नई दिल्ली: इंफोसिस (Infosys) आज देश की दिग्गज आईटी कंपनियों में से एक है। इसकी स्थापना एन आर नारायण मूर्ति (N.R. Narayana Murthy) और उनके साथ इंजीनियरों ने साल 1981 में की थी। कंपनी में लाखों कर्मचारी काम करते हैं।
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इंफोसिस साल 1999 में अमेरिकी शेयर बाजार में लिस्ट हुई और यह कारनामा करने वाली पहली भारतीय कंपनी थी। साधारण मिडिल क्लास फैमिली से ताल्लुक रखने वाले नारायण मूर्ति ने अपनी पत्नी सुधा मूर्ति (Sudha Murthy) से 10,000 रुपये लेकर इस कंपनी की नींव रखी थी। नारायण मूर्ति ने इंफोसिस की शुरुआत कैसे हुई इसका एक दिलचस्प किस्सा बीते दिनों शेयर किया था।
नारायण मूर्ति ने बताया कि उन्होंने 19 अगस्त, 1976 को उनके जन्मदिन पर इस्तीफा दे दिया था और सुधा मूर्ति को जन्मदिन की शुभकामनाएं भी दी थीं। इस दौरान उन्होंने सुधा मूर्ति को बताया था कि उन्होंने इस्तीफा दे दिया है। इस दौरान सुधा मूर्ति मुस्कुराईं और कहा था कि कोई बात नहीं है। सुधा मूर्ति ने कहा था कि हमारे पास जो भी साधन हैं हम उसमें रहेंगे। वह पूरा सपोर्ट करेंगी और नारायण मूर्ति जरूर सफल होंगे।
ऐसे हुई इंफोसिस की शुरुआत
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सुधा मूर्ति के मुताबिक, पति नारायण मूर्ति ने साल 1981 में इंफोसिस की शुरुआत की थी। इस दौरान वह मुंबई के बांद्रा में एक किराए के अपार्टमेंट में रह रहे थे। नारायण मूर्ति का कहना है कि उनके लिए उनकी पत्नी सुधा मूर्ति सबसे बड़ी ताकत हैं। हर मुश्किल में वो उनके साथ खड़ी रहीं। इन्फोसिस के लिए उन्होंने अपनी पत्नी सुधा मूर्ति से 10 हजार रुपये उधार मांगे। एक इंटरव्यू में सुधा मूर्ति ने बताया कि कैसे उनके पति ने उन्हें पैसे देने के लिए मनाया। बताया कि उन्होंने दस हजार रुपए अपने पति के हाथ में रख दिए। यह वह पैसे थे जो उन्होंने अपनी पति की जानकारी के बिना एक टिन के डिब्बे में जमा किए थे। इसमें से 250 रुपये अभी भी छिपाकर रखे थे ताकि इमरजेंसी में काम आ सके।
लाखों कर्मचारी करते हैं काम
मौजूदा समय में इंफोसिस में 314,000 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं। नारायण मूर्ति के साथ नंदन निलेकणी, एन एस राघवन, एस गोपालकृष्णन, एस डी शिबूलाल, के दिनेश और अशोक अरोड़ा इन्फोसिस के को-फाउंडर थे। ये सभी लोग पटनी कम्प्यूटर में साथ काम करते थे।
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इन लोगों ने सीमित संसाधनों के दम पर देश की सबसे सफल आईटी कंपनियों में से एक इन्फोसिस की नींव रखी। एक अगस्त 2014 को कंपनी ने सभी को चौंकाते हुए विशाल सिक्का को अपना सीईओ बनाया। पहली बार कंपनी का बागडोर किसी आउटसाइडर को सौंपी गई थी। हालांकि उनका कार्यकाल विवादों से भरा रहा और तीन साल बाद उन्होंने पद छोड़ दिया था।