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दिल्ली/एनसीआर

Stroke की चपेट में भारत के युवा, हर 40 सेकेंड में एक स्‍ट्रोक, हर 4 मिनट में जा रही जान

Stroke: दिल्‍ली एम्‍स की पद्मश्री न्‍यूरोलॉजिस्‍ट प्रोफेसर पद्मा श्रीवास्‍तव कहती हैं कि स्‍ट्रोक भारत के लिए बड़ा खतरा बन गया है. देश में हर 40 सेकेंड में स्‍ट्रोक का एक केस सामने आ रहा है और हर 4 मिनट पर स्‍ट्रोक से एक मौत हो रही है.

Stroke In India: स्ट्रोक भारत में मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण बन गया है. भारत में हर साल लगभग 1,85,000 स्ट्रोक के मामले सामने आ रहे हैं. हर 40 सेकंड में लगभग एक स्ट्रोक का केस होता है वहीं हर 4 मिनट में स्ट्रोक से एक मौत हो रही है. स्‍ट्रोक से मौतों का यह दिल दहलाने वाला आंकड़ा भारत में बढ़ता जा रहा है. वहीं इसकी चपेट में खासतौर पर भारत के युवा और मध्‍यम आयु वर्ग के लोग आ रहे हैं. यह जानकारी दिल्‍ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान की पद्मश्री डॉ (प्रोफेसर) एमवी पद्मा श्रीवास्तव ने दी है.

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दिल्‍ली के सर गंगा राम अस्पताल में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर पहुंची देश की प्रसिद्ध न्यूरोलॉजिस्ट श्रीवास्तव ने कहा कि ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज (GBD) के अनुसार, भारत पर स्ट्रोक की 68.6 फीसदी घटनाओं के साथ स्ट्रोक का सबसे ज्‍यादा बोझ है. यहां स्‍ट्रोक की चपेट में आने वाले 70.9 फीसदी मामलों में मौत होती है वहीं 77.7 फीसदी मामलों में विकलांगता होती है. ये आंकड़े भारत के लिए चिंताजनक हैं. GBD 2010 स्ट्रोक प्रोजेक्ट की एक और खतरनाक और महत्वपूर्ण खोज बताती है कि 5.2 मिलियन यानि कि करीब 31 फीसदी स्ट्रोक के केस 20 वर्ष से कम आयु के बच्चों में होते हैं. भारत में स्ट्रोक का बोझ सबसे ज्‍यादा है और इसकी चपेट में युवा और मध्यम आयु वर्ग के लोग आ रहे हैं.

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डॉ. श्रीवास्‍तव ने कहा कि स्ट्रोक केयर के मामलों में भारत अभी भी काफी पीछे है. यहां के गरीब इलाको में स्ट्रोक संस्थानों की बहुत कमी है. इन खतरनाक आंकड़ों के बावजूद, कई भारतीय गरीब इलाको में स्ट्रोक के रोगियों को जल्दी और कुशलता से इलाज करने के लिए जरूरी बुनियादी ढांचे और संगठन की कमी है और वे पर्याप्त स्ट्रोक देखभाल नहीं कर पाते हैं. विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के अस्पतालों में स्‍ट्रोक केयर में काम आने वाली सुविधाओं की भारी कमी है.

इन तरीकों से गरीबों तक पहुंचे इलाज
प्रोफेसर पद्मा श्रीवास्तव ने कहा, गरीब और अमीर इलाको में स्ट्रोक के इलाज में कमी को दूर करने का एक मुख्य और आसान तरीका है कि टेलीस्ट्रोक (Telestroke) और टेलीमेडिसिन को अपनाया जाये इससे स्ट्रोक केयर में देश के समृद्ध एवं प्रमुख शहरों से गरीब एवं गांव के इलाकों को जोड़ा जाना संभव हो पायेगा.

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वहीं गंगाराम अस्‍पता की डॉ जयश्री सूद, चेयरपर्सन, इंस्टीट्यूट ऑफ एनेस्थिसियोलॉजी ने विशेष रूप से महिलाओं के लिए काम और जीवन के बीच संतुलन बनाए रखने के बारे में बात की. प्रोफेसर कुसुम वर्मा, सलाहकार साइटोपैथोलॉजी ने पेशेवर चुनौतियों को कम करने वाले अपने अनुभवों पर बात की और पद्म भूषण डॉ नीलम कलेर, अध्यक्ष, नियोनेटोलॉजी विभाग ने कहा कि इलाज के लिए ‘कभी ना न कहें ‘.

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