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खाने में तड़के का स्वाद बिगड़ा, इस साल जीरे का भाव 70 फीसदी बढ़ने के बाद और भी महंगा होगा, पढ़िए क्यों ?

पैदावार में कमी के बीच एक्सपोर्ट की भारी मांग ने जीरे के दाम को इस साल करीब 70 फीसदी बढ़ा दिया है. यह 20-25 फीसदी और महंगा हो सकता है. भारत में जीरे का कम उत्पादन होने से दुनियाभर में इसकी कीमत में बढ़ोतरी हो सकती है. इसका कारण यह है कि दुनिया में जीरे के कुल उत्पादन में भारत की बड़ी हिस्सेदारी है.

नई दिल्ली . चौतरफा महंगाई के कारण आम लोग परेशान हैं. पिछले 1 साल में देश में हर चीज के कीमत में भारी बढ़ोतरी हुई है. इनमें जीरा (Cumin Seed) भी शामिल है. देश में इस मसाले का व्यापक इस्तेमाल होता है. वहीं, पैदावार में कमी के बीच एक्सपोर्ट की भारी मांग ने पहले ही जीरे के दाम को इस साल करीब 70 फीसदी तक बढ़ा दिया है. बाजार के जानकारों के मुताबिक, आने वाले महीनों में जीरा 20-25 फीसदी और महंगा हो सकता है.

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भारत दुनिया में जीरे का सबसे बड़ा उत्पादक देश है. ऐसे में भारत में जीरे का कम उत्पादन होने से दुनियाभर में इसकी कीमत में बढ़ोतरी होने की आशंका है. गुजरात की ऊंझा में स्थित देश की सबसे बड़ी जीरा मंडी में 19 मई को जीरे की हाजिर कीमत 195-225 रुपये प्रति किलो थी, वहीं पिछले साल इसी समय इसकी कीमत 140-160 रुपये थी. यही नहीं, सफाई, ग्रेडिंग, पैकेजिंग आदि के बाद रिटेल मार्केट में जीरा करीब 275 से 300 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा जा रहा है.

इस साल कम आया जीरा
ऊंझा एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (APMC) के चेयरमैन दिनेश पटेल के मुताबिक, “मंडी में इस साल कम जीरा आया है. पहले हर साल औसतन 80-90 लाख बोरी (1 बोरी में 55 किलो) मंडी में आती है, जबकि इस साल यह आंकड़ा 50-55 लाख बोरी तक ही रहने का अनुमान है. ऐसे में इसकी कीमत और बढ़ सकती है.”  बताया जाता है कि किसान अब जीरे की बजाय ज्यादा मुनाफा देने वाली फसलों का रुख कर रहे हैं.

दिनेश पटेल के अनुसार, पिछले 3-4 वर्षों से जीरे की कीमत 130 से 150 रुपये प्रति किलो के रेंज में बनी हुई थी. ऐसी स्थिति में किसानों ने इस बार रबी सीजन में अधिक मुनाफे के लिए जीरे की जगह सरसों, कॉटन, मूंगफली, सोयाबीन, धनिया जैसी दूसरी फसलों की खेती करना चुना. यही नहीं, इस साल मौसम भी जीरे की फसल के लिए अनुकूल नहीं रहा, जिससे जीरे की पैदावार 25 फीसदी से अधिक कम हुई.

300 रुपये प्रति किलो कीमत संभव

ऊंझा एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी के वाइस चेयरमैन अरविंद पटेल का कहना है कि अगर आगामी मानसून सीजन भी कमजोर रहता है, तो इस साल की दूसरी छमाही में जीरे की हाजिर कीमत 300 रुपये प्रति किलो तक जा सकती है. जीरे की खेती अक्टूबर-दिसंबर में शुरू होती है, जबकि इसकी कटाई फरवरी से अप्रैल के बीच में होती है. गुजरात के अलावा राजस्थान भी जीरे की खेती का केंद्र है. ऊंझा मंडी में करीब 60 फीसदी जीरा राजस्थान से आता है, जबकि 40 फीसदी हिस्सा गुजरात से आता है.

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कम जमीन में खेती

गुजरात के साबरकांठा, बनासकांठा, सौराष्ट्र और कच्छ इलाके में जीरे की खेती होती है. वहीं, राजस्थान के जोधपुर, नागौर, जैसलमेर में इसकी फसल होती है. दोनों राज्यों के किसान और व्यापारी अपनी फसल बेचने के लिए ऊंझा मंडी आते हैं. मनीकंट्रोलकी रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि गुजरात में इस साल किसानों ने 3 लाख हेक्टेयर से कुछ अधिक जमीन में जीरे की खेती की, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 4.70 लाख हेक्टेयर था. राजस्थान में भी जीरे की खेती का क्षेत्रफल इस साल 20.25 फीसदी कम रहा है.

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