पिछले महीने के मुकाबले जून माह में सस्ते खाद्य तेलों का आयात बढ़ने से भारत में किसानों और ऑयल मिलों के सामने संकट पैदा होता जा रहा है.
विदेशों से सस्ते खाद्यतेलों का जून में भारी आयात होने के अनुमान के बीच दिल्ली बाजार में लगभग सभी खाद्यतेल तिलहनों के थोक भाव में गिरावट रही.
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तेल तिलहन कारोबार के जानकार सूत्रों ने बताया कि थोक भाव में आई गिरावट का असर खुदरा बाजार में कितना आयेगा, यह देखा जाना अभी बाकी है. अभी तक कई बार कहने के बावजूद मदर डेयरी के धारा ब्रांड जैसी कुछेक खाद्यतेल कंपनियों ने अपने अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) में मामूली कटौती ही की है जो वास्तविक थोक कीमत से काफी ऊंचा रखा जाता है.
लेकिन देशी तिलहन किसान, देश के खाद्यतेल पेराई मिलों एवं तेल उद्योग और देश के तेल तिलहन मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करने के प्रयासों के लिए, सस्ता आयातित खाद्यतेल खतरे का संकेत हो सकता है.
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, मई, 2023 में लगभग 10.58 लाख टन खाद्यतेल का आयात हुआ था जो जून में बढ़कर लगभग 13.08 लाख टन हो सकता है. उन्होंने कहा कि ऐसे सस्ते खाद्यतेल आयात का क्या फायदा है जो देशी तिलहन किसानों की देशी उपज बाजार में नहीं खपने दे और उन्हें आगे तिलहन खेती करने से हतोत्साहित कर दे, तेल मिलों को पेराई में नुकसान हो और पेराई के बाद भी उनके तेल बाजार में न बिकने पायें, तेल उद्योग से कर्मचारियों की छंटनी की नौबत आये.
अभी तो खाद्यतेलों के थोक भाव सस्ते हैं लेकिन अगर पिछले साल जिस तरह से सोयाबीन 2,200 डॉलर टन और सूरजमुखी का भाव 2,500 डॉलर टन कर दिया गया था. उसी तरह आगे जाकर फिर से खाद्यतेलों के भाव मनमाने तरीके से बढ़ा दिये जायें तो हम क्या कर लेंगे ? ध्यान रहे कि पिछले साल आयातित तेलों के भाव जब आसमान छू रहे थे तो इन्हीं देशी तिलहनों (सरसों, मूंगफली, सोयाबीन और बिनौला) जैसे तेलों ने हमें संकट से निकालने में मदद की थी.
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सूत्र ने कहा कि लेकिन जब सस्ते आयातित तेलों की भरमार से हमारा तेल तिलहन कारोबार, तिलहन किसान ध्वस्त हो जाते हैं तो प्रतिकूल स्थितियों का सामना हम किन उपायों से कर पायेंगे?
गौरतलब है कि विदेशों से सस्ते खाद्यतेलों के आयात से घरेलू बाजार में तेल मिलों ओर किसानों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. इससे कई तरह की दिक्कतें पैदा हो सकती है.