के बाद अब उसके साथ सोनी पिक्चर्स की डील अटक गई है.
जी के पास क्या कोई रास्ता है?
S&R एसोसिएट्स में पार्टनर दिव्यांशु पांडे का कहना है कि, सेक्शन 12A के अलावा जो कि इनसॉल्वेंसी याचिका को वापस लेने की मंजूरी देता है, दूसरा इकलौता रास्ता ये है कि जी एपीलेट ट्रिब्यूनल से स्वीकृति को रद्द करने का ऑर्डर ले आए. हालांकि उम्मीद बहुत कम है, विदर्भ इंडस्ट्रीज के फैसले की वजह से इसके सफल होने की थोड़ी उम्मीद फिर भी है.
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इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड का मकसद सॉल्वेंट कंपनियों को दंडित करना नहीं है, जो अस्थायी रूप से अपने कर्जों के भुगतान में चूक कर चुकी हैं. और ये कि NCLT के पास दिवाला आवेदनों को स्वीकार करने का विवेकाधिकार है.
दिव्यांशु पांडे के मुताबिक, बड़ा सवाल ये है कि क्या सोनी जी के अपील या रिजोल्यूशन प्रक्रिया से गुजरने तक इंतजार करने को तैयार होगा. जी एंटरटेनमेंट के CEO पुनीत गोयनका ने BQ प्राइम को बताया कि कंपनी विलय को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है.
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पिछले साल अगस्त में जी ने सोनी के साथ विलय की मंजूरी के लिए NCLT में अपील की थी. इसके बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने दिसंबर 2022 में इस योजना को मंजूरी दी थी और 90% सिक्योर्ड लेनदारों ने कंपनी को विलय के लिए NOC दिया था. इसके आधार पर ट्रिब्यूनल ने कंपनी कानून के तहत लेनदारों की बैठक की जरूरत को खत्म कर दिया था.
जी पर मौजूदा समय में अपने सिक्योर्ड लोन का 90% दो प्रमुख सिक्योर्ड लेनदारों, HDFC बैंक लिमिटेड और कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड का बकाया है. हालांकि, लोन काफी छोटा है, जो कि 31 दिसंबर, 2021 तक कुल 33 करोड़ रुपये से भी कम है.
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विलय की अपील NLCT के पास अभी दूसरे चरण में है, इस पर 9 मार्च को चर्चा होगी. विलय के दूसरे चरण में, अदालत अंतिम सुनवाई की तारीख तय करती है और सार्वजनिक सूचना के जरिए सभी स्टेकहोल्डर्स को सूचित करती है. इस स्तर पर विलय के खिलाफ अगर किसी को आपत्ति है तो उसे भी मंगाया जाता है.