बैंकों के फंसे लोन पर RBI ने कहा है कि बैंकों का एनपीए दशक के निचले स्तर पर पहुंच गया है. इसमें आगे और सुधार की उम्मीद की जा रही है.
Reserve Bank On Bad Loans: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने बताया है कि देश के बैंकों की नॉन परफॉर्मिंग असेट्स (NPA) यानी फंसे लोन का रेशियो इस साल मार्च में 3.9 फीसदी पर आ गया जो एक दशक का सबसे निचला स्तर है.
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RBI ने अपनी छमाही वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में कहा कि अधिसूचित वाणिज्यिक बैंकों का ग्रॉस NPA मार्च 2024 तक और कम होकर 3.6 फीसदी हो जाने का अनुमान है.
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि भारत में वित्तीय क्षेत्र स्थिर और मजबूत रहा है और यह बैंकों के लोन में निरंतर वृद्धि, NPA के निचले स्तर और पर्याप्त पूंजी एवं तरलता भंडार के रूप में प्रदर्शित भी होता है.
केंद्रीय बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस रिपोर्ट की भूमिका में लिखा है कि बैंक और कंपनियों दोनों के बही-खाते मजबूत हुए हैं. इससे कुल मिलाकर वृद्धि को गति मिलने की उम्मीद है क्योंकि बही-खातों के मजबूत होने का दोहरा लाभ है. एक तरफ जहां कंपनियों का लोन कम होगा, वहीं बैंकों का NPA भी नीचे आएगा.
बीते दशक के दूसरे हिस्से में बैंकिंग प्रणाली के भीतर NPA का बोझ काफी बढ़ गया था. हालात पर काबू पाने के लिए RBI ने असेट्स क्वॉलिटी रीव्यू शुरू करने के साथ ही बैंकों के लिए फंसी हुई असेट्स को अंकित करना अनिवार्य बना दिया था.
इस कवायद का असर बुधवार को जारी स्थिरता रिपोर्ट में भी नजर आया. बैंकों का शुद्ध NPA मार्च के अंत में एक फीसदी हो गया. इसके पहले जुलाई, 2011 में यह स्तर रहा था.
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मानक लोनों के NPA बनने यानी फिसलन का तिमाही रेशियो और कम होकर 0.3 फीसदी हो गया, लेकिन वित्त वर्ष 2022-23 के अंत में जीNPA रेशियो में बट्टे खातों का रेशियो बढ़कर 28.5 फीसदी हो गया.
इस रिपोर्ट के मुताबिक, क्रेडिट रिस्क के लिए किए गए तनाव परीक्षणों से पता चला है कि सभी बैंक गंभीर तनाव की स्थिति में भी न्यूनतम पूंजी जरूरतों का अनुपालन करेंगे.
इसके मुताबिक, खुदरा लोन पर बैंकों का ध्यान बढ़ने से कॉरपोरेट लोन की हिस्सेदारी मार्च 2023 में गिरकर 46.4 फीसदी हो गई जबकि मार्च 2020 में यह 51.1 फीसदी पर थी.
इसके अलावा कुल सकल NPA में बड़े लोनों की हिस्सेदारी भी तीन साल पहले के 75.7 फीसदी से घटकर मार्च 2023 में 53.9 फीसदी हो गई.
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RBI ने कहा कि पब्लिक सेक्टर के बैंकों का मुनाफा निजी क्षेत्र के बैंकों की तुलना में तेजी से बढ़ा है.