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SC Verdict on Demonetisation: सुप्रीम कोर्ट ‘नोटबंदी’ पर आज सुनाएगा फैसला, दो अलग-अलग निर्णय आने की संभावना

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Demonetisation Verdict: सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान आरबीआई के वकील और याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलें सुनीं. आरबीआई की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने सुप्रीम कोर्ट में दलीलें पेश कीं. वहीं, याचिकाकर्ताओं की ओर से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और अधिवक्ता पी चिदंबरम व श्याम दीवान पेश हुए.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ आज ‘नोटबंदी’ (Verdict on Demonetisation) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाएगी. केंद्र सरकार ने 2016 में 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोटों के विमुद्रीकरण का फैसला किया था. न्यायमूर्ति एसए नजीर की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ मामले में फैसला सुनाएगी, जो 4 जनवरी को सेवानिवृत्त होने वाले हैं. इससे पहले 7 दिसंबर, 2022 को, अदालत ने केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को सरकार के 2016 के फैसले से संबंधित प्रासंगिक रिकॉर्ड प्रस्तुत करने के निर्देश दिए थे और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में न्यायमूर्ति बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामसुब्रमण्यम और बीवी नागरत्ना भी शामिल हैं.

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अदालत ने नोटबंदी के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान आरबीआई के वकील और याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलें सुनीं. आरबीआई की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने सुप्रीम कोर्ट में दलीलें पेश कीं. वहीं, याचिकाकर्ताओं की ओर से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और अधिवक्ता पी चिदंबरम व श्याम दीवान पेश हुए. चिदंबरम ने 500 रुपये और 1000 रुपये के करेंसी नोटों को बंद करने को गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण बताते हुए, तर्क दिया था कि सरकार लीगल टेंडर से संबंधित किसी भी प्रस्ताव को अपने दम पर शुरू नहीं कर सकती है, ये केवल आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर ही किया जा सकता है.

सरकार ने 2016 की नोटबंदी की कवायद पर फिर से विचार करने के सुप्रीम कोर्ट के प्रयास का विरोध करते हुए, कहा था कि अदालत ऐसे मामले का फैसला नहीं कर सकती है, जिसमें राहत देने का कोई जरिया ही न बचा हो. यह ‘समय को पीछे करने’ और ‘एक फोड़े गए अंडे को फिर से पुराने स्वरूप में लाने’ का प्रयास करने जैसा है, जो कतई संभव नहीं है. आरबीआई ने शीर्ष अदालत में अपने जवाब में स्वीकार किया था कि नोटबंदी के फैसले से लोगों को कुछ ‘अस्थायी कठिनाइयां’ जरूर हुई थीं, लेकिन यह भी राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है.

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आरबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से यह भी कहा कि फैसले के कारण लोगों के समक्ष उत्पन्न समस्याओं का समाधान करने के लिए एक मैकेनिज्म की व्यवस्था भी की गई थी. एक हलफनामे में, केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया था कि विमुद्रीकरण की कवायद एक ‘सुविचारित’ निर्णय था और फेक करेंगी, टेरर फंडिंग, ब्लैक मनी और कर चोरी के खतरे से निपटने के लिए एक बड़ी रणनीति का हिस्सा था. सुप्रीम कोर्ट 8 नवंबर, 2016 को केंद्र द्वारा घोषित नो​टबंदी (Demonetisation Practice) को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई कर रहा था.

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